Saturday, December 7, 2013

गर्भावस्था की समस्याएं और समाधान

प्रसवपूर्व अपभ्रंश 
भैंसों में फूल दिखाने की समस्या मुख्य रूप से बच्चा जनने से पहले ही होती है। आमतौर पर यह समस्या प्रसव के 15-60 दिन पहले शुरू होती है। रोग की शुरूआत में भैंस के बैठने पर छोटी गेंद के समान रचना योनिद्वार पर दिखार्इ देती है। भैंस के खड़ा होने पर यह योनिद्वार के अन्दर चली जाती है। धीरे -धीरे इसका आकार बढ़ता रहता है तथा इसमें मिट्टी, भूसा व कचरा चिपकने लगता है। इसके कारण भैंस को जलन होती है और वह पीछे की ओर जोर लगाने लगती है। जिस कारण से समस्या बढ़ती जाती है एवम् और जटिल हो जाती है। कभी-कभी तो कुत्ते  और कौवे इसकी ओर आकर्षित होकर शरीर के बाहर निकले हुए भाग को काटने लगते हैं। 
                            
गर्भावस्था के दौरान बच्चे की सामान्य स्थिति         प्रोलेप्स होने पर योनि का बाहर निकलना
उपचार:
Ø     भैंस को साफ-सुथरी जगह बाँधें, जिससे निकले हुए भाग पर भूसा व गंदगी न लग सके। कुत्ते और कौवे ऐसे स्थान पर न जा सकें। अन्य पशु भी उससे दूर रहें।
Ø    भैंस को ऐसी जगह बाँधें, जो आगे से नीचा तथा पीछे से 2-6 इंच ऊँचा हो। इससे पेट का वजन बच्चेदानी/ योनि पर दवाब नहीं डाल पाता है।
Ø     भैंस को सूखा चारा (तूड़ी/भूसा) न खिलायें। चारा हरा होना चाहिए तथा दाने में चोकर व दलिया प्रयोग करें। प्रसव तक चारे की मात्रा थोड़ी कम ही रखें। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भैंस को कब्ज न होने पाए व गोबर पतला ही रहे।
Ø    भैंस के आहार में रोजाना 50-70 ग्राम कैल्शियम युक्त खनिज लवण मिश्रण अवश्य मिलायें। ये खनिज मिश्रण दवा विक्रेता के यहाँ अनेक नामों (एग्रीमिन, मिनीमिन, मिल्कमिन इत्यादि) से मिलते हैं। खनिज लवण मिश्रण पर ISI मार्क लिखा होना चाहिये।
Ø     शरीर निकलने पर योनि को साफ व ठण्डे पानी से धोएँ, जिससे उस पर भूसा व मिट्टी न लगी रहे। पानी में लाल दवार्इ डाल सकते हैं। पानी में ऐसी कोर्इ दवा न डालें जिससे योनि में जलन होने लगे।
Ø    नाखून काटकर साफ हाथों से योनि को अंदर धकेल दें तथा नर्म रस्सी की ऐंड़ी बाँध दें। ऐंडी बांधते समय यह ध्यान रखें कि यह अधिक कसी न हो तथा पेशाब करने के लिए 3-4 अंगुलियों जितनी जगह रहे।
Ø    रोग की प्रारंभिक अवस्था में आयुर्वेदिक दवाइयों का प्रयोग किया जा सकता है (प्रोलेप्स-इन, कैटिल रिमेडीज अथवा प्रोलेप्स-क्योर) । इसके अतिरिक्त, होम्योपैथिक दवार्इ (सीपिया 200X की 10 बूँदें रोजाना) पिलाने से भी लाभ मिल सकता है।
Ø     गंभीर स्थिति होने पर पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें। पशुचिकित्सक इस स्थिति में दर्दनाशक व संवेदनाहरण के लिए टीका लगाते हैं। जिससे पशु जोर लगाना बंद कर देता है। अब शरीर के बाहर निकले हुए भाग को साफ कर तथा अंदर करके टाँके लगा देते हैं। इसके बाद भैंस को कैल्शियम की बोतल, आधी रक्त में तथा आधी त्वचा के नीचे लगा देते हैं। कभी-कभी प्रोजेस्ट्रोन का टीका भी भैंस को लगा दिया जाता है। परन्तु इसमें यह सावधानी रखी जाती है कि बच्चा देने में अभी 10 दिन से ज्यादा बचे हों। योनि के उपर लगे टाँकों को बच्चा देने के समय खोल दिया जाता है।

प्रसवकालीन अपभ्रंश   
सभी अपभ्रंश में यह सबसे अधिक खतरनाक माना जाता है। समय पर उपचार न होने के कारण भैंस मर सकती है। यह बच्चा जनने के तुरन्त बाद या 4-6 घंटे के अंदर हो जाता है। बड़े आकार के अथवा विकृत बच्चे को जबरदस्ती जनन नलिका से बाहर खींचने के कारण प्रसव के बाद गर्भाशय बाहर आ जाता है। ब्याने के बाद जेर को जबरन खींचने से भी अपभ्रंश की सम्भावना रहती है। इसमें भैंस बैठी रहती है तथा गर्भाशय के लटके भाग पर लड्डू जैसी  संरचनाएं स्पष्ट नजर आती है। इन पर जेर भी चिपकी हो सकती है। थोड़ा सा छेड़ने पर इनमें से खून भी निकलने लगता है।
                   
        प्रसव के बाद खाली गर्भाशय           प्रसव के बाद प्रोलेप्स होने पर गर्भाशय का बाहर की ओर पलटना
उपचार:
Ø    भैंस को अलग बांध कर रखें।
Ø    गर्भाशय को लाल दवा युक्त ठण्डे/बर्फीले पानी से धोकर, एक गीले तौलिए से ढक दें ताकि गर्भाशय सूखने न पाये तथा उस पर मक्खियाँ न बैठें एवम् भूसा व गोबर भी न चिपके।
Ø    इसके बाद तुरन्त पशुचिकित्सक से सम्पर्क करें।
Ø    पशुचिकित्सक गर्भाशय को साफ करके, जेर निकालकर गर्भाशय को उचित विधि द्वारा अंदर कर देते हैं तथा योनि पर टाँकें लगा देते हैं ताकि गर्भाशय पुन: बाहर न निकले।
Ø    इसके बाद भैंस को कैल्शियम, ऑक्सिटोसिन व एंटीबायोटिक दवाइयाँ आवश्यकतानुसार लगार्इ जाती हैं।

प्रसवोपरांत अपभ्रंश 
यह मुख्य रूप से बच्चा देने के कुछ दिनों बाद शुरू होता है। इसका मुख्य कारण जनन नलिका में  कोर्इ घाव या संक्रमण होता है। यह घाव व संक्रमण प्रसूति के समय गलत तरीके से बच्चा निकालने से, अथवा गंदे हाथों से जेर निकालने से हो जाता है। योनि से अक्सर बदबूदार मवाद निकलता है तथा भैंस अक्सर पीछे की ओर जोर लगाती है।
उपचार :
1.    उपचार के लिए तत्काल पशुचिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए।
2.    पशुचिकित्सक गर्भाशय व योनि को साफ करके उसमें एंटीबायोटिक गोलियाँ / द्रव रख देते हैं।
3.    संक्रमण समाप्त होने तक इलाज करवाना चाहिए।
4.    कैल्शियम आदि के टीके भी आवश्यकतानुसार लगाये जा सकते हैं।
सावधानियाँ एवम् रोकथाम :
1.    योनि अपभ्रंश अक्सर वंशानुगत देखने को मिलता है। अत: प्रजनन में सावधानी बरतें।
2.    भैंस को 40-50ग्राम कैल्शियम युक्त खनिज लवण मिश्रण नियमित रूप से खिलायें।
3.    गर्भाशय में बच्चा फंसने पर उसे जबरदस्ती अथवा गलत विधि द्वारा न निकालें/निकलवाएं। जेर निकलवाने के लिए अधिक जोर न लगाया जाए।
4.    शरीर के निकले भाग की सफार्इ का विशेष ध्यान रखें। उसे जूती द्वारा कभी अन्दर न करें।
5.    अपभ्रंश होने पर शीघ्र पशुचिकित्सक की सलाह लें।

बच्चे का ममीकरण
बच्चे का ममीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें भ्रूण मृत होकर गर्भाशय के अंदर सरंक्षित हो जाता है। इसका मुख्य कारण गर्भावस्था का पीतपिंड कायम रहना, गर्भाशय में एक से अधिक जीवित भ्रूण की उपस्थिति तथा संक्रमण की अनुपस्थिति मानी जाती है। ममीकरण होने पर गर्भाशय का पानी व भ्रूण सूख जाते हैं, गर्भाशय सिकुड़ जाता है तथा इसके अंदर भ्रूण एक ठोस आकार में बदल जाता है। भैंस में ममीकरण आमतौर पर 3-8 महीने की गर्भावस्था में होता है। इसके लक्षणों में गाभिन होने के बाद पेट का बड़ा न होना, प्रसव के समय ल्योटी का विकसित न हो पाना तथा गर्भकाल की समाप्ति पर प्रसव के लक्षणों की अनुपस्थिति प्रमुख हैं। ममीकरण की संभावना होने पर पशु चिकित्सक की सलाह लें।
बच्चे का गलना/सड़ना:
      कभी-कभी भ्रूण की मृत्यु होने पर गर्भपात नहीं होता तथा गर्भाशय में जीवाणुओं की उपस्थिति भ्रूण का पाचन करने लगती है। यह प्रक्रिया उस समय तक चलती है, जब तक गर्भाशय में भ्रूण की हड्डियों का ढांचा ही शेष बचता है। बच्चेदानी का मुंह आमतौर पर बंद रहता है। परंतु कभी-कभी योनि से स्राव निकलता है। यह भी आमतौर पर भैंसों में गर्भकाल के 3 महीने बाद ही होता है। इसकी संभावना होने पर पशु चिकित्सक की सलाह लें।
गर्भ अथवा गर्भकलाओं (जेर) में पानी भरना:
गर्भ अथवा गर्भकलाओं में गर्भावस्था के दौरान पानी जमा हो जाने को अंगों के अनुसार भिन्न नामों से जाना जाता है जो इस प्रकार हैं:
      पहली थैली में                         हाइड्रोएलेंटोइस
      दूसरी थैली में                         हाइड्रोएम्निओस
      जेर के अंदर                          ऐडीमा आफ प्लेसेंटा
      बच्चे का सिर                         हाइड्रोसिफेलस
      बच्चे की छाती                        हाइड्रोथोरेक्स
      बच्चे का पेट                          जलोदर/ ऐसाइटिस
      सम्पूर्ण बच्चा                         फीटल ऐनासारका
गर्भ अथवा गर्भकलाओं में गर्भावस्था के दौरान पानी जमा होने से प्रसव में कठिनार्इ आती है। हाइड्रोएलेंटोइस में तो भैंस का पेट काफी बड़ा हो जाता है तथा भैंस को उठने-बैठने में बहुत परेशानी होती है। सभी स्थितियों में पशु चिकित्सक की सलाह लें।

Article Credit: http://www.buffalopedia.cirb.res.in



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