Friday, December 13, 2013

खुर और मुख की बीमारियां

खुर और मुख की बीमारियां

खुर और मुख की बीमारियां, खासकर फटे खुर वाले पशुओं में बहुत अधिक मात्रा में पाई जाती है जिनमें शामिल है भैंस, भेड़, बकरी व सूअर। ये बीमारी भारत में काफी पाई जाती है व इसके चलते किसानों को काफी अधिक आर्थिक हानि उठानी पड़ती है क्योंकि पशुओं के निर्यात पर प्रतिबन्ध है व बीमार पशुओं से उत्पादन कम होता है।
इसके लक्षण क्या हैं?
  • बुखार
  • दूध में कमी
  • पैरों व मुख में छाले तथा पैरों में छालों के कारण थनों में शिथिलता
  • मुख में छालों के कारण झागदार लार का अधिक मात्रा में आना
मुख में बीमारी के लक्षण
    
पैरों में बीमारी के लक्षण
    

ये बीमारी कैसे फैलती है?
  • ये वायरस इन प्राणियों के उत्सर्जन व स्राव से फैलते हैं जैसे लार, दूध व जख्म से निकलने वाला द्रव।
  • ये वायरस एक स्थान से दूसरे स्थान पर हवा द्वारा फैलता है व जब हवा में नमी ज्यादा  होती है तब इसका प्रसार और तेजी से होता है।
  • ये बीमारी बीमार प्राणियों से स्वस्थ प्राणियों में भी फैलती है व इसका कारण होता है घूमने वाले जानवर जैसे श्वान, पक्षी व खेतों में काम करने वाले पशु्र।
  • संक्रमित भेड़ व सूअर, इन बीमारियों के प्रसार में प्रमुख भूमिका निभाते है। 
  • संकर नस्ल के मवेशी स्थानीय नस्ल के मवेशियों से जल्दी संक्रमण पाते हैं।
  • ये बीमारियां, पशुओं के एक स्थान से दूसरे स्थान पर आवागमन से भी फैलती है।
इसके पश्चात प्रभाव क्या है?
बीमार जानवर बीमारियों के प्रति, उर्वरता के प्रति संवेदनशील होते हैं। प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण उनमें बीमारियां जल्दी होती है व प्रजनन क्षमता घट जाती है।

इस प्रसार को कैसे रोका जाए?
  • स्वस्थ प्राणियों को संक्रमित क्षेत्रों में नही भेजा जाना चाहिये।
  • किसी भी संक्रमित क्षेत्र से जानवरों की खरीदारी  नही की जानी चाहिये
  • नये खरीदे गए जानवरों को अन्य जानवरों से 21 दिन तक दूर रखना चाहिये
उपचार
  • बीमार जानवरों  का मुख और पैर को  1 प्रतिशत पोटैशियम परमैंगनेट के घोल से धोया जाना  चाहिये। इन जख्मों पर एन्टीसेप्टिक लोशन लगाया जा सकता है।
  • बोरिक एसिड ग्लिसरिन पेस्ट को मुख में लगाया जा सकता है।
  • बीमार प्राणियों  को पथ्य आधारित आहार दिया जाना चाहिये व उन्हें स्वस्थ प्राणियों से अलग रखा जाना चाहिये।
टीकाकरण
  • सभी जानवरों को, जिन्हें संक्रमण की आशंका है, प्रति 6 माह में एफएमडी के टीके लगाए जाने चाहिये। ये टीकाकरण कार्यक्रम मवेशी, भेड़, बकरी व सूअर, सभी के लिये लागू है।
  • बछड़ों  को प्रथम टीकाकरण 4 माह की उम्र में दिया जाना चाहिये और दूसरा टीका 5 महीने की उम्र में। इसके साथ ही 4- 6 माह में बूस्टर भी दिया जाना चाहिये।

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