गाय के दूध, घी, छाछ, गोमूत्र व गोबर के 100 से भी अधिक गुण हैं और ये 150 से भी अधिक रोग मिटाते हैं।
भैंस के दूध, घी, छाछ के अनेक अवगुण हैं।
गाय के दूध-घी में रोग-प्रतिकारक शक्ति, बुद्धि-शक्ति, ओज-तेज बढ़ाने वाले सुवर्णक्षार व सेरिब्रोसाइड तत्त्व हैं।
भैंस के दूध में ये तत्त्व नहीं हैं।
गोमूत्र पृथ्वी की श्रेष्ठ संजीवनी (औषधि) है। अनेक रोगों की एक दवा माने ʹगोमूत्रʹ।
भैंस के मूत्र का कोई प्रचलित उपचार नहीं है।
गाय के दूध-घी में आँखों की रोशनी बढ़ाने वाला, अंधत्व मिटाने वाला केरोटिन व विटामिन ए भरपूर है।
भैंस के दूध-घी में ये पोषक तत्त्व नहीं हैं।
आयुर्वेद के ग्रंथों, विज्ञान व मानव-समाज के अभ्यास के आधार पर गाय का दूध वात, पित्त हरने वाला है।
आयुर्वेद एवं मानव-समाज के अभ्यास के आधार पर भैंस का दूध कफ बढ़ाने वाला है। भैंस का दूध-घी पचने में भारी तथा बालक, प्रसूता, वृद्ध व बीमारों के लिए अहितकर। इसका दूध हृदयरोग करने वाला तथा कोलेस्ट्रॉल, चर्बी, जड़ता व आलस्य बढ़ाने वाला है।
गाय का दूध-घी शरीर के भीतरी रोग जैसे – हृदयरोग, डायबिटीज, दुर्बलता, वृद्धत्व, श्वास, वात, आँखों की कमजोरी, जातीय दुर्बलता, मानसिक रोगों को मिटाने वाला है।
भैंस का दूध-घी शरीर के भीतरी रोगों को उत्पन्न करता है।
गाय के दूध की मात्रा बारह मास समतोल रहती है।
भैंस गर्मी में कम दूध देती है अथवा सूख जाती है।
गाय की छाछ अति स्वादिष्ट होती है तथा यह संग्रहणी रोग को मिटाने वाला अमृत है।
भैंस की छाछ फीकी, कफ बढ़ाने वाली व पचने में भारी होती है।
गाय का दूध-घी महँगा मिले तो भी सेवन करना चाहिए।
भैंस का दूध-घी सस्ता मिले तो भी सेवन नहीं करना चाहिए।
गाय अपने पालक को अनन्य प्रेम, मैत्री, करूणा व प्रसन्नता प्रदान करती है।
भैंस में यह सब देने की क्षमता नहीं है।
गाय पालक की प्रायः सारी आज्ञाओं का पालन करती है।
भैंस में ऐसी बुद्धि ही नहीं होती।
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