गौमाता एक चलती फिरती चिकित्सालय है। गाय के रीढ़ में सूर्य केतु नाड़ी
होती है जो सूर्य के गुणों को धारण करती है। सभी नक्षत्रों की यह रिसीवर
है। यही कारण है कि गौमूत्र, गोबर, दूध, दही, घी में औषधीय गुण होते हैं।
1. गौमूत्र :- आयुर्वेद में गौमूत्र के ढेरों प्रयोग कहे गए हैं।
गौमूत्र को विषनाशक, रसायन, त्रिदोषनाशक माना गया है। गौमूत्र का रासायनिक
विश्लेषण करने पर वैज्ञानिकों ने पाया, कि इसमें 24 ऐसे तत्व हैं जो शरीर
के विभिन्न रोगों को ठीक करने की क्षमता रखते हैं। गौमूत्र से लगभग 108 रोग
ठीक होते हैं। गौमूत्र स्वस्थ देशी गाय का ही लेना चाहिए। काली बछिया का
हो तो सर्वोत्तम। बूढ़ी, अस्वस्थ व गाभिन गाय का मूत्र नहीं लेना चाहिए।
गौमूत्र को कांच या मिट्टी के बर्तन में लेकर साफ सूती कपड़े के आठ तहों से
छानकर चौथाई कप खाली पेट पीना चाहिए।
गौमूत्र से ठीक होने वाले कुछ रोगों के नाम – मोटापा, कैंसर, डायबिटीज,
कब्ज, गैस, भूख की कमी, वातरोग, कफ, दमा, नेत्ररोग, धातुक्षीणता,
स्त्रीरोग, बालरोग आदि।
गौमूत्र से विभिन्न प्रकार की औषधियाँ भी बनाई जाती है -
1. गौमूत्र अर्क(सादा)
2. औषधियुक्त गौमूत्र अर्क(विभिन्न रोगों के
हिसाब से)
3. गौमूत्र घनबटी
4. गौमूत्रासव
5. नारी संजीवनी 6. बालपाल रस
7. पमेहारी आदि।
2. गोबर :- गोबर विषनाशक है। यदि किसी को विषधारी जीव ने काट दिया है तो पूरे शरीर को गोबर गौमूत्र के घोल में डुबा देना चाहिए।
नकसीर आने पर गोबर सुंघाने से लाभ होता है।
प्रसव को सामान्य व सुखद कराने के समय गोबर गोमूत्र के घोल को छानकर 1
गिलास पिला देना चाहिए(गोबर व गौमूत्र ताजा होना चाहिए)। गोबर के कण्डों को
जलाकर कोयला प्राप्त किया जाता है जिसके चूर्ण से मंजन बनता है। यह मंजन
दांत के रोगों में लाभकारी है।
3. दूध : – गौदुग्ध को आहार शास्त्रियों ने सम्पूर्ण आहार माना है और
पाया है। यदि मनुष्य केवल गाय के दूध का ही सेवन करता रहे तो उसका शरीर व
जीवन न केवल सुचारू रूप से चलता रहेगा वरन् वह अन्य लोगों की अपकक्षा सशक्त
और रोग प्रतिरोधक क्षमता से संपन्न हो जाएगा। मानव शरीर के लिए आवश्यक सभी
पोषक तत्व इसमें होते हैं। गाय के एक पौण्ड दूध से इतनी शक्ति मिलती है,
जितनी की 4 अण्डों और 250 ग्राम मांस से भी प्राप्त नहीं होती। देशी गाय के
दूध में विटामिल ए-2 होता है जो कि कैंसरनाशक है, जबकि जर्सी(विदेशी) गाय
के दूध में विटामिन ए-1 होता है जो कि कैंसरकारक है। भैंस के दूध की तुलना
में भी गौदुग्ध अत्यन्त लाभकारी है।
दस्त या आंव हो जाने पर ठंडा गौदुग्ध(1 गिलास) में एक नींबू निचोडक़र
तुरन्त पी जावें। चोट लगने आदि के कारण शरीर में कहीं दर्द हो तो गर्म दूध
में हल्दी मिलाकर पीवें। टी.बी. के रोगी को गौदुग्ध पर्याप्त मात्रा में
दोनों समय पिलाया जाना चाहिए।
4. दही : – गर्भिणी यदि चाँदी के कटोरी में दही जमाकर नित्य प्रात: सेवन
करे तो उसका सन्तान स्वस्थ, सुन्दर व बुद्धिवान होता है। गाय का दही भूख
बढ़ाने वाला, मलमूत्र का नि:सरण करने वाला एवं रूचिकर है। केवल दही बालों
में लगाने से जुएं नष्ट हो जाते हैं। बवासीर में प्रतिदिन छाछ का प्रयोग
लाभकारी है। नित्य भोजन में दही का सेवन करने से आयु बढ़ती है।
कुछ प्रयोग :-
* अनिद्रा में गौघृत कुनकुना करके दो-दो बूंद नाक में डालें व दोनों
तलवों में घृत से 10 मिनट तक मालिश करें। यही प्रयोग मिर्गी, बाल झडऩा, बाल
पकना व सिर दर्द में भी लाभकारी है।
* घाव में गौघृत हल्दी के साथ लगावें। * अधिक समय तक ज्वर रहने से जो
कमजोरी आ जाती है उसके लिए गौदुग्ध में 2 चम्मच घी प्रात: सायं सेवन करें। *
भूख की कमी होने पर भोजन के पहले घी 1 चम्मच सेंधानमक नींबू रस लेने से
भूख बढ़ती है।
गौघृत से विभिन्न प्रकार की औषधियाँ भी बनती है – अष्टमंगल घृत, पञ्चतिक्त घृत, फलघृत, जात्यादि घृत, अर्शोहर मरहम आदि।
गाय एक पर्यावरण शास्त्र :
1. गाय के रम्भाने से वातावरण के कीटाणु नष्ट होते हैं। सात्विक तरंगों का संचार होता है।
2. गौघृत का होम करने से आक्सीजन पैदा होता है।
- वैज्ञानिक शिरोविचा, रूस
3. गंदगी व महामारी फैलने पर गोबर गौमूत्र का छिडक़ाव करने से लाभ होता है।
4. गाय के प्रश्वांस, गोबर गौमूत्र के गंध से वातावरण शुद्ध पवित्र होता है।
5. घटना – टी.बी. का मरीज गौशाला मे केवल गोबर एकत्र करने व वहीं निवास करने पर ठीक हो गया।
6. विश्वव्यापी आण्विक एवं अणुरज के घातक दुष्परिणाम से बचने के लिए रूस के प्रसिद्ध वैज्ञानिक शिरोविच ने सुझाव दिया है -
* प्रत्येक व्यक्ति को गाय का दूध, दही, छाछ, घी आदि का सेवन करना चाहिए।
* घरों के छत, दीवार व आंगन को गोबर से लीपने पोतने चाहिए।
* खेतों में गाय के गोबर का खाद प्रयोग करना चाहिए।
* वायुमण्डल को घातक विकिरण से बचाने के लिए गाय के शुद्ध घी से हवन करना चाहिए।
7. गाय के गोबर से प्रतिवर्ष 4500 लीटर बायोगैस मिल सकता है। अगर देश के
समस्त गौवंश के गोबर का बायोगैस संयंत्र में उपयोग किया जाय तो वर्तमान
में ईंधन के रूप में जलाई जा रही 6 करोड़ 80 लाख टन लकउ़ी की बचत की जा
सकती है। इससे लगभग 14
करोड़ वृक्ष कटने से बच सकते हैं।
गाय एक अर्थशास्त्र :
सबसे अधिक लाभप्रद, उत्पादन एवं मौलिक व्यवसाय है ‘गौपालन’। यदि एक गाय
के दूध, दही, घी, गोबर, गौमूत्र का पूरा-पूरा उपयोग व्यवसायिक तरीके से
किया जाए तो उससे प्राप्त आय से एक परिवार का पलन आसानी से हो सकता है।
यदि गौवंश आधारित कृषि को भी व्यवसाय का माध्यम बना लिया जाए तब तो औरों को भी रोजगार दिया जा सकता है।
* गौमूत्र से औषधियाँ एपं कीट नियंत्रक बनाया जा सकता है।
* गोबर से गैस उत्वादन हो तो रसोई में ईंधन का खर्च बचाने के साथ-साथ
स्लरी खाद का भी लाभ लिया जा सकता है। गोबर से काला दंत मंजन भी बनाया जाता
है।
* घी को हवन हेतु विक्रय करने पर अच्छी कीमत मिल सकती है। घी से विभिन्न औषधियाँ (सिद्ध घृत) बनाकर भी बेची जा सकती है।
* दूध को सीधे बेचने के बजाय उत्पाद बनाकर बेचना ज्यादा लाभकारी है।
गाय एक कृषिशास्त्र :
मित्रों! गौवंश के बिना कृषि असंभव है। यदि आज के तथकथित वैज्ञानिक युग
में टै्रक्टर, रासायनिक खाद, कीटनाशक आदि के द्वारा बिना गौवंश के कृषि
किया भी जा रहा है, तो उसके भयंकर दुष्परिणाम से आज कोई अनजान नहीं है।
यदि कृषि को, जमीन को, अनाज आदि को बर्बाद होने से बचाना है तो गौवंश
आधारित कृषि अर्थात् प्राकृतिक कृषि को पुन: अपनाना अनिवार्य है।
आइए विषय को आगे बढ़ाने के पूर्व एक गीत गाते हैं-
बोलो गौमाता की – जय
गौमाता तो चलती फिरती, अमृत की है खान रे।
गौमाता को पशु समझने, वाला है नादान रे।।
गौमाता के आसपास में, रहते सब भगवान रे।
गौमाता की सेवा कर लो, कर लो कर लो गंगा नहान् रे।।
गौमाता खुशहाल तो बनता, बिगड़ा देश महान रे।
गौमाता बदहाल तो होता, सारा देश बेहाल रे।।
गौ के गोबर में रहता है, लक्ष्मी का वरदान रे।
कौन करेगा पूरा-पूरा, गौ के गुण का गान रे।।
भूसा खाकर जग को देती, माखन सा वरदान रे।
गौमाता को पशु समझने, वाला है नादान रे।।
एक पुरानी कहावत है -
उत्तम खेती, मध्यम बाण, करे चाकरी कुकर निदान।
लेकिन पिछले 25-30 वर्षों में यह उल्टा हो गया है। खेती आज बहुत खर्चीला
हो गया है। लागत प्रतिवर्ष बढ़ता ही जा रहा है उसकी तुलना में कृषि
उत्पादों की कीमत नहीं बढ़ी -
1. रासायनिक खाद – 1990 में -
युरिया (50 कि.ग्रा.)- 60 से 70 रूपए। डीएपी (1 कि.ग्रा.)- 3 से 4 रू.।
सिंगल सुपर फास्फेट (1 कि.ग्रा.)- 2.50 रू.। 2006-07 में युरिया
(50 कि.ग्रा.)- 270 से 400 रू.। डीएपी (1 कि.ग्रा.)- 23 रू.। सिंगल सुपर फास्फेट (1 कि.ग्रा.)- 40 रू.।
2. डीजल की कीमत :- 1990 में 3 रू/लीटर, आज 45 रू.
3. कीटनाशक :- 1990 में करीब 100 रू लीटर था। लेकिन आज 15000 रू लीटर हो गयी है।
अर्थात लगत बहुत बढ़ी है, करीब 700 से 2000त्न तक। इसकी तुलना में कृषि उत्पाद की कीमत बहुत ही कम बढ़ी है
15 वर्ष पूर्व गेहूँ – 7 रू. से 8 रू. था(सरकार के द्वारा तय रेट) आज – 10 रू. है।
15 वर्ष पूर्व धान- 500 रू. क्विंटल था आज 800 रू. क्विटल अर्थात करीब 20त्न की बढ़ातरी हुई है।
* इस प्रकार रासायनिक कृषि घाटे का सौदा साबित हो रहा है। इसके साथ ही
रासायनिक खेती से जमीन धीरे-धीरे बंजर हो रही है। पंजाब, उ.प्र. व हरियाणा
प्रदेश के खेत अत्यधिक रासायनिक खाद डालने के कारण बर्बाद होते जा रहे हैं।
पंजाब के कई गाँव ऐसे हैं जहाँ के खेत अब पूरी तरह से बंजर हो चके हैं।
* बैल के स्थान पर टै्रक्टर से जुताई करने से खेत के केंचुए मर जाते हैं डीजल का धुआं प्रदूषणकारी है।
मानव जाति व पर्यावरण पर कहर ढाती रासायनिक कृषि की कहानी यहीं नहीं
समाप्त हसे जाती। इस खेती से प्राप्त अनाज, फल, सब्जियाँ सब जहरीली होती है
जिससे ढेरों किस्म की बीमारियाँ बच्चे बूढ़े जवान सभी को लीलती जा रही है। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि रासायनिक और
यान्त्रिक कृषि हर दृष्टि से हानिकारक है। कृषि का उद्धार करना है तो गौवंश
आधारित प्राकृतिक कृषि को ही अपनाना पड़ेगा।
गौपालन के बिना प्राकृतिक
कृषि और प्राकृतिक कृषि के बिना गौपालन संभव नहीं है।(प्रशिक्षक इसे
विस्तारपूर्वक समझाएं) मिट्टी में कभी वे सभी तत्व मौजूद है जो पेड़ पौधों
को चाहिए, लेकिन वह जटिल होते हैं। सूक्ष्म जीव एवं केचए आदि मिट्टी के
कठिन घटकों को सरल घटकों में विघटित कर देते हैं, जिसे पेड़ पौधे आसानी से
खींच सकते हैं। गाय के एक ग्राम गोबर में 300 से 500 करोड़ तक ऐसे ही
सूक्ष्म जीवे होते हैं। ये सूक्ष्म जीव जमीन के केचुओं को सक्रिय करने का
भी काम करते हैं। केंचुए मिट्टी में खूब सारे छेद करके उसे कृषि योग्य पोला
बना देते हैं। केंचुए मिट्टी को खाकर सरल पोषक तत्वों में बदलते रहते हैं।
‘गोबर जीवामृत’ सूक्ष्म जीवों का महासागर है। इसे बनाकर खेत, बागवानी
में हर पन्द्रह दिन में डाला जाए। जिस प्रकार दूध को जमाने के लिए एक चम्मच
जामन पर्याप्त है ठीक उसी प्रकार खेत में सूक्ष्म जीवों व
केंचुओं का जमावड़ा करने के लिए एक एकड़ खेत में 200 लीटर जीवामृत जामन का काम करती है।
‘गोबर जीवामृत’ कैसे बनाएं?
10 डिस्मिल के लिए 20 लीटर जीवामृत बनाने का तरीका -
सामग्री :- ताजा गोबर – 1 कि.ग्रा., पुराना गौमूत्र – 1 लीटर, पुराना
गुड़ – 250 ग्राम, बेसन – 250 ग्राम, बड़े पेड़ के जड़ की मिट्टी- 1 मु_ी,
पानी – 20 लीटर।
विधि :- सबको एक बड़े प्लास्टिक बाल्टी में मिला दें। लकड़ी से घोलें।
दो दिन बाद जीवामृत तैयार है। अगले सात दिनों के अन्दर छिडक़ाव कर दें।
प्राकृतिक कृषि के लिए मार्गदर्शन हेतु ये किताबें जरूर पढ़ें -1.
प्राकृतिक (कुदरती) कृषि का जीरो बजट। 2. जीरो बजट प्राकृतिक कृषि में अनाज
की फसल कैसे लें?
Article Credit:http://sambodhihealingcenter.wordpress.com
No comments:
Post a Comment