S.No |
Title |
|
Solution |
1 |
पशु पालन से संबधित सामान्य प्रश्न |
पशुओं को कितना आहार देना चाहिये? |
दूधारू पशुओं में क्षमता अनुसार दूध प्राप्त करने
के लिए लगभग 40-50 कि.ग्रा. हरे चारे एवम 2.5 कि. दाने की प्रति किलोग्राम
दूध उत्पादन पर आवश्यकता होती है। |
2 |
पशु आहार सम्बन्धित |
यदि हरा चारा पर्यापत मात्रा में उपलब्ध न हो तो क्या दाने की मात्रा बढाई जा सकती है? |
हाँ, यदि हरा चारा पर्यापत मात्रा में उपलब्ध न हो तो दाने की मात्रा बढाई जा सकती है| |
3 |
पशु आहार सम्बन्धित |
क्या पशु का आहार घर में बनाया जा सकता है?
|
|
हाँ। घर पर दाना मिश्रण बनाने के लिए निम्न छटकों की
आवश्यकता होती है:- (क) खली = 25-35 किलो (ख) दाना(मक्का, जौई , गेहूं आदि)
= 25-35 किलो (ग) चोकर = 10-25 किलो (घ) दालों के छिलके = 05-20 किलो (ङ)
खनिज मिश्रण = 1 किलो (च) विटामिन ए, डी-3 = 20-30 ग्राम |
4 |
पशु आहार सम्बन्धित |
पशुओं के लिए रोज़ घर में दाना मिश्रण बनाने की कोई सामान्य विधि बताएं? |
दाना मिश्रण बनाने की घरेलू विधि इस प्रकार है:- 10
किलो दाना मिश्रण बनाने के लिये: अनाज, चोकर और खली की बराबर मात्रा (3. 3
किलो ग्राम प्रति) डाल दें। इस में 200 ग्राम नमक और 100 ग्राम खनिज मिश्रण
डालें। दाना बनाने के लिए पहले गेहूं, मक्का आदि को अच्छी दरड़ लें। और खली
को कूट लें। यदि खली को कूट नहीं सकते तों एक दिन पहले खली को किसी बर्तन
में डालकर पानी में भिगो लें। अगले दिन उसमें बाकि अव्यवों को
(दाना,चोकर,नमक,खनिज मिश्रण) इस में मिलाकर हाथ से मसल दें। इस दाने को
कुतरे हुए चारे/घास में मिलाकर पशु को खिला सकते हैं। |
5 |
पशु आहार सम्बन्धित |
दुधारू पशुओं को संतुलित आहर कितनी मात्रा में और कब दिया जाए? इस विषय पर जानकारी दें। |
दुधारू पशुओं को आहार उनकी दूध आवश्यकता के अनुसार
ही दिया जाना चाहिए। पशुओं का आहार संतुलित होगा जब उसमें प्रोटीन ,
उर्जा,वसा व खनिज लवण सही मात्रा में ड़ाल दें। देसी गाय को प्रति 2.5 किलो
दूध उत्पादन पर आमतौर से 1 किलो अतिरिक्त्त दाना-मिश्रण देना होता है। यह
आहार निर्वाह ( शरीर को बनाए रखने के लिए) के अतिरिक्त होना चाहिए। उदाहरण
के लिए:- गाय का वज़न = 250 कि. ग्रा (लगभग) दूध उत्पादन = 4 किलो प्रति दिन
दी जाने वाली खुराक = भूस/प्राल ४ कि. दाना मिश्रण = 2.85 कि.(1.25 कि.
शरीर के निर्वाह के लिए और 1.6 किलो दूध लें) |
6 |
पशु आहार सम्बन्धित |
गाभिन गाय के लिए कितना आहार आवश्यक है?
|
|
गाय का वज़न = 250 कि. ग्रा (लगभग) (क) भूस = 4
किलो (ख) दाना मिश्रण= 2.5 किलो (1.25 कि.शरीर के निर्वाह के लिये और 1.5
किलो अन्दर बन रहे बच्चे के लिये) |
7 |
पशु आहार सम्बन्धित |
पशुओं के आहर व पानी की दिनचर्या कैसी होनी चहिये? |
(क) चारा बांट कर दिन में 3-4 बार खिलना चहिये। (ख)
दाना मिश्रण भी 2 बार बराबर- बराबर खिलाना चहिये। (ग) हरा और सूखा चारा
(भूस और घास) मिश्रित कर खिलाना चाहिये। (घ) घास की कमी के दिनों साइलेज
उपलब्ध कराना चाहिये। (ङ) दाना, चारे के उपरांत खिलाना चाहीये। (च)
प्रतिदिन औसतन गाय को 35-40 लीटर पानी कि आवश्यकता होती है। |
8 |
पशु आहार सम्बन्धित |
नवजात बछड़ों का पोषण कैसे करें? |
अच्छा पोषण ही बछड़ों- बछड़ियों को दूध / काम के लिये
सक्षम बनाता है। नवजात बछड़ों के लिये कोलोस्ट्रल (खीस) का बहुत महत्व है।
इस से बिमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। और बछड़े- बछड़ियों का उचित
विकास होता है। |
9 |
पशु आहार सम्बन्धित |
बछड़ों- बछड़ियों को खीस कितना और कैसे पिलाना चाहिये। |
सबसे ध्यान देने योग्य बात है कि पैदा होने के बाद
जितना जल्दी हो सके खीस पिलाना चाहिये। इसे गुनगुना (कोसा) कर के बछड़े के
भार का 10 वां हिस्सा वज़न खीस कि मात्रा 24 घंटों में पिलाएं। जन्म के 24
घंटों के बाद बछड़े की आंतों की प्रतिरोधी तत्व (इम्यूनोग्लोब्यूलिन) को
सीखने की क्षमता कम हो जाती है। और तीसरे दिन के बाद तों लगभग समाप्त हो
जाती है। इसलिए बछडों को खीस पिलाना आवश्यक है। |
10 |
पशु आहार सम्बन्धित |
बछड़ों- बछड़ियों को खीस के इलावा और क्या खुराक देनी चाहिये? |
पहले तीन हफ्ते बछडों को उनके शरीर का दसवां भाग दूध
पिलाना चाहिये। चौथे और पांचवे हफ्ते शरीर के कुल भाग का 1/15 वां भाग दूध
पिलाएं। इसके बाद 2 महीने की उम्र तक 1/20 वां भाग दूध दें। इसके साथ-साथ
शुरुआती दाना यानि काफ स्टार्टर और उस के साथ अच्छी किस्म का चारा देना
चाहिये। |
11 |
पशु रोग सम्बंधी |
मिल्क फीवर या सूतक बुखार क्या होता है? |
ये एक रोग है जो अक्सर ज्यादा दूध देने
वाले पशुओं को ब्याने के कुछ घंटे या दिनों बाद होता है। रोग का कारण पशु
के शरीर में कैल्शियम की कमी। सामान्यतः ये रोग गायों में 5-10 वर्ष कि
उम्र में अधिक होता है। आम तौर पर पहली ब्यांत में ये रोग नहीं होता।
|
|
12 |
पशु रोग सम्बंधी |
मिल्क फीवर को कैसे पहचान सकते है? |
इस रोग के लक्षण ब्याने के 1-3 दिन तक प्रकट होते
है। पशु को बेचैनी रहती है। मांसपेशियों में कमजोरी आ जाने के कारण पशु चल
फिर नही सकता पिछले पैरों में अकड़न और आंशिक लकवा की स्थिती में पशु गिर
जाता है। उस के बाद गर्दन को एक तरफ पीछे की ओर मोड़ कर बैठा रहता है। शरीर
का तापमान कम हो जाता है। |
13 |
पशु रोग सम्बंधी |
खूनी पेशाब या हीमोग्लोबिन्यूरिया रोग क्यों होता है? |
ये रोग गायों-भैसों में ब्याने के 2-4 सप्ताह के
अंदर ज्यादा होता है ओर गर्भवस्था के आखरी दोनों में भी हो सकता है। भैसों
में ये रोग अधिक होता है। ओर इसे आम भाषा में लहू मूतना भी कहते है। ये रोग
शरीर में फास्फोरस तत्व की कमी से होता है। जिस क्षेत्र कि मिट्टी में इस
तत्व कि कमी होती है वहाँ चारे में भी ये तत्व कम पाया जाता है। अतः पशु के
शरीर में भी ये कमी आ जाती है। फस्फोरस की कमी उन पशुओं में अधिक होती है
जिनको केवल सूखी घास, सूखा चारा या पुराल खिला कर पाला जाता है। |
14 |
पशु रोग सम्बंधी |
खुर-मुँह रोग(मुँह-खुर रोग?कि रोक थम कैसे कर सकते है? |
इस बीमारी की रोकथाम हेतु, पशुओं को निरोधक टीका
अवश्य लगाना चाहिये। ये टीका नवजात पशुओं में तीन सप्ताह की उम्र में पहला
टीका, तीन मास की उम्र में दूसरा टीका और उस के बाद हर छः महीने में टीका
लगाते रहना चाहिये। |
15 |
पशु रोग सम्बंधी |
गल घोंटू रोग के क्या लक्षण है? |
तेज़ बुखार, लाल आँखें , गले में गर्म/दर्द वाली सूजन
गले से छाती तक होना, नाक से लाल/।झागदार स्त्राव का होना। |
16 |
पशु रोग सम्बंधी |
पशुओं की संक्रामक बीमारियों से रक्षा किस प्रकार की जा सकती है? |
(क) पशुओं को समय-समय पर चिकित्सक के परामर्श के
अनुसार बचाव के टीके लगवा लेने चहिये। (ख) रोगी पशु को स्वस्थ पशु से
तुरन्त अलग कर दें व उस पर निगरानी रखें। (ग) रोगी पशु का गोबर , मूत्र व
जेर को किसी गढ़ढ़े में दबा कर उस पर चूना डाल दें। (घ) मरे पशु को जला दें
या कहीं दूर 6-8 फुट गढ़ढ़े में दबा कर उस पर चूना डाल दें। (ड़) पशुशाला के
मुख्य द्वार पर ‘फुट बाथ’ बनवाएं ताकि खुरों द्वारा लाए गए कीटाणु उसमें
नष्ट हो जाएँ। (च) पशुशाला की सफाई नियमित तौर पर लाल दवाई या फिनाईल से
करें। |
17 |
पशु रोग सम्बंधी |
सर्दियों में बछड़े- बछड़ियों को होने वाली प्रमुख बीमारियों के नाम बताएं। |
(क) नाभि का सड़ना (ख) सफेद दस्त। (ग) न्यूमोनिया (घ) पेट के कीड़े (ड़) पैराटाईफाइड़ |
18 |
पशु विज्ञान सम्बन्धी |
पशुशाला की धुलाई सफाई के लिये क्या परामर्श है? |
पशुशाला को हर रोज़ पानी से झाड़ू द्वारा साफ़ कर देना
चाहिये। इस से गोबर व मूत्र की गंदगी दूर हो जाती है। पानी से धोने के बाद
एक बाल्टी पानी में 5ग्राम लाल दवाई (पोटाशियम पर्मंग्नते) या 50 मिली लीटर
फिनाईल डाल कर धोना चाहिये । इस से जीवाणु ,जूं, किलनी तथा विषाणु इत्यादि
मर जाते हैं, पशुओं की बीमारियां नहीं फैलती और स्वच्छ दूध उत्पादन में
मदद मिलती है। |
19 |
पशु विज्ञान सम्बन्धी |
संकर पशुओं से कितनी बार दूध निकालना चाहिए? |
अधिक दूध देने वाले संकर पशुओं से दिन में तीन बार
दूध निकालना चाहिये और दूध निकालने के समय में बराबर का अंतर होना चाहिये।
अगर पशु कम दूध देता है तो दो बार (सुबह और शाम को) दूध निकालना उचित है,
लेकिन इसके बीच भी बराबर समय होना चाहिये। इस से दूध का उत्पादन बढ़ जाता है
और निशचिंत समय पर पशु स्वयं दूध निकलवाने के लिए तैयार हो जाता है। |
20 |
पशु विज्ञान सम्बन्धी |
दुधारू पशुओं को सुखाने का परामर्श डाक्टर क्यों देते है?
|
|
ग्याभिन अवस्था में पशु और बच्चे दोनों को अधिक
खुराक कि आवश्यकता होती है। अतः ब्याने से तीन माह पहले पशु का दूध निकालना
बंद कर देना चाहिये, ताकि आगे ब्यांत में भी भरपूर दूध मिल सके। |
21 |
पशु विज्ञान सम्बन्धी |
पशुओं की गर्मी का पता कैसे लगाया जा सकता है? |
(क) पशु की योनि से सफेद लेसदार पदार्थ निकलता है। (ख) पशु की योनि अन्दर से लाल हो जाती है और उसमें |
22 |
पशु विज्ञान सम्बन्धी |
ग्याभिन पशु की पहचान कैसे की जा सकती है? |
(क) ग्याभिन होने पर पशु दोबारा २०-२१ दिन गर्मी नही
आती। (ख) तीन चार मास में पशु का पेट फूला नज़र आने लगता है। (ग) पशु कि
गुदां में हाथ डाल कर बच्चेदानी का दो में से एक हॉर्न का बढ़ा होना महसूस
किया जा सकता है। लेकि यह परीक्षण केवल प्राशिक्षित व अनुभवी पशु चिकित्सक
से ही करवाना चाहिये। |
23 |
पशु रोग सम्बंधी |
बछड़े- बछड़ियों में नाभि का सड़ना क्या होता है? इसकी रोकथाम के उपाय बताएं| |
इसे अंग्रेजी में’” नेवल इल “ कहते हैं। नवजात बछड़ों
में सफाई की कमी से नाभि में पीप (मवाद) पड़ जाती है। नाभि चिपचिपी दिखाई
देती है और उस में सूजन व पीड़ा हो जाती है। बछड़ा सुस्त हो जाता है और जोड़ों
के सूजने से लंगडाने लगता है। इसकी रोक थाम के लिये नाभि को किसी कीट नाशक
से साफ़ करके टिंक्चर आयोडीन तब तक लगाएं जब तक नाभि सूख न जाए। |
24 |
पशु रोग सम्बंधी |
बछड़े- बछड़ियों में सफेद दस्त क्यों होती है? |
अंग्रजी में “ व्हाइट सकाऊर “ नामक यह प्राणघातक रोग
है जोकि 24 घण्टे में ही बछड़े की मृत्यु का कारण बन सकता है। इसमें बुखार
आता है , भूख कम लगती है और बदहज़मी हो जाती है। पतले दस्त होते हैं जिस से
बदबू आती है। इस से खून भी आ सकता है। इससे बचाव के लिये बछडों को प्रयाप्त
खीस पिलाएं। |
25 |
पशु रोग सम्बंधी |
बछड़े- बछड़ियों में होने वाले न्यूमोनिया रोग पर प्रकाश डालें। |
यह रोग गन्दे व सीलन वाले स्थानों में रहने वाले
पशुओं में अधिक फैलता है। यह रोग 3-4 मास के बछड़ों में सबसे अधिक होता है।
इस रोग के लक्षण है – नाक व आंख से पानी बहना,सुस्ती, बुखार,साँस लेने में
दिक्कत, खांसी व अंत में मृत्यु। इस घातक रोग से बचाव के लिये पशुओं को साफ़
व हवाद बाड़ों में रखें। और अचानक मौसम/तापमान परिवर्तन से बचाएं। |
26 |
पशु रोग सम्बंधी |
बछड़े- बछड़ियों को पेट के कीड़ों से कैसे बचाया जा सकता है? |
दूध पीने वाले बछड़ों के पेट में आमतौर पर लम्बे गोल
कीड़े हो जाते हैं। इससे पशु सुस्त हो जाता है, खाने में अरुचि हो जाती है
और आँखों की झिल्ली छोटी हो जाती है। इस से बचने के लिये बछड़ों को साफ़ पानी
पिलाएं, स्वस्थ बछड़ों को अलग रखें क्योंकि रोगी बछड़ों के गोबर में कीड़ों
के अण्डे होते है। |
27 |
पशु रोग सम्बंधी |
बछड़े- बछड़ियों में पैराटाईफाइड़ रोग के बारे में जानकारी दें। |
यह रोग दो सप्ताह से 3 महीने के बछड़ों में होता है।
यह रोग गंदगी और भीड़ वाली गौशालाओं में अधिक होता है। इस के मुख्य लक्षण –
तेज़ बुखार, खाने में अरुचि, थंथन का सूखना, सुस्ती। गोबर का रंग पीला या
गन्दला हो जाता है व बदबू आती है। रोग होते ही पशु चिकित्सक से संपर्क
करें। |
28 |
पशु रोग सम्बंधी |
बछड़ों में पेट के कीड़ों (एस्केरियासिस) से कैसे बचा जा सकता है। |
इस रोग की वजह से बछड़े को सुस्ती, खाने में अरुचि,
दस्त हो जाते हैं। व इस रोग की आशंका होते ही तुरन्त पशु चिकित्सक से
संपर्क करें। |
29 |
पशु रोग सम्बंधी |
पशुओं में अफारा रोग के क्या-क्या कारण हो सकते है। |
(क) पशुओं को खाने में फलीदार हरा चारा, गाजर,
मूली,बन्द गोभी अधिक देना विशेषकर जब वह गले सड़े हों। (ख) बरसीम, ब्यूसॉन ,
जेई, व रसदार हरे चारे जो पूरी तरह पके न हों व मिले हों। (ग) भोजन में
अचानक परिवर्तन कर देने से। (घ) भोजन नाली में कीड़ों, बाल के गोले आदि से
रुकावट होना। (ड़) पशु में तपेदिक रोग का होना। (च) पशु को चारा खिलाने के
तुरन्त बाद पेट भर पानी पिलाने से। |
30 |
पशु रोग सम्बंधी |
पशुओं में अफारा रोग के क्या-क्या लक्षण है। |
(क) अफारा रोग के लक्षणभुत स्पष्ट होते हैं। बाईं ओर
की कील फूल जाती है और पेट के आकार बढा हुआ दिखाई देता है। (ख) पेट दर्द
और बेचैनी के कारण पशु भूमि पर पैर मारता है और बार-बार डकार लेता है। (ग)
रयुमन का गैसों से अधिक फूल जाने के कारण छाती पर दबाव बढ़ जाता है जिस से
साँस लेने में तकलीफ होती है। (घ) पशु खाना बन्द कर देता है और जुगाली नहीं
करता। (ड़) यह समस्या भेड़ों में अधिक गंभीर होती है और अधिक अफारा होने पर
उन की मृत्यु हो जाती है। |
31 |
पशु रोग सम्बंधी |
पशुओं में अफारा रोग हो जाने पर ईलाज का प्रबंध कैसे करें? |
अफारा होने पर इलाज में थोड़ी देरी भी जान लेवा हो
सकती है। अफारा होने पर निम्नलिखित उपाय करे जा सकते है:- (क) रोगी का खाना
तुरन्त बन्द कर दें। (ख) तुरन्त डाक्टर से संपर्क करें। ध्यान रहें की
दवाई देते समय पशु की जुबान न पकडें। (ग) जहां तक हो सके पशु को बैठने न
दें व धीरे-धीरे टहलाएं। इससे अफारे में आराम मिलेगा। (घ) पशु को साफ व
समतल जगह पर रखें। (ङ) अफारा का इलाज बहुत सरल है व केवल एक चिकित्सक की
मदद से हो जाता है इसलिये डाक्टरी सहायता लेना ठीक रहता है। (च) अफारा उतर
जाने पर तुरन्त खाने को नही देना चाहिये जब तक पेट अच्छे से साफ़ न हो जाए।
|
32 |
पशु रोग सम्बंधी |
पशुओं में अफारा रोग से कैसे बचाव करना चाहिये? |
(क) पशुओं को चारा डालने से पहले ही पानी पिलाना
चाहिये। (ख) भोजन में अचानक परिवर्तन नहीं करना चाहिये। (ग) गेहूं, मकाई या
दूसरे अनाज अधिक मात्रा में खाने को नहीं देने चाहिये। (घ) हर चारा पूरी
तरह पकने पर ही पशुओं को खाने देना चाहिये। (ड़) पशुओं को प्रतिदिन कुछ समय
के लिये खुला छोड़ना चाहिये। |
33 |
पशु रोग सम्बंधी |
पशुओं में लंगड़ा बुखार कब और कहाँ होता है? |
यह रोग बरसात शुरू होते ही फैलने लगता है। गर्म और
आद्र क्षेत्रों में यह रोग आमतौर पर होता है।जिस जगह यह रोग एक बार हो जाए
वहाँ ये प्रायः हर वर्ष होता है। इस रोग का हमला एक साथ बहुत से पशुओं पर
तो नहीं होता पर जो पशु इस की चपेट में आ जाए वो बच नहीं पाता। इस रोग को
“ब्लैक क्वार्टर”, “ब्लैक लैग” व पुठटे की सूजन का रोग भी कहते हैं। |
34 |
पशु रोग सम्बंधी |
लंगड़ा बुखार होने का क्या कारण है? |
यह रोग गौ जाति के पशुओं में क्लोस्ट्रीड़ियम
सैप्टिकनामक कीटाणु से होता है। ये कीटाणु पशु के रक्त में नही बल्कि रोगी
की माँस-पेशियों व मिट्टी तथा खाने-पीने की वस्तुओं में पाया जाता है। |
35 |
पशु रोग सम्बंधी |
पशुओं में लंगड़ा रोग के लक्षण बताएं? |
पशुओं में लंगड़ा रोग के निम्नलिखित लक्षण है:- (क)
पशु पिछली टांगों से लड़खड़ता है व कांपता है। (ख) पुठठों में सूजन आ जाती
है। (ग) शरीर के अधिक मास वाले भाग (गर्दन,कंधे,पीठ,छाती आदि) में भी सूजन
हो सकती है। (घ) सूजे हुए भाग पहले सख्त , पीड़ादायक व गर्म होते हैं। इन
में एक प्रकार की गैस पैदा हो जाति है। रोग के लक्षण प्रकट होने के 48
घण्टे में रोगी की मृत्यु हो जाती है। |
36 |
पशु रोग सम्बंधी |
पशुओं में लंगड़ा रोग का इलाज कैसे करना चाहिये? |
एंटीबायोटिक दवाओं का टीका लाभकारी होता है। लेकिन ये टीका आरम्भ में ही लाभदायक होते हैं। |
37 |
पशु रोग सम्बंधी |
पशुओं को लंगड़ा रोग से कैसे बचाएं? |
जिस क्षेत्र में यह रोग होता है वहाँ के पशुपालक
अपने 4 मास से 3 वर्ष के सभी गौ जाति के पशुओं को इस रोग के बचाव का टीका
अवश्य लगवाएँ। इस टीके का असर 6 माह तक रहता है। मई में यह टीका अवश्य लगवा
लेना चाहिये। भेड़ों में उन कतरने या बच्चा देने से पहले यह टिका लगवा लेने
चाहिये। |
38 |
पशु रोग सम्बंधी |
पशुओं में लंगड़ा रोग फैलने पर क्या करना चाहिये? |
(क) पशु चकित्सक से तुरन्त संपर्क कर के बचाव टीका
(वैक्सीन) पशुओं को लगवा लेना चाहिये। (ख) रोग कि छूत फैलने से रोकने के
लिये मरे पशुओं व भूमि में 2-2.5 मीटर की गहरई तक चूने से ढक कर दबा देना
चाहिये। (ग) जिस पशुघर में किसी पशु की मृत्यु हुई हो उसे फिनाईल मिले पानी
से धोने चाहिये। कच्चे फर्श की 15 सेंटीमीटर गहरी मिट्टी में चूना मिला कर
वहाँ बिछा दें। |
39 |
पशु रोग सम्बंधी |
पशुओं में लंगड़ा रोग की छूत कैसे लगती है? |
गौ जाति के पशुओं में इस रोग कि छूत खाने-पीने की
वस्तुओं द्वारा फैलती हैं। भेड़ों में यह रोग ऊन उतारने , पूछँ काटने और
नपुँसक करने के पश्चात ही होता है। |
40 |
पशु रोग सम्बंधी |
हिमाचल प्रदेश में गाय-भैंस के प्रमुख जीवाणु जनित रोग कौन-कौन से है? |
गाय-भैंस के प्रमुख जीवाणु जनित रोग:- - एंथ्रेक्स
(तिल्ली रोग) - टूय्ब्र्कूलोसिस (क्षय रोग) - H.S. (गलघोंटू) - ब्रूसलोसिस -
बलैक क्वाट़र (लंगड़ा बुखार) - टिटेनस - मस्टाइटिस (थनैला रोग) |
41 |
पशु रोग सम्बंधी |
हिमाचल प्रदेश में भेड़-बकरियों के प्रमुख जीवाणु जनित रोग कौन-कौन से है? |
भेड़-बकरियों के प्रमुख जीवाणु जनित रोगछ- - मिश्रित
कोलेस्ट्रिड़ियल संक्रामक रोग - ब्रूसलोसिस - फूटराटॅ(खुर पका) - कन्तेजियस
कैपराइनॅ प्लूरोन्यूमोनिया(C.C.P.P.) |
42 |
पशु रोग सम्बंधी |
हिमाचल प्रदेश में घोड़ों के प्रमुख जीवाणु जनित रोग कौन-कौन से है? |
घोड़ों के प्रमुख जीवाणु जनित रोग:- - टिटेनस - ग्ले्न्डरस (Glanders) - स्ट्रैंग्लस (Strangles) |
43 |
संक्रामक एवंम छूआछूत रोगों के बारे में |
संक्रामक रोग क्या होते है? |
सूक्ष्मजीवीजनित रोग जैसे जीवनाणु, विषाणु, फंफूद,
माइकोपलाज्मा इत्यदि जनित रोगों को संकामक रोग खते हैं। उदाहरणतः एँथरेकस
(तिलली रोग), टूयबरकूलोसिस (क्षय रोग), मुहँ-खुर पका , गलघोंटू इतयादि। |
44 |
संक्रामक एवंम छूआछूत रोगों के बारे में |
संक्रामक रोग कैसे संक्रामित होते हैं ? |
संक्रामक रोग मुखयतः संक्रामक रोगवाहको के सीधे
समपर्क में आने से संक्रमित खाद्य पदार्थों पेय वसतुओं और इसके अलावा
संक्रमित वयक्ति एवमं पशु भी इन रोगों को स्वसथ वयक्तियों एवमं पशुओं को
संक्रमित करने में शयक होते हैं। |
45 |
संक्रामक एवंम छूआछूत रोगों के बारे में |
संक्रामक रोग छूआछूत रोगों से किस प्रकार भिन्न हैं ? |
छूआछूत रोग संक्रामित व्यक्तियों एवं पशुओं के निकट
संपर्क में आने से ही फैलता है जबकि संक्रामक रोग निकट सम्पर्क के अलावा
संक्रमित खाद्य पदार्थ, पेयवस्तु एवंम संक्रामित कपड़े विद्वावन वर्तन
इत्यादि द्वारा भी फैल सकते है। (सभी छुआछूत रोग संक्रामक रोग होते हैं
परन्तु सभी संक्रामक रोग छुआछूत के रोग नहीं होते हैं!) |
46 |
पशु रोग सम्बंधी |
हिमाचल प्रदेश में गाय-भैंस के प्रमुख विषाणु जनित रोग कौन-कौन से है? |
गाय-भैंस के प्रमुख विषाणु जनित रोग- - फुट एवं माउथ
(मुहँ-खुर पका) रोग - इन्फैक्सियस बोआइन राइनोट्रैकाईटिस (IBRT) - बोआइन
वाइरल डायरिया (B.V.D) - इपैम्हरल फीवर |
47 |
पशु रोग सम्बंधी |
हिमाचल प्रदेश में भेड़-बकरियों के प्रमुख विषाणु जनित रोग कौन-कौन से है? |
भेड़-बकरियों के प्रमुख विषाणु जनित रोग:- - मुहँ-खुर
पका रोग - पेस्टि-डिस्-पेटाइरिस रूमिनैन्ट्स (PPR) - कान्टैजियस् इक्थाइमा
(Orf) - ब्लू टँग |
48 |
पशु रोग सम्बंधी |
संक्रामक रोगों के प्रमुख लक्षण क्या है? |
संक्रामक रोगों के प्रमुख लक्षण निम्न है:- - तीव्र
ज्वर - भूख ना लगना - सुस्ती - सूखी थोंथ - कमजोर रूमिनल गति अथवा पूर्ण
रूप से स्थिर होना - दुग्ध उत्पादन में अचानक कमी - नाक-आँख से स्त्राव -
दस्त या कब्ज का होना - जमीन पर गिर जाना – लेट जाना |
49 |
पशु रोग सम्बंधी |
क्या पशुओं के रोग मनुष्यों को संक्रमित हो सकते है? |
जी हाँ,पशुओं से मनुष्यों को संक्रमित होने वाले
रोगों को भी ज़ूनोटिक(Zoonotic)रोग कहते है। वास्तव में मनुष्य भी पशुओं को
संक्रमित कर सकते है। उदाहरण:- रैबिज़ (हल्क), टूयब्ररकूलोसिस (क्षय रोग),
ब्रसलोसिस, एंथ्रेकस (तिल्ली बुखार), टिटेनस इत्यादि।
|
50 |
पशु रोग सम्बंधी |
संक्रामक किसानों/पशुपालकों की आर्थिक स्थिती को कैसे प्रभावित करते है? |
मुख्यतः विभिन्न संक्रामक रोग पशुओं के विभिन्न
अंगों को प्रभावित करके अंततः कार्यक्षमता को प्रभावित करते हैं। दुग्ध
उत्पादन में कमी आ जाती है। भेड़-बकरियों में उन का उत्पादन प्रभावित होता
है। इसके अतिरिक्त ये रोग मास उत्पादन एवं उसकी गुणवत्ता को कम करते है।
इसके अतिरिक्त ये रोग गर्भपात एवं प्रजनन क्षमता को कम करता हैं। |
51 |
पशु रोग सम्बंधी |
वर्षा ऋतु में फैलने वाले प्रमुख रोग कौन-कौन से है? |
वर्षा ऋतु में बहुत से संक्रामक फैलते हैं जैसेकि
गलघोंटू, लंगड़ा बुखार, खुरपका रोग, मुहँ-खुर पका रोग, दस्त इत्यादि। |
52 |
पशु रोग सम्बंधी |
कौन से संक्रामक रोग प्रजजन क्षमता को प्रभावित करते है? |
पशुओं की प्रजनन प्रणाली में बहुत से जीवाणु एवं
विषाणु फलित-गुणित होते हैं जोकि प्रजनन क्षमता में कमी एवम् गर्भसपात का
कारण होता है। निम्न प्रमुख संक्रामक रोगवाहक हैं जोकि प्रजनन सम्बंधी
समस्याएं उत्पन्न करते हैं:- ब्रूसेला, लिसिटरिया, कैलमाइडिया और IBRT
विषाणु इत्यादि हैं। |
53 |
पशु रोग सम्बंधी |
क्या विभिन चर्मरोग भी संक्रामक होते है? |
पशुओं में चर्मरोग कई कारणों से होते है जिनमें से
संक्रामक रोग भीएक प्रमुख कारण है। बहुत से जीवाणु रोग एवं बाहय अंगों को
प्रभावित करते हैं। चर्मरोग का एक प्रमुख जीवाणु कर्क स्टैफाइलोकोकस है जो
बालों का गिरना चमड़ी का खुरदुरापन एवं फोड़े-फुन्सियों का कारण बनता है।
पशुओं में चर्म रोग का एक प्रमुख कर्क फँफूद भी होता है (ड्रमटोमाइकोसिस)। |
54 |
पशु रोग सम्बंधी |
बछड़ों में दस्त रोग के मुख्य कारक क्या है? |
बहुत से जीवाणु रोग बछड़ों में दस्त रोग का कारण है।
वर्षा ऋतु की यह एक प्रमुख समस्या है। कोलिबैसिलोसिस, बछड़ों में दस्त एवम
आंतों कि सूजन का एक प्रमुख कारक है, जिसमें बहुत से बछड़ों की मृत्यु भी हो
जाती है। |
55 |
पशु रोग सम्बंधी |
थनैला रोग केजीवाणु कारक कौन से है? |
थनों की सूजन को थनैला रोग कहते है और यह मुख्यतः
वर्षा ऋतु की समस्या है। इसके प्रमुख जीवाणु कारक निम्न है:-
स्टैफाइलोकोकस, स्ट्रैप्टोकोकस , माइकोप्लाज़मा, कोराइनीबैक्टिरीयम, इ.कोलाई
(E.Col) तथा कुछ फंफूद होते हैं। |
56 |
पशु रोग सम्बंधी |
कौन से संक्रामक रोग पशुओं में गर्भपात का कारण बनते है? |
पशुओं में गर्भपात के लिये बहुत से जीवाणु एवं
विषाणु उत्तरदायी होते हैं। गर्भपात गर्भवस्था के विभिन्न चरणों में संभव
है। प्रमुख जीवाणु एवं विषाणु जो गर्भपात का कारक है:
ब्रूसेला,लेप्टोस्पाइरा, कैलमाइडिया एवम् IBR , PPR विषाणु इत्यादि। |
57 |
पशु रोग सम्बंधी |
थनैला रोग के रोकथाम के प्रमुख उपाय कौन से है? |
- पशुओं की शाला को नियमित रूप से सफाई की जानी
चाहिये । मल-मूल को एकत्रित नहीं होने देना चाहिये। - थनों को दुहने से
पहले साफ़ करने चाहिये। - दुग्ध दोहन स्वच्छ हाथों से करना चाहिये। - दुग्ध
दोहन दिन में दो बार अथवा नियमित अंतराल पर करना चाहिये। - शुरू की
दुग्ध-धाराओं को गाढ़ेपन एवं रगँ की जांच कर लेनी चाहिये। - थन यदि गर्म ,
सूजे एवं दुखते हो टो पशुचिकित्सक से परीक्षण करा लेना चाहिये। |
58 |
पशु रोग सम्बंधी |
संक्रामक रोगों की रोकथाम के क्या उपाय हैं? |
संक्रामक रोगों के रोकथाम के लिये उचित आयु एवं उचित अंतराल पर टीकाकरण करना चाहिये। |
59 |
पशु रोग सम्बंधी |
टीकाकरण की उचित आयु क्या है? |
टीकाकरण कार्यक्रम रोग के प्रकार , पशुओं कि प्रगति
एवम् टिके के प्रकार पर निर्भर करता है। समान्यतः टीकाकरण 3 महीने की पर
किया जाता हैं। व्यवहारिक तौर पर पशुपालकों को सलाह दी जाती है की टीकाकरण
के लिये पशुचिकित्सक की सलाह लें। |
60 |
पशु रोग सम्बंधी |
क्या टीकाकरण सुरक्षित हैं? इसके दुष्प्रभाव क्या हैं? |
जी हाँ, टीकाकरण पूर्णरूप से सुरक्षित हैं। टीकों के
उत्पादन में पूर्ण सावधानी बरती जाती है। तथा इनकी क्षमता, गुणवत्ता एवं
सुरक्षा सम्बंधी परीक्षण किये जाते है, तत्पश्चात ही इन्हें उपयोग हेतु
भेजा जाता है। मद्धिम ज्वर अथवा टीकाकरणस्थान पर हल्की सूजन य्दाक्य हो
जाति है जोकि स्वयै दिनों में नियंत्रित हो जाति है। किसी भी शंका समाधान
के लिये पशुचिकित्सक से सलाह लेनी चाहिये। |
61 |
पशु शरीर क्रिया विज्ञान |
खनिज पदार्थ क्या होते है? |
ऐसे तत्व जो पशुओं के शरीरिक क्रियाओं, जैसे विकास,
भरण, पोषण तथा प्रजनन एवं दूध उत्पादन में सहायक होते हैं खनिज तत्व कहलाते
हैं। मुख्य खनिज तत्व जैसे सोडियम, पोटाशियम , कापर, लौ, कैल्शियम,
फास्फोरस, मैग्नीशियम, जिंक, क्लोराइड़, सेलिनियम और मैंगनीज आदि है। |
62 |
पशु शरीर क्रिया विज्ञान |
खनिज तत्व पशुओं के लिए क्यों महत्वपूर्ण हैं? |
खनिज लवण जहां पशुओं के शरीरिक क्रियाओं जिसे विकास,
प्रजनन,भरण , पोषण के लिए जरूरी है वहीं प्रजनन एवं दूध उत्पादन में भी
अति आवश्यक हैं। खनिज तत्वों का शरीर में उपयुक्त मात्रा में होना अत्त्यंत
आवश्यक है क्योंकि इनका शरीर में असंतुलित मात्रा में होना शरीर कि
विभिन्न अभिक्रियाओं पर दुष्प्रभाव डालता ही तथा उत्पादन क्षमता प्र सीधा
असर डालता है। |
63 |
पशु शरीर क्रिया विज्ञान |
पशुओं को खनिज तत्व कितनी मात्रा में देना चाहिये? |
पशुओं को खनिज मिश्रण खिलने की मात्रा : छोटा पशु :
20 ग्राम प्रति पशु प्रतिदिन बड़े पशु : 40 ग्राम प्रति पशु प्रतिदिन |
64 |
पशु शरीर क्रिया विज्ञान |
साईलेस क्या होता है? इसका क्या लाभ है? |
वह विधि जिसके द्वारा हरे चारे अपने रसीली अवस्था
में ही सिरक्षित रूप में रखा हुआ मुलायम हर चारा होता है जो पशुओं को ऐसे
समय खिलाया जाता है जबकि हरे चने का पूर्णतया आभाव होता है। साईलेस के लाभ :
• साईलेस सूखे चारे कि अपेक्षा कम जगह घेरता है। • इसे पौष्टिक अवस्था में
अधिक समय तक रखा जा सकता है। • साईलेस से कम खर्च पर उच्च कोटि का हरा
चारा प्राप्त होता है। • जड़े के दिनों में तथा चरागाहों के अभाव में पशुओं
को आवश्यकता अनुसार खिलाया जा सकता है। |
65 |
पशु विज्ञान सम्बन्धी |
साईलेस बनाने की प्रक्रिया बतायें। |
हरे चारे जैसे मक्की, जवी, चरी इत्यादि का एक इंच से
दो इंच का कुतरा कर लें। ऐसे चारों में पानी का अंश 65 से 70 प्रतिशत होना
चाहिए। 50 वर्ग फुट का एक गड्डा मिट्टी को खोद कर या जमीन के ऊपर बना लें
जिसकी क्षमता 500 से 600 किलो ग्राम कुत्तरा घास साईलेस की चाहिए। गड्डे के
नीचे फर्श वह दीवारों की अच्छी तरह मिट्टी व गोबर से लिपाई पुताई कर लें
तथा सूखी घास या परिल की एक इंच मोती परत लगा दें ताकि मिट्टी साईलेस से न्
लगे। फिर इसे 50 वर्ग फुट के गड्डे में 500 से 600 किलो ग्राम हरे चारे का
कुतरा 25 किलो ग्राम शीरा व 1.5 किलो यूरिया मिश्रण परतों में लगातार
दबाकर भर दें ताकि हवा रहित हो जाये घास की तह को गड्डे से लगभग 1 से 1.5
फुट ऊपर अर्ध चन्द्र के समान बना लें। ऊपर से ताकि गड्डे के अंदर पानी व वा
ना जा सके। इस मिश्रण को 45 से 50 दिन तक गड्डे के अंदर रहने दें। इस
प्रकार से साईलेस तैयार हो जाता है जिसे हम पशु की आवश्यकता अनुसार गड्डे
से निकलकर दे सकते हैं। |
66 |
पशु विज्ञान सम्बन्धी |
सन्तुलित आहार से क्या अभिप्राय है? |
ऐसे भोजन जिसमें कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन वसा खनिज
लवणों उचित मात्रा में उपस्थित हों सन्तुलित आहार कहलाता है। अधिक जानकारी
के लिए नजदीकी पशु चिकित्सक एवं पशु पोषण विभाग, पालमपुर से सम्पर्क साधना
उचित होगा। |
67 |
पशु विज्ञान सम्बन्धी |
गर्भवती गाय को क्या आहार देना चाहिए? |
गर्भवती गाय को चारा शरीर के अनुसार एवं सरलता से
पचने वाला होना चाहिए। दाना 2 - 4 कि॰ग्राम॰ प्रतिदिन तथा दुग्ध हेतु दाना
अतिरिक्त देना चाहिए। मिनरल पाउडर 30 ग्राम॰ +50 ग्राम प्रतिदिन देना
चाहिए। पशु चिकित्सक से सम्पर्क अति आवश्यक है। |
68 |
पशु विज्ञान सम्बन्धी |
भेड़ पालक को भेड़ पालन शुरू करने के लिए भेडें कहाँ से लेनी चाहिए। |
भेड़ पालकों को अच्छी नसल की मेमने लेने के लिए
सरकारी भेड़ फार्म ताल हमीरपुर एवं नगवांई कुल्लू के अधिकारीयों से सम्पर्क
करना चाहिए। |
69 |
पशु विज्ञान सम्बन्धी |
मैदानी संस्थानों में पहाड़ों की तरफ जाते समय भेड़ पालकों को किन सावधानियों का ध्यान |
अप्रैल के महीने में गद्दी भाई अपने पशुओं के साथ
ऊंचे चरागाहों की तरफ चल पड़ते है। परन्तु उन्हें चाहिए पलायन से पूर्व समय
से भेड़ बकरियों का टीकाकरण करवा लें तथा रास्ते में किसी तरह की बीमारी की
समस्या आने पर तुरन्त उपचार करवायें। |
70 |
पशु विज्ञान सम्बन्धी |
टीकाकरण के लिए किस से सम्पर्क करें? |
टीकाकरण के लिए उन्हें निकट के पशु चिकित्सा अधिकारी से सम्पर्क करना चाहिए। |
71 |
पशु विज्ञान सम्बन्धी |
ऊँची चरागाहों में खासकर किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ? |
ऐसा देखा गया है कि गद्दी भाई पने पशुओं को घास
चराने के अलावा कुछ भी नहीं खिला पाते हैं, हालांकि देखा गया है कि ऊँचे
चरागाहों में जाने के बाद भेड़ बकरियों में नमक की कमी हो जाती है। अतः दो
ग्राम प्रति भेड़ प्रतिदिन के हिसाब से सप्ताह में दो बार नमक अवश्य देना
चाहिए। |
72 |
पशु विज्ञान सम्बन्धी |
हिमाचल प्रदेश की जलवायु के लिए कौन सी नस्ल की भेडें अधिक अच्छी होती हैं? |
हिमाचल प्रदेश की जलवायु के लिए गद्दी एवं गद्दी संकर नस्ल की भेडें अति उत्तम रहती है। |
73 |
पशु विज्ञान सम्बन्धी |
पशु पालन के बारे में जानकारी या ट्रेनिंग कहाँ से प्राप्त करें। |
कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर का प्रसार निदेशालय समय
समय पर भेड़ बकरी पालकों के लिए ट्रेनिंग आयोजित करता है तथा पशु विज्ञान
महाविद्यालय पालमपुर में आकर अपनी समस्याओं का निवारण कर सकते है। |
74 |
पशु विज्ञान सम्बन्धी
|
मेरी बछड़ी तीन साल की है, स्वस्थ है पर बोलती नहीं है क्या करें? |
उसकी जांच किसी नज़दीक के पशु चिकित्सक से करवायें।
उसके गर्भशय में कोई समस्या हो सकती है या खान पान में कमियां हो सकती है। |
75 |
पशु विज्ञान सम्बन्धी |
पशु कमज़ोर है क्या करें? |
निकट के पशु चिकित्सा अधिकारी से सम्पर्क करना
चाहिए। उसके पेट कीड़े भी हो सकते हैं। जिसका उपचार अति आवश्यक है। |
76 |
पशु विज्ञान सम्बन्धी |
पशुओं की स्वास्थ्य की देख रेख के लिए क्या कदम उठाना चाहिए? |
किसानों को नियमित रूप से पशुओं कि विभिन्न
बीमारियों के रोक थम के लिए टीकाकरण करवाना, कीड़ों की दवाई खिलाना तथा
नियमित रूप से उनकी पशु चिकित्सा अधिकारी से जांच करवाना। |
77 |
पशु विज्ञान सम्बन्धी |
बार बार कृत्रिम गर्भ का टीका लगाने के बाबजूद पशु के गर्भधारण न कर पाने का उपाय |
इसका मुख्य कारण पशुओं को असंतुलित खुराक की उपलब्धता
व सन्तुलित आहार का न मिल पाना व रोगग्रस्त होने के कारण हो सकता है। ऐसे
में पशु चिकित्सक से सम्पर्क करें। |
78 |
पशु विज्ञान सम्बन्धी |
सन्तुलित आहार से की अभिप्राय है? |
ऐसा भोजन जिसमें कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन वसा
विटामिन्स एवं खनिज लवणों उचित मात्रा में उपस्थित हों सन्तुलित आहार
कहलाता है। अधिक जानकारी के लिए नजदीकी पशु चिकित्सक एवं पशु पोसन विभाग,
पालमपुर से सम्पर्क साधना उचित होगा। |
79 |
पशु विज्ञान सम्बन्धी |
परजीवी हमारे पशुओं को किस प्रकार से हानि पहुंचाते हैं? |
परजीवी हमारे पशुओं को मुख्यतया निम्न प्रकार से
हानि पहुचाते है: 1. पशुओं का खून चूसकर। 2. पशुओं के आन्तरिक अंगों में
सूजन पैदा करके। 3. पशुओं के आहार के एक भाग को स्वयं ग्रहण करके। 4. पशुओं
की हड्डियो के विकास में बाधा उत्पन्न करके। 5. पशुओं को अन्य बीमारियों
के लिये सुग्राही बना कर। |
80 |
पशु विज्ञान सम्बन्धी |
पशुओं में पाये जाने वाले आम परजीवी रोगों के क्या मुख्य लक्षण होते हैं? |
पशुओं में पाये जाने वाले आम परजीवी रोगों के मुख्य
लक्षण इस प्रकार है: 1. पशुओं का सुस्त दिखायी देना। 2. पशुओं के खाने पीने
में कमी आना। 3. पशुओं की तत्व की चमक में कमी आना। 4. पशु में खून की कमी
हो जाना। 5. पशुओं की उत्पादन क्षमता में कमी आना। 6. पशुओं का कमजोर
होना। 7. पशुओं के प्रजजन में अधिक बिलम्ब होना। |
81 |
पशु विज्ञान सम्बन्धी |
परजीवी रोगों से पशुओं को कैसे बचाया जाये? |
अधिकतर परजीवी रोगों से पशुओं को निम्न उपायों
द्वारा बचाया जा सकता है: 1. पशुओं के रहने के स्थान साफ़-सुथरा व सूखा होना
चाहिये। 2. पशुओं का गोबर बाहर कहीं गड्डे में एकत्र करें। 3. पशुओं का
खाना व पानी रोगी पशुओं के मल मूत्र से संक्रमित न होने दें। 4. पशुओं को
फिलों (Snails) वाले स्थानों पर न चरायें। 5. पशुओं के चरागाहों में
परिवर्तन करते रहें। 6. कम जगह पर अधिक पशुओं को न चराये। 7. पशुओं के गोबर
कि जांच समय-समय पर करवायें। 8. पशुचिकित्सक की सलाह से कीड़े मारने की
दवाई दें। 9. समय-समय पर पशुचिकित्सक की सलाह लें। |
82 |
Veterinary Microbiology |
What are Infectious diseases? |
Diseases which are caused by microorgasims like
bacteria, viruses, fungi, mycoplasma etc. are called infectious
diseases. For example; Anthrax, B.Q. Tuberculosis, Foot and mouth
Diseases, Haemorrhagic Septicaemia etc. |
83 |
Veterinary Microbiology |
How do infectious diseases spread? |
Infectious diseases spread mostly by direct
contact with infectious agents, by contaminated food mater and by
fomites. Besides, infected humans and animal also spread infectious
diseases to other healthy human and animal. |
84 |
Veterinary Microbiology |
How to infectious differ from contagious diseases? |
Contagious diseases spread by close contact of
infected human or animal. However, infectious diseases besides close
contact also spread by contaminated food, water and fomities. All
contagious diseases are infectious but all infectious diseases are not
contagious. |
85 |
Veterinary Microbiology |
What are the major bacterial disease of cattle and buffalo in Himachal Pradesh? |
The Major Bacterial diseases of cattle and buffalo
in Himachal Pradesh are: • Anthrax • Tuberculosis. • Haemorrhagic
septicemia. • Brucellosis • Black quarter(BQ) • Mastitis |
86 |
Veterinary Microbiology |
What are the major bacterial diseases of sheep and goats in HP? |
The major bacterial diseases of sheep and goats in
HP are:- • Mixed Clostridial Diseases • Brucellosis • Foot Root •
Contagious caprine pleura pneumonia(CCPP) |
87 |
Veterinary Microbiology |
What are the most important bacterial diseases of Equines in HP? |
The most important bacterial diseases of Equines in HP are:- • Tetanus • Glanders • Strangles |
88 |
Veterinary Microbiology |
What are the common viral diseases of cattle and buffaloes in HP? |
The common viral diseases of cattle and buffaloes
in HP are:- • Foot and Mouth Diseases (FMD) • Infectious Bovine
Rhimotracheitis (IBRT) • Ephemeral Fever |
89 |
Veterinary Microbiology |
What are the important viral diseases of sheep and goats in HP? |
The important viral diseases of sheep and goats in
HP are:- • Foot and Mouth Diseases (FMD) • Pests des petites
ruminants(PRR) • Orf/contagious Ecthyma Blue tongue |
90 |
Veterinary Microbiology |
What are the important clinical signs of infectious disease in animals? |
The important clinical signs of infectious disease
in animals are as follows: • High Fever • Anorexia • Lethargy • Dyness
of muzzle • Poor ruminal motility or complete cessation of rumination •
Sudden fall in milk yield • Nasal and ocular discharge • Diarrhea or
constipation • Recumbency |
91 |
Veterinary Microbiology |
Are disease of animals transmissible to humans? |
Yes, Diseases which get spread from animals to
humans are called zoonotic diseases. Infact, humans may be also transmit
the disease to animals. Example of zoonotic diseases are Rabies,
Tuberculosis, Brucellosis, Anthrax, Tetanus etc. |
92 |
Veterinary Microbiology |
How did the infectious diseases affects the economy of farmers and animals keepers? |
Mostly various infectious diseases affect the
different organ systems of the body which decreases the working capacity
of animals. There is a considerable disease in the milk yield of
animals. Wool production decreases in sheep and goats. Also the
infectious diseases considerable affects the most production and quality
in case of meat animals. Infectious animals may spread the disease in
other healthy animals and humans as well. Besides this, various
infectious diseases may lead to abortions, sub-fertility and infertility
in animals. |
93 |
Veterinary Microbiology |
What are various diseases of animals that occur during rainy seasons? |
A number of infectious diseases occur in animals
in the rainy seasons. Among them most common are Haemorrhagic
Septicaemia, Black Quarter, Foot Rot, Diarrhea FMD. |
94 |
Veterinary Microbiology |
Which infectious diseases produce reproductive disorder in animals? |
A number bacterial and viruses propagate in the
reproductive systems of the animals leading to infertility or even
abortion. The common infectious agent producing reproductive disorder in
animals include Brucella, Listeria, Chlamydia and IBRT virus etc. |
95 |
Veterinary Microbiology |
Are various skin diseases also infectious? |
Skin diseases occur in animals because of many
reasons, infectious diseases being important among them. Many bacterial
diseases affects the skin and other external parts of the animal body.
One of the main cause of dermatitis in animals is Staphylococcus spp.
Which leads to shedding of hair, roughness and abscesses? Dermantitis in
animals also results from fungal infection e.g. Dermatomycoses etc. |
96 |
Veterinary Microbiology |
What are the main causes of diarrhea in calves? |
Many of the bacterial diseases lead to diarrhea in
calves. Calf diarrhea is a major problem during rainy season.
Colibacillosis is one of the major bacterial cause of enteritis and
diarrhea in calves leading to heavy mortality in calves. |
97 |
Veterinary Microbiology |
What are the bacterial causes of mastitis? |
Mastitis refers to the inflammation of udder and I
mostly seen during rainy seasons. Bacterial agents responsible for
mastitis are Staphylococcus, Streptococcus, Mycoplasma, Corynebacterium,
E. coli and certain fungi etc. |
98 |
Veterinary Microbiology |
Which infectious diseases may lead to abortion of animal? |
Many bacterial and viral diseases leads to
abortion in animals. Abortion may occur during different stages of
pregnancy. The important abortion causing bacteria and viruses are
Brucella, Listeria, Leptosprira, Chlamydia and IBR and pestivirous. |
99 |
Veterinary Microbiology |
What are the various steps to prevent mastitis? |
Animal sheds should be cleaned periodically. Do
not allow the urine and during to pile up. • Clean the teats before
milking. Milking should be done with clean hands. • Milking should be
done at least twice daily at regular intervals. • Initial stripping of
milk should be checked thoroughly for its colour and consistency • If
the udder is hot, swollen or painful contact your nearby Veterinary
Officer. |
100 |
Veterinary Microbiology |
What are the methods to prevent infectious diseases? |
Prevention of various infectious diseases is done
by vaccination. Vaccination is done to prevent many bacterial and viral
diseases. These vaccines are administered to animals at an early age and
vaccination schedule is followed at specific intervals. |
101 |
Veterinary Microbiology |
What is the proper age of Vaccination? |
The vaccination schedule varies with the diseases,
species of animal to be vaccinated and the type of vaccine being used.
Generally speaking first vaccination should be done at the age of three
months and booster does should be given as prescribed. For practical
purposes the owner are advised to consult their nearest veterinarian. |
102 |
Veterinary Microbiology |
Are the vaccines safe? What are the side effects? |
Yes. The vaccines are safe. Every case is taken
while preparing the vaccines. A verity of tests including potency and
safety tests are conducted before the vaccine is released for use. Mild
thermal reaction or little swelling at the site of inoculation may
however develop in a few cases which automatically resolves in a day or
two. In case of any doubt consult a qualified veterinary practitioner. |
103 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
भारत में कौन-कौन सी गाय की नस्लें हैं? |
भारत में लगभग 27 मान्यता प्राप्त गाय की नस्लें
हैं:- (क) दुधारू नस्लें :- रेड सिन्धी, साहीवाल, थरपारकर (ख) हल चलाने
योग्य :- अमृत महल, हैलिकर,कांगयाम (ग) दुधारू-व-हल योग्य:- हरयाणा कंकरेज,
अंगोल |
104 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
दुधारू नस्ल की गाय के बारे में विस्त्रित जानकारी दें? |
रेड सिन्धी:- यह नस्ल सर्वोतम दूध उत्पादन क्षमता
रखती है| इस गाय का कद छोटा होता है, रंग पीला से लाल है, चौड़ा माथा और
गिरे हुए कान, सींग छोटे व झालर लम्बी और गर्दन के नीचे तक जाती है|
साहीवाल:- इस नस्ल की उत्पत्ति पकिस्तान से हुई है| आमतौर पर यह रेड सिन्धी
की तरह दिखती है| चमड़ी लचीली होती है व रंग गहरा लाल और कुछ लाल धब्बे
होते है| थरपारकर:- यह नस्ल गुजरात व राजस्थान में प्रमुख है| इस गाय का
रंग सफेद से भूरा होता है| माथा चौड़ा व चपटा,व लम्बे कान होते है| |
105 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
भारत में दूध उत्पादन की क्या स्थिति है? |
भारत में लगभग 7.4 करोड़ टन दूध उत्पादन क्षमता है जो
कि विश्व में सर्वाधिक है| परन्तु प्रति व्यक्ति दूध उपलब्ध एवं प्रति गाय
दूध उत्पादन में हम विकसित देशों से बहुत पीछे है| इसके प्रमुख कारण निम्न
है:- (क) कम दूध देने वाली नस्लें| (ख) चारे व दाने की कमी| (ग) अपर्याप्त
देख रेख व पशुओं में रोगों की प्रसंग| |
106 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
पशुशाला बनाने के बारे में प्रमुख निर्देश क्या है? |
निम्न निर्देश ध्यान योग्य है:- (क) पशुशाला आस पास
की भूमि की अपेक्षा ऊंचाई पर स्थित होनी ची ताकि पानी इक्ट्ठा न हो सके|
(ख) पानी व बिजली की सुविधा होनी अनिवार्य है| (ग) पशुशाला की दिशा
पूर्व-पश्चिम की ओर होनी चाहिए ताकि प्रकृतिक प्रकाश उपलब्ध रहे| (घ) खुली
की दिशा उत्तर की तरफ होनी चाहिए| (ङ) पशुशाला का फर्श पक्का व खुरदरा होना
चाहिए जिससे फिसलन कम है| |
107 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
डेयरी व्यवसाय को लाभकारी बनाने के क्या उपाय है? |
(क) उन्नत व उपयुक्त नस्लों का चयन| (ख) सन्तुलित
चारा व आहार की उपलब्धता| (ग) आरामदेह आवास की उपलब्धता| (घ) समय पर रोग
अन्विष्ट व रंग निरोधक टीकाकरण| |
108 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
उपयुक्त नस्ल का चयन कैसे करें? |
उपयुक्त नस्ल से अभिप्राय है कि उस गाय का चयन करें
जिन की दूध उत्पादन क्षमता अधिक हो| पहाड़ी गाय की दूध उत्पादन क्षमता
बडाने के लिए इनका उन्नत नस्ल टीके से कृतिम गर्भाधान किया जा सकता है|
(जर्सी होलस्तिम) पैदा हुई मादा बछड़ियों की दूध उत्पादन क्षमता ज्यादा होती
है| |
109 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
एक जानवर की पौष्टिक आवश्यकता क्या है? |
सामान्य नीयम के तहत एक दुधारू गौ को 40-50 कि.ग्रा.
हरा चारा व 2.5-3.0 कि.ग्रा. दाना (प्रति कि.ग्रा. दूध उत्पादन) देना
अनिवार्य है| परन्तु यह एक जानवर की कुल दीध उत्पादन व उसके वज़न पर निर्भर
है| |
110 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
क्या हरे चारे के अभाव में दाने की मात्रा को बढाया जा सकता है? |
जी हाँ, चारे के अभाव में पशुपालक दाने की मात्रा को बडा सकते है| |
111 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
क्या पशुपालक घर पर ही पशुआहार तैयार कर सकते है? |
जीहाँ| इसके लिए निम्न संघटक डाल कर हम पशु आहार
तैयार कर सकते हैं:- खत्र- 25-35 कि.ग्रा. दाने (गेहूं,मक्की,जौ,
इत्यादि) :- 25-35 कि.ग्रा. चोकर (गेहूं): 10-25 कि.ग्रा. डाल चोकर :
5-20 कि.ग्रा. मिनरल मिक्स्चर: 1 कि.ग्रा. विटामिन A,D3 : 20-30 ग्रा. |
112 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
घर पर पशु दाना/आहार बनाने की विधी क्या है कृपया सुझाऐं? |
निम्न लिखित विधी द्वारा पशु दाना/आहार घर पर बनाया
जा सकता है:- 10 कि.ग्रा. पशुआहार बनाने के लिए बराबर मात्रा में अनाज,
चिकर ओर खल(3.33 कि.ग्रा.प्रत्येक) लें ओर इसमें 200ग्राम नमक व 100 ग्राम
खनिज लवण मिलाएं| कृपया यह सुनिश्चित करें कि अनाज पूरी तरह पिसा हुआ व खल
पूरी तरह तोडी हुई हो (यदि खल पूरी तरह पाउडर नहीं बना हो तो एक दिन पहले 2
ग्राम को पानी से भिगो दें) अगली सुबह पीसी हुई नरम खल को उपरोक्त अनाज
नमक व खनिज लवण में मिलाए| इस पशु दाने को पशु को पशु कि आवश्यकता अनुसार
सूखे घास व हरे चारे में खिलाया जा सकता है| |
113 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
कृपया हमें यह सुझाव दें कि दूध देने वाले पशु को कितना पशु दाना/आहार देना चाहिए? |
दूध देने वाले पशु को उसकी उत्पादक क्षमता के अनुसार
पोषाहार की आवश्यकता होती है| पोषाहार संतुलित हिना चाहिए| पोषाहार
संतुलित बनाने के लिए इसके उचित मात्रा व भाग में प्रोटीन, ऊर्जा, वसा व
खनिज लवण होने चाहिए|| औसतन एक देसी गाय को 1 कि.ग्राम अतिरिक्त पशु दाना
प्रत्येक 2.5 कि.ग्रा. दूध उत्पादन पर देना आवश्यक है| उपरोक्त पशु दाना
रख-खाव आहार के अतिरिक्त होना चाहिए उदहारण के लिए:- गाय का वज़न : 250
कि.ग्रा. (अन्दाज़)| दूध उत्पादन : 4 कि.ग्रा.प्रतिदिन| आहार जो दिया जाना
है| भूसा/प्राल : 4 कि.ग्रा| दाना 2.85 4 कि.ग्रा (1.25 4 कि.ग्रा रखरखाव
और1.6 4 कि.ग्रा आहार दूध उत्पादन के लिए) |
114 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
एक गभीं गाय के लिए कितने आहार की आवश्यकता होती है? |
गाय का वज़न :- 250 कि.ग्राम (अन्दाज़न) आहार की
आवश्यकता जो दिया जाना है भूस/पराल: 4 कि.ग्रा दाना : 2.75 कि.ग्रा (1.50
कि.ग्रा रखरखाव व 1.25 कि.ग्रा पेट में बड़ते बच्चे के लिए) |
115 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
पशुओं को चारा व पानी क्या अनुसूची है? |
निम्न लिखित अनुसूची अपनाई जानी चाहिए:- (क) रोज़ का
आहार 3-4 भागों में बांटना चाहिए| (ख) दाना दो बराबर भागों में दिया जाना
चाहिए| (ग) सूखा व हर चारा अच्छी तरह मिलाकर देना चाहिए| (घ) कमी के समय
साईंलेज दिया जाना चाहिए| (ङ) चारा खिलने के बाद ही दाना देना चाहिए| (च)
औसतन वज़न की गाय को 35-40 लीटर प्रतिदिन पानी की आवश्यकता होती है| |
116 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
नवजात बच्छे- बच्छडी के पोषाहार का किस प्रकार ध्यान रखना चाहिए? |
उचित पोषाहार नवजात बच्छे- बच्छडी के विकास व भविष्व
की उत्पादक क्षमता के लिए अतिआवश्यक है नवजात को खीस(माँ का पहला दूध)
अवश्य पिलाना चाहिए इससे नवजात की बिमारियों से लड़ने की क्षमता बडती है व
शरीर का सम्पूर्ण विकास सुनिश्चित होता है| |
117 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
नवजात बच्छे- बच्छडी को खीस पीलाने की क्या अनुरुची है? |
सबसे पहले ध्यान देने योग्य बात यह है कि नवजात को
व्याने के बाद जितना जल्दी हो खीस पीला देनी चाहिए खीस को कोसा गर्म करें व
शरीर 1/10 भाग (नवजात के शरीर का वज़न पहले 24 घण्टों के बाद नवजात की
आंतों में इम्यूनोगलोबूलिन को सोखने की क्षमता कम हो जाती है यह क्षमता
लगभग 3 दिनों के बाद समाप्त हो जाती है इसलिए खीस (माँ का पहला दूध) अवश्य
पिलाई जानी चाहिए| |
118 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
खीस के इलावा/अतिरिक्त बड़ते बच्चे को क्या देना चाहिए? |
नवजात बच्छे- बच्छडी को पहले तीन सप्ताह टक दूध
आवश्य पिलाना चाहिए व यह शरीर के भार का 1/10 भाग आवश्य होना चाहिए| चौथे व
पांचवे सप्ताह के दौरान दूध की मात्रा 1/15 भाग होना चाहिए और उसके बाद 2
महीने की आयु टक दूध 1/20 भाग शरीर मार का नवजात दाना व चारे के अतिरिक्त
पिलाना चाहिए| |
119 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
दुग्ध ज्वर क्या है? कृपया इस बिमारी के बारे में प्रकाश डालें? |
दुग्ध ज्वर एक बिमारी है जो आमतौर पर आमतौर पर
ज्यादा दूध देने वाले पशु में व्याने के कुछ घण्टों/दिनों बाद होती है|
कारण पशु के शरीर में कैल्शियम की कमी| आमतौर पर गाय 5-10 वर्ष की आयु में
इससे ग्रसित होती है| अधिकतर पहली बार व्याने पर यह बिमारी नहीं होती है| |
120 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
दुग्ध ज्वर के आम लक्षण क्या है? |
लक्षण आमतौर पर 1-3 दिनों में व्याने के बाद सामने
आते है| जानवर को कब्ज व बेअरामी हो जाती है| ग्रस्त पशु की मांस पेशियों
में कमजोरी आने के कारण पशु खड़ा होने व चलने में असमर्थ हो जाता है| पिछले
भाग में अकड़न या हल्का अधरंग होता है व पशु शरीर पर एक तरफ गर्दन मोड़ देता
है व शरीर का तापमान सामान्य से कम होता है| |
121 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
पेशाब में खून आना (हिमोग्लोबिनयुरीया/हीमेचुरिया) बिमारी कैसे होती है? |
यह बिमारी आमतौर पर व्याने के 2-4 सप्ताह के बाद या
यहां तक की गर्भावस्था के अंतिम दिनों में होती है| यह बिमारी ज्यादा तर
भैंसों में होती है| इस बिमरी को स्थानीय भाषा में लाहू मोटाना कहा जाता
है| यह बिमारी शरीर में फास्फोरस की कमी की वजह से होती है| मिट्टी में इस
लवण की कमी से चारे में फास्फोरस की कमी होती है व पशु के शरीर से कमी चले
जाती है| ज्यादा तर जिन पशुओं को सूखा घास/चारा खिलाया जाता है| उनमें
फास्फोरस की कमी की संभावना ज्यादा रहती है| |
122 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
खुरपका मुंहपका (एफ.एम.डी.) रोग से पशुओं को कैसे बचाया जा सकता है कृपया सुझाव दें? |
खुरपका मुंहपका रोग से पशुओं को बचाने के लिए सबसे
पहले समय रहते एम.एम.डी. वैक्सीन से टीकाकरण 3 सप्ताह में दूसरी खुराक
(बूस्टर) 3 माह की आयु पर लगवाएं इसके बाद प्रत्येक 6 माह बाद टीका करण
करवाते रहे| |
123 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
गलघोंटू रोग होने के मुख्य लक्षण क्या है? |
तेज़ बुखार, आँखों में लाल, गले में सूजन तेज़ दर्द होने का ईशारा, नाक से लाल रंग का सख्त आदि मुख्य लक्षण है| |
124 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
गौशाला की सफाई धुलाई कैसे की जाती है कृपया सुझाव दें? |
गौशाला को नियमित रूप में पानी से साफ करना चाहिए
जिससे अशुद्ध वातावरण (गोबर व पेशाब के कारण) से बचा जा सके| गौशाला में
पानी से साफ करने के बाद रोगाणु नाशक दवाई (5ग्राम पोटाशियम परमेगनेट या 50
एम.एल फिनाईल/बाल्टी पानी) से सफाई करें यह जीवाणु व परजीवी को मार देगा
जो की गौशाला में हो सकते है| यह दूध का साफ उत्पादन भी सुनिश्चित करता है| |
125 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
अधिक दूध देने वाले शंकर नस्ल के पशुओं में दूध-दूहने की क्या अनुसूची है? |
ज्यादा दूध देने वाले पशु भी दिन में तीन बार नियमित
अन्तराल के बाद दुहना चाहिए व कम दूध देने वाले पशु को दिन में दो बार
किन्तु समय अन्तरकाल बराबर होना चाहिए| इससे दूध उत्पादन क्षमता भी बडती है
और पशु समय पर दूध देने को तैयार रहता है| |
126 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
दुधारू पशु को दूध को सुखाना क्यों जरूरी है? |
गर्भवस्था के समय दोनों माँ व पेट में पल रहे बच्चे
को अधिक पोषाहार की आवश्यकता होती है इसलिए पशु को व्याने से तीन महीने
पहले दूध सुखा देना/छोड़ देना चाहिए इससे पशु की आदर्श दूध उत्पादक क्षमता
सुनिश्चित होती है| |
127 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
एक साधारण आदमी कैसे पता लगा सकता है की पशु (गर्भवस्था) गर्भधारण करने को तैयार है? |
निम्नलिखित लक्षण पशु के मद में आने की स्थिति को
दर्शाते है:- (क) भग/योनी मार्ग से गाडा स्बेस्मिक पदार्थ निकलता है| (ख)
योनी सूज जाती है| (ग) लागातार पूंछ को उठाना व बार-बार पेशाब करना ऐंठना|
(घ) टींजर साथ के द्वारा भी मदकाल का पता लगाया जा सकता है| |
128 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
गर्भवस्था के मुख्य क्या लक्षण है? |
आम लक्षण निम्नलिखित है:- (क) जब पशु गर्भधार्ण कर
लेता है तो 21 दिनों के बाद मद में नहीं आता| (ख) 3-4 महीनों के बाद पेट
सूजा हुआ लगता है| (ग) जब गुदा के रास्ते निदान किया जाता है तो गर्भाश्य
बड़ा हुआ महसूस होता है यह निदान केवल पशुपालन में प्रशिक्षित व्यक्ति
द्वारा ही किया जाना चाहिए| |
129 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
हम अपने जानवरों को संक्रामक रोगों से कैसे बचा सकते है? |
निम्नलिखित उपाए मंदगार है:- (क) पशुचिकित्सक की
सलाह से समय पर टीका करण करवाना| (ख) बीमार पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग
रखना| (ग) गोबर पेशाब ओर जेरा आदि (बिमार पशुओं) को एक गड्डे में जला देना
चाहिए व ऊपर से चूना डालना| (घ) मरे हुए फू को शव को गड्डे में डालकर ऊपर
चूना डालकर दबाना चाहिए| (ङ) गौशाला के प्रवेश द्वारा पर फुट बाद बनाना
चाहिए| (च) पोटाशियम परमेगनेट व फिनाईल से हमेशा गौशाला की सफाई करनी
चाहिए| |
130 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
नवजात बच्छे- बच्छडि़यों में किन-किन बिमारियों का खतरा सर्दियों में अधिक रहता है? |
नवजात बच्छे- बच्छडि़यों में निम्नलिखित बिमारियों
का खतरा सर्दियों में अधिक रहता है:- (क) नेवल “I” (ख) वाईटस्करड (ग)
निमोनिया (घ) पेरासाईकिइन्फेक्शन (ङ) पेराटाईफाईड |
131 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
नेवल “I” क्या है व इससे बचाव के क्या उपाए है? |
हिंदी में इसे नाभि का सडना ऐग के नाम से जाना जाता
है| गौशाला में स्वास्थ्य कर परिस्थितियां न होने के कारण नेवल काड में
संक्रमण होता है नाभि में मवाद पड़ जाती है, नाभी सूजन दर्द होता है| ग्रसित
नवजात सुस्त रहता है व जोड़ों में सूजन भी देखी जाती है| नवजात लंगड़ा के
चलता है| इलाज ग्रसित नामी को रोगाणुरोधक से होना चाहिए सुर टिंचर आथोडीन
से साफ करना चाहिए जब तक जख्म ठीक नहीं होता ईलाज लगातार करना चाहिए| |
132 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
नवजात बच्चे में सफेद दस्त क्यों होते है? |
इस बिमारी को वाईटस्करज कहा जाता है यदि इस का समय
रहते ईलाज नहीं किया जाए तो नवजात मर जाता है इससे नवजात में बुखार भूख न
लगना, बदहज़मी, पानी वाले दस्त, कभी-कभी खूनी दस्त होते है| खीस नवजात को
खिलाने से बिमारी को कम किया जा सकता है| |
133 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
कृपया नवजात होने वाली निमोनिया नामक बिमारी पर प्रभाव डालें? |
यह एक आम बिमारी है जो नवजात व उन जानवरों में होती
है जो सलाब वाली जगह में बांधे जाते है ज्यादा तर यह बिमारी नवजात जिनकी
उम्र 3-4 महीने में पाई जाती है| इसके मुख्य लक्षण है आंख व नाक से पानी,
सुनाई न देना, बुखार, सांस में कठिनाई व बलगम निकालना| यदि समय पर ईलाज
नहीं हुआ तो मृत्यु| नवजात को साफ हवादार भाड़े में रखना व अचानक मौसम व
तापमान से बचाव रखना चाहिए| |
134 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
हम अपने नवजात बच्चे को क्रीमी संक्रमण से कैसे बचा सकते है? |
आमतौर पर नवजात इससे ग्रस्ति होते है यह अन्तह
क्रीमी के कारण होती है मुख्यत: एसकेदिदज| जिसके कारण जानवर कमज़ोर,सुस्त
तथा भूख में कमी होती है| इससे बचाव के लिए साफ पानी की व्यवस्था, बिमार
नवजात को स्वस्थ से अलग रखना आवश्यक है| क्रीमी एक से दूसरे जानवर को
अण्डों के द्वारा फैलते है जोकि बिमार पशु के गोबर में होते हैं| |
135 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
कृपया पेराटाईफाईड बिमारी के बारे में बताएं जो आमतौर पर नवजात में होती है? |
यह बिमारी आम तौर पर 2 सप्ताह से 3 महीने के बीच की
आयु वाले नवजात को होती है| यह उन गौशालाओं में ज्यादा होती है जो तंग है व
स्वास्थ्यकर नहीं है| मुख्य लक्षणों में तेज़ बुखार, दाना खाने में रुची न
होना, मुंह सूखा, सुस्ती, गोबर पीला या मिट्टी के रंग का व दुर्गन्ध| यदि
आपको इस बिमारी का आभास हो तो तुरन्त नज़दीक के पशु चिकित्सक को सम्पर्क
करें| |
136 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
हम नवजात को पेट के कीड़ों से कैसा बचा सकते है? |
पेट के कीड़ों से ग्रस्ति नवजात सुस्त, खाने में कम
रूचि, दस्त लगना आदि लक्षण होते हैं तथा सही ईलाज के लिए नज़दीक के पशु
चिकित्सक को सम्पर्क करें| |
137 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
पशुओं में अफारा होने के क्या लक्षण है? |
आम लक्षण निम्नलिखित है:- (क) ज्यादा मात्रा में
गीला हरा चारा, मूली, गाजर आदि यदि सड़ी हुई है| (ख) आधा पका ल्पूसरन बरसीम व
जौ का चारा| (ग) दाने में अचानक बदलाव| (घ) पेट के कीड़ों में संक्रमण| (ङ)
जब पशु अधिक चारा खाने के बाद पानी पीए| |
138 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
पशुओं में अफारा होने के क्या-क्या लक्षण है? |
लक्षण निम्नलिखित है:- (क) वाई कूख में सूजन| (ख)
पशु बार-बार गैस छोड़ता है व जमीन पर खुर मारता है बेअरामी होती है| (ग)
सांस लेने में तकलीफ| (घ) जानवर दाना नहीं खाता नहीं जुगाली करता है| (ङ)
अफारा भेड़ों में आम होता है व मृत्यु होती ज्यादातर चरागाह में ले जाने के
बाद| |
139 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
अफारा होने पर पशु का किस तरह बचाव किया जा सकता है? |
यदि समय पर अफारे का ईलाज नहीं किया गया तो पशु मर
जाता है| निम्नलिखित उपाय सहायक है:- (क) पशु को खिलाना बंद कर देना चाहिए व
पशुचिकित्सक को सम्पर्क करना चाहिए| (ख) नाल देते समय पशु की जीभ नहीं
पकड़नी चाहिए| (ग) पशु को बैठने नहीं देना चाहिए उसे थोड़ा-थोड़ा चलाना चाहिए|
(घ) जब पशु में अफारे के लक्षण समाप्त हो जाए उसके बाद 2-3 दिनों में
धीरे-धीरे पशु को चारा देना चाहिए| |
140 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
अफारे से बचने के लिए आम क्या-क्या उपाय सहै? |
आम उपाय/परहेज़ निम्नलिखित है:- (क) चारा खिलाने से
पहले पानी पिलाना चाहिए| (ख) दाना खिलने में अचानक बदलाव न करे| (ग)
गला-सड़ा दाना न दें| (घ) चारा पूरा पका हुआ हो| (ङ) पशु को हर रोज़ व्यायाम
करवाना चाहिए| |
141 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
पशुओं में गलघोंटू रोग होने का खतरा कब रहता है? |
गलघोंटू रोग आमतौर पर बरसात के मौसम में होता है|
ज्यादा बिमारी फैलने का खतरा गर्म व अधिक आर्धरता वाले क्षेत्रों में रहता
है| इसे (ब्लेक लैग) के नाम से भी जाना जाता है| |
142 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
गलघोंटू रोग किस जीवाणु के कारण होता है? |
यह रोग गोजातीय पशुओं में ज्यादा होता है व
क्लासटीडीयम सैपटीकम जीवाणु द्वारा होता है यह जीवाणु रोग ग्रसित पशु की
मांस पेशियों में तथा मिट्टी व खाने की चीजों में पाया जाता है| |
143 |
पशुपालन हेतु सामान्य प्रश्न |
पशुओं में गलघोंटू रोग के आम लक्षण क्या है? |
आम लक्षण निम्नलिखित है:- (क) पिछले पुट्ठे का
फड़फड़ाना व कम्पन होना| (ख) ग्लूटियल गले की मांस पेशियों में सूजन होना|
(ग) शरीर की भारी मांस पेशियों में सूजन जैसे गर्दन, कंधा, पीठ छाती आदि|
(घ) शुरुआत में सूजन वाला भाग सख्त व दर्द भरा होता है परन्तु बाद में
मृत्यु पहले ठंडा व दर्दरहित हो जाता है| (ङ) रोग ग्रसित भाग को दबाने पर
चुर-चुर की आवाज़ आती है| (च) पशु 48 घण्टों के अन्दर मर जाता है| | Article Credit:wikipedia.org | |
Sir Meri buffelo byne ke bad dudh nahi Deti usaka bchha 1 mahine bad mar gya koiKupay 9761546385
ReplyDelete