Thursday, December 12, 2013

गाय-बैल और भैंसों का विकास

देश में देसी नस्ल के गाय-बैलों की 27 और भैंसों की 7 नस्लें उपलब्ध हैं। दूध का उत्पादन बढ़ाकर प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता बढ़ाने के उद्देश्य से गाय, बैल और भैंसों में आनुवांशिक सुधार लाने के कई केंद्रीय और केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इस बात के भी प्रयत्न किए जा रहे हैं कि जिन देशी गायों, बैलों और भैंसों की प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है, उनका संरक्षण उनके क्षेत्रों में किया जाए। भावी नस्ल में सुधार लाने के लिए उत्तम नस्ल के सांड़ और गाय पैदा करने हेतु प्रशीतित भ्रूण उपलब्ध कराने की क्षमता के आधार पर विशिष्ट पशुओं का चयन और पंजीकरण किया जाता है।

गाय, बैल और भैंस प्रजनन की राष्ट्रीय परियोजना के अंतर्गत कार्यक्रम को लागू करने वाली एजेंसियों को शत-प्रतिशत सहायता दी जाती है। इस परियोजना में 28 राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश भाग ले रहे हैं। 2007-08 तक इन राज्यों को 398.36 करोड़ रूपए वित्तीय सहायता के रूप जारी किया जा चुका है। वित्तीय वर्ष 2008-09 में 89.70 करोड़ रूपए के आरई के मुकाबले 87.37 करोड़ रूपए जारी किए गए।

मवेशियों और भैंसों के श्रेष्ठ जनन द्रव्य (जर्म प्लाज्म) की पहचान और उसका पता लगाने, बेहतर जनन द्रव्य स्टॉक के प्रचार, उसके क्रय-विक्रय के नियमन, प्रजनकों की संस्थाएं बनाने में सहायता और देश के विभिन्न हिस्सों में बेहतर किस्म के सांडों की आपूर्ति के लिए एक केंद्रीय रेवड़ पंजीकरण योजना भी चलाई जा रही है। सरकार ने चार प्रजनन क्षेत्रों-रोहतक, अहमदाबाद, ओंगोल और अजमेर में केंद्रीय रेवड़ पंजीकरण इकाइयों की स्थापना की है। इन गाय प्रजातियों, जैसे-गिर कंकरेज, हरियाणा एवं ओंगोल तथा भैंसों की प्रजातियों (जैसे-जस्फराबादी, मेहसाणी, मुर्रा और सुरती) के पंजीकरण के लिए कुल मिलाकर 92 दुग्ध रिकार्डिंग केंद्र काम कर रहे हैं। वर्ष 2007-08 के दौरान 14711 पशुओं का प्राथमिक पंजीकरण किया गया।

देश में सात केंद्रीय पशु प्रजनन फार्म हैं। ये सूरतगढ़ (राजस्थान), चिपलीमा और सुनबेडा (उड़ीसा), धमरोड़ (गुजरात), हैसरघट्टा (कर्नाटक), अलमाडी (तमिलनाडु) और अंदेशनगर (उत्तर प्रदेश) में स्थित हैं, जो गाय, बैल और भैंस प्रजनन की राष्ट्रीय परियोजना के अंतर्गत गायों, बैलों तथा भैंसों के वैज्ञानिक प्रजनन कार्यक्रमों और उम्दा नस्ल के सांड़ों, गायों, बैलों और भैंसों के प्रजनन के लिए ऊंची नस्ल के सांड़ और प्रशीतित वीर्य के कार्य में लगे हैं। यह फार्म किसानों और प्रजकों को प्रशिक्षण भी देते हैं। 2008-09 के दौरान इन फार्मों ने देश के विभिन्न भागों में कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम के अंतर्गत इस्तेमाल करने के लिए 346 बछड़े तैयार किए तथा उच्च प्रजाति के 245 सांड़ सप्लाई किए। फार्म प्रशिक्षण प्रेक्टिस और वैज्ञानिक प्रजनन प्रदर्शन में 3711 व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया गया। डेयरी फार्म प्रबंधन में 2912 किसानों को प्रशिक्षित किया गया।

हेस्सरगटटा (बेंगलुरू) स्थित सेंट्रल फ्रोजेन सीमेन प्रोडक्शन एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (सीएफएसपी और टीआई) कृत्रिम गर्भाधान के लिए देसी, विदेशी संकर नस्ल के जानवरों और मुर्ग भैसों के हिमशीतित वीर्य तैयार कर रहा है। संस्थान राज्य सरकारों के तकनीकी अधिकारियों को वीर्य प्रौद्योगिकी में प्रशिक्षण प्रदान करने के अलावा देश में तैयार हिमशीतित वीर्य और कृत्रिम गर्भाधान के उपकरणों (एआई) के परीक्षण केंद्र का भी कार्य करता है। संस्थान 2008-09 में 8.66 लाख खुराक तैयार करने के अलावा 227 लोगों हिमशीतित वीर्य प्रौद्योगिकी और यंत्रों के बारे में प्रशिक्षण प्रदान किया।



Article Credit:http://hi.wikibooks.org/wiki/

No comments:

Post a Comment