उत्तर प्रदेश का स्थान दुग्ध उत्पादकों में शीर्ष पर है। भारत में मवेशियों की 25 सुपरिभाषित नस्लें तथा भैंसों की छ: सुपरिभाषित नस्लें हैं। कुछ नस्लें डेयरी किस्म की है जिनमें मादा (गाय भैंस) काफी अधिक मात्रा में दूध देती है तथा नर मवेशी काम करता है। अधिकांश नस्लें सूखा किस्म की हैं जिनमें मादा गाय भैंसे अधिक दुग्ध उत्पादन नहीं करती किंतु बैलों की किस्म उत्कृष्ट होती हैं। ऐसी "दोहरा प्रयोजन" नस्लें भी है जहां मादा मवेशी दूध की संतुलित मात्रा का उत्पादन करते हैं तथा नर (बैंल) मवेशी अच्छे किस्म के काम करने वाले बैल होते है। सुपरिभाषित नस्लें देश के शुष्क भागों में पाई जाती हैं। जबकि दक्षिण तथा पूर्वी भारत जैसे भारी वर्षा पात के क्षेत्रों में रहने वाले मवेशी किसी निश्चित नस्ल से संबंधित नहीं होते।
मवेशी को चारा पोषित करने के तरीके, काफी पारम्परिक होते हैं। कृषक अपने स्वयं के तत्व (संघटक) का चयन करते है तथा अपना स्वयं का चारा मिश्रण बनाते हैं। मवेशियों की उत्पादकता उनकी निकृष्ट जीन संबंधी बनावट (उत्पत्तिमूलक जीन) के कारण समिति होती है। इसका अर्थ है कि यदि ऐसे मवेशियों को उच्च कोटि का मिश्रित चारा (औद्योगिक चारा) भी दिया जाए, तब भी संभवत: उत्पादकता में वृद्धि नहीं होगीं।
खली, मक्का तथा अनाज उप उत्पाद मवेशी चारे के महत्वपूर्ण उत्पादन संघटक हैं। मोटे अनाज तथा बिनौलों को अक्सर संतुलित चारा मिश्रण बनाने के लिए इसमें मिश्रित किया जाता है। अन्य उत्पाद जैसे आम की गुठली की गिरी, महुआ, खली, नीम खली, सोया गूदा, गेंहू की भूसी, ठूंठ, टूटे चावल, अंकुरित गेहूं तथा छांछ के पाउडर का प्रयोग भी पशुओं के चारे में किया जा सकता है। वाणिज्यकि मवेशी चारे में कॉर्नस्टार्च, तरल गलूकोस, डेक्सट्रोज, सोर्बिटोल, फैब्रिलोस, माल्टोडेक्सट्रिन, कॉन ग्लटन चारा, सोय चारा तथा रेप चारा जैसी कच्ची सामग्री शामिल की जाती हैं। मवेशी अनुपूरक के अभिग्रहण से मवेशियों के सामान्य स्वास्थ्य में सुधार होता है तथा इससे अच्छी किस्म के दूध का अधिक उत्पादन होता है जिसमें वसा, प्रोटीन तथा मिठास की मात्रा अधिक होती हैं।
मवेशी कृषकों के लिए सुझाव:
नवजात बछडों-बछियों को जन्म के आधे घंटे के भीतर कोलोस्ट्रम खिलाएं और उनकी अच्छी तरह सफाई करें।
छ: महीने की आयु तक बछडा-बछिया की डिवोर्मिंग (कीट समाप्ति) प्रायिक उंतरालों पर करें।
बार्न या पेनों (तबेलों) में रहने वाले पशुओं की असंक्रामकों से नियमित सफाई करे तथा उन्हें गर्म रखें।
स्वच्छ पेय जल की उपलब्धता सुनिश्चित करें।
जल की नांदों की नियमित सफाई आवश्यक हैं।
बडे पशुओं को पैर तथा मुंह के रोग (एफएमडी) होने की अधिक संभावना हैं। कृषकों को सलाह दी जाती हैं कि वे पशुओं को इस रोग के टीके लगवाएं।
गाय तथा भैंसे, जिन्हें प्रात: गर्मी लगती है, उनका गर्भाधान सांय तथा विपर्ययेन करवाएं।
गाय तथा भैसों में उत्पत्ति उन्नयन तथा वर्धित दुग्ध उत्पादन के लिए कृषकों को सलाह दी जाती है कि वे गांवों में अदना मवेशी/ बैल के साथ प्रजनन करवाने से बचे।
दुग्धधारी तथा गर्भधारक पशुओं को नियमित रूप से खनिज मिश्रण पोषित करें।
Article Credit:http://archive.india.gov.in/hindi/citizen/agriculture/index.php?id=21
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