गाभिन भैंसों की देखभाल
गर्भधारण से भैंस के ब्याने तक के समय को गर्भकाल कहते हैं। भैंस में गर्भकाल 310-315 दिन तक का होता है। गर्भधारण की पहली पहचान भैंस में मदचक्र का बन्द होना है परन्तु कुछ भैंसों में शान्त मद होने के कारण सगर्भता का पता ठीक प्रकार से नहीं लग पाता। अत: गर्भाधान के 21 वें दिन के आसपास भैंस को दोबारा मद में न आना गर्भधारण का संकेत मात्रा है, विश्वसनीय प्रमाण नहीं। अत: किसान भार्इयों को चाहिए कि गर्भाधान के दो महीने बाद डाक्टर द्वारा गर्भ जाँच अवश्य करवायें।
गाभिन भैंस की देखभाल में तीन प्रमुख बातें आती है:
1. पोषण प्रबन्ध
2. आवास प्रबन्ध और
3. सामान्य प्रबन्ध।
पोषण प्रबन्ध
गाभिन भैंस की देखभाल का प्रमुख तथ्य यह है कि भैंस को अपने जीवन यापन व दूध देने के अतिरिक्त बच्चे के विकास के लिए भी पोषक तत्वों और ऊर्जा की आवश्यकता होती है। गर्भावस्था के अंतिम तीन महीनों में बच्चे की सबसे अधिक बढ़वार होती है। इसलिए भैंस को आठवें, नवें और दसवें महीने में अधिक पोषक आहार की आवश्यकता पड़ती है। इसी समय भैंस अगले ब्यांत में अच्छा दूध देने के लिये अपना वजन बढ़ाती है तथा पिछले ब्यांत में हुर्इ पोषक तत्वों की कमी को भी पूरा करती है। यदि इस समय खान-पान में कोर्इ कमी रह जाती है तो निम्नलिखित परेशानियाँ हो सकती हैं|
Ø बच्चा कमजोर पैदा होता है तथा वह अंधा भी रह सकता है।
Ø भैंस फूल दिखा सकती है
Ø प्रसव उपरांत दुग्ध ज्वर हो सकता है
Ø जेर रूक सकती है
Ø बच्चेदानी में मवाद पड़ सकती है तथा ब्यांत का दूध उत्पादन भी काफी घट सकता है।
गर्भावस्था के समय भैंस को संतुलित एवं सुपाच्य चारा खिलाना चाहिए। दाने में 40-50 ग्राम खनिज लवण मिश्रण अवश्य मिलाना चाहिए।
आवास प्रबन्ध
Ø गाभिन भैंस को आठवें महीने के बाद अन्य पशुओं से अलग रखना चाहिए।
Ø भैंस का बाड़ा उबड़-खाबड़ तथा फिसलन वाला नहीं होना चाहिए।
Ø बाड़ा ऐसा होना चाहिए जो वातावरण की खराब परिस्थितियों जैसे अत्याधिक सर्दी, गर्मी और बरसात से भैंस को बचा सके और साथ में हवादार भी हो।
Ø बाडे़ में कच्चा फर्श/रेत अवश्य हो। बाड़े में सीलन नहीं होनी चाहिए। स्वच्छ पीने के पानी का प्रबन्ध भी होना चाहिए।
सामान्य प्रबन्ध
Ø भैंस अगर दूध दे रही हो तो ब्याने के दो महीने पहले उसका दूध सुखा देना बहुत जरूरी होता है। ऐसा न करने पर अगले ब्यांत का उत्पादन काफी घट जाता है।
Ø गर्भावस्था के अंतिम दिनों में भैंस को रेल या ट्रक से नहीं ढोना चाहिए। इसके अतिरिक्त उसे लम्बी दूरी तक पैदल भी नहीं चलाना चाहिए।
Ø भैंस को ऊँची नीची जगह व गहरे तालाब में भी नहीं ले जाना चाहिए। ऐसा करने से बच्चेदानी में बल पड़ सकता है। लेकिन इस अवस्था में प्रतिदिन हल्का व्यायाम भैंस के लिए लाभदायक होता है। गाभिन भैंस को ऐसे पशुओं से दूर रखना चाहिए जिनका गर्भपात हुआ हो।
Ø पशु
के गर्भधारण की तिथि व उसके अनुसार प्रसव की अनुमानित तिथि को घर के
कैलेण्डर या डायरी में प्रमुखता से लिख कर रखें भैंस की गर्भावस्था लगभग
310 दिन की अवधि की होती है इससे किसान भाई पशु के ब्याने के समय से पहले
चौकन्ने हो जायें व बयाने के दोरान पशु का पूरा ध्यान रखें ।
Ø गाभिन
भैंस को उचित मात्रा में सूर्य की रोशनी मिल सके इसका ध्यान रखें। सूर्य
की रोशनी से भैंस के शरीर में विटामिन डी 3 बनता है जो कैल्शियम के संग्रहण
में सहायक है जिससे पशु को बयाने के उपरांत दुग्ध ज्वर से बचाया जा सकता
है। ऐसा पाया गया है की गर्भावस्था के अंतिम माह में पशु चिकित्सक द्वारा
लगाया जाने वाला विटामिन ई व सिलेनियम का टिका प्रसव उपरांत होने वाली
कठिनाईयों जैसे की जेर का न गिरना इत्यादि में लाभदायक होता है। कुछ किसान
भाई भैंस को कैल्शियम की दवा पिलाते है जोकि काफी महँगी पार्टी है इसकी जगह
पानी के साथ 5 से 10 ग्राम चूना मिलाकर दिया जा सकता है।
किसान भाईयों को संभावित प्रसव के लक्षणों का ज्ञान भी आवश्यक होना चाहिए जोकि इस प्रकार हैं ।
- लेवटि का पूर्ण विकास ।
- पुटठे टूटना यानि की पूंछ के आस पास मांसपेशियों का ढिला हो जाना |
- खाने पीने में रूचि न दिखाना व न चरना ।
- बार बार उठना बैठना ।
- योनिद्वार का ढिलापन, सोजिश व् तरल पदार्थ का बहाव होनाArticle Credit:http://www.buffalopedia.cirb.res.in
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