पशुपालन
डेयरी कार्यकलाप
1. डेयरी कार्यकलाप क्यांें करें?
1.1 लघु एवं सीमान्त कृषकों तथा खेतिहर मजदूरों के लिए डेयरी गतिविधि सहायक आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है. मिट्टी की उर्वरा-शक्ति और फसल की उपज बढ़ाने के लिए पशुपालन से प्राप्त होने वाली खाद उत्तम जैविक स्रोत है. इसके अलावा गोबर गैस से घरेलू इंर्धन प्राप्त होता है और उससे कुओं से पानी खींचने के लिए इंजन भी चलाया जाता है. कृषि-कार्य से प्राप्त होने वाले अतिरिक्त चारे और बाईप्रोडक्ट का कारगर इस्तेमाल पशुओं के आहार के लिए किया जाता है. कृषि-कार्य एवं परिवहन के लिए भारवहन का लगभग सारा कार्य बैलों के जरिए होता है. चूँकि कृषि-कार्य सामान्यतया मौसमी होता है, अत: डेयरी गतिविधि के जरिए अनेक लोगों को पूरे वर्ष रोजगार मुहैया कराना संभव है. इस प्रकार यह वर्षपर्यन्त रोजगार पाने का एक कारगर जरिया है. डेयरी गतिविधि से लाभान्वित होने वाले मुख्यत: छोटे और सीमान्त किसान व भूमिहीन श्रमिक होते हैं. 2 दुधारू भैंसों की एक इकाई से किसान को प्रतिवर्ष रु.12000/- का कुल लाभ प्राप्त हो सकता है. दो भैंसों की खरीद के लिए रु.18,223/- की पूँजी अपेक्षित है. ऋण और ब्याज की चुकौती के रूप में प्रतिवर्ष रु.4294/- की रकम अदा करने के बाद भी किसान को प्रतिवर्ष लगभग रु.6000-9000/- का शुद्ध लाभ प्राप्त हो सकता है. (विस्तृत ब्योरे के लिए कृपया संलग्न मॉडल योजना देखें) यदि पशुओं की नस्ल अच्छी हो, उत्तम प्रबंध-कौशल हो और विपणन की बेहतर संभावना हो, तो और ज्यादा लाभ कमाया जा सकता है
1.2 विश्व बैंक के पुराने आकलन के अनुसार भारत की 94 करोड़ जनसंख्या का लगभग 75 प्रतिशत हिस्सा 5.87 मिलियन गाँवों में रहता है, जो 145 मिलियन हेक्टेयर कृषि-भूमि पर खेती करता है. खेत का औसत आकार लगभग1.66 हेक्टेयर है. 70 मिलियन ग्रामीण परिवारों में से 42 प्रतिशत परिवार 2 हेक्टेयर तक की भूमि पर खेती करते हैं और 37 प्रतिशत परिवार भूमिहीन हैं. इन भूमिहीन और छोटे किसानों के पास कुल पशुओं का 53 प्रतिशत हिस्सा है और देश के कुल दुग्ध-उत्पादन के 51 प्रतिशत हिस्से का उत्पादन भी इन्हीं भूमिहीन और छोटे किसानों द्वारा किया जाता है. इस प्रकार छोटे व सीमान्त किसान तथा भूमिहीन खेतिहर मजदूर देश के दुग्ध-उत्पादन में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. डेयरी गतिविधि को उन बड़े शहरों के आसपास मुख्य कार्यकलाप के रूप में भी चलाया जा सकता है, जहाँ दूध की भारी माँग है.
2. डेयरी कार्यकलाप की संभावना और इसका राष्ट्रीय महत्त्व
2.1 एक अनुमान के अनुसार, देश में कुल दुग्ध-उत्पादन वर्ष 2001-02 के दौरान 84.6 मिलियन मेट्रिक टन था. इस उत्पादन के हिसाब से प्रति व्यक्ति उपलब्धता 226 ग्राम थी, जबकि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की सिफारिश के अनुसार प्रति व्यक्ति दूध की न्यूनतम आवश्यकता 250 ग्राम होती है. इस प्रकार देश में दुग्ध-उत्पादन बढ़ाने की प्रचुर संभावना मौजूद है. 1992 की पशुगणना के मुताबिक 3 वर्ष से अधिक उम्र की दुधारू गायों और भैंसों की संख्या क्रमश: 62.6 मिलियन और 42.4 मिलियन थी.
2.2 दुग्ध-उत्पादन हेतु बुनियादी सुविधाएँ जुटाने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारें पर्याप्त वित्तीय सहायता प्रदान कर रही हैं. पशुपालन और डेयरी गतिविधियों के लिए नौवीं पंचवर्षीय योजना में रु.2345 करोड़ का परिव्यय निर्धारित किया गया था.
3. डेयरी कार्यकलाप हेतु बैंकों / नाबार्ड से उपलब्ध सहायता
3.1 कृषि ऋण के क्षेत्र में नीति, योजना और परिचालन से जुड़े सभी मुद्दों के संबंध में नाबार्ड एक शीर्षस्तरीय संस्था है. निवेश ऋण और उत्पादन ऋण प्रदान करने वाली संस्थाओं के लिए नाबार्ड एक शीर्षस्तरीय पुनर्वित्त एजेन्सी के रूप में कार्य करता है. नाबार्ड अपने प्रधान कार्यालय स्थित तकनीकी सेवा विभाग और क्षेत्रीय कार्यालयों के तकनीकी कक्षों के जरिए परियोजनाओं की तैयारी और मूल्यांकन द्वारा विकास-कार्यों को बढ़ावा देता है.
3.2 डेयरी कार्यकलाप आरंभ करने के लिए बैंकों से ऋण मिलता है, जिसके लिए बैंकों को नाबार्ड का पुनर्वित्त उपलब्ध है. बैंक ऋण प्राप्त करने के लिए किसान को अपने इलाके के वाणिज्यिक बैंक या सहकारी बैंक की निकटतम शाखा को निर्धारित प्रपत्र में आवेदन देना चाहिए. आवेदन-पत्र का प्रारूप वित्तपोषक बैंकों की शाखाओं में मिलता है. बैंक ऋण प्राप्त करने के लिए परियोजना रिपोर्ट तैयार करने में बैंक का तकनीकी अधिकारी अथवा प्रबंधक किसानों की मदद कर सकता है.
3.3 भारी लागत वाली डेयरी योजनाओं के लिए विस्तृत रिपोर्ट बनाना अपेक्षित है. वित्तीय मदों में पूँजीगत परिसंपत्तियों, जैसे - दुधारू पशुओं की खरीद, शेड का निर्माण, उपकरणों की खरीद, आदि को शामिल करना होता है. एक / दो माह की आरंभिक अवधि के दौरान पशुओं के आहार की लागत को पूँजीकृत किया जाता है, जिसे मीयादी ऋण के रूप में दिया जाता है. ऋण के लिए भूमि-विकास, बाड़ा लगाना, कुओं की खुदाई, डीजेल इंजिन / पंपसेट स्थापित करना, बिजली का कनेक्शन, सहायकों का निवास-स्थान, गोदाम, परिवहन हेतु वाहन और दुग्ध-प्रसंस्करण जैसी सुविधाओं पर विचार किया जा सकता है. जमीन की लागत को ऋण के घटक के रूप में शामिल नहीं किया जाता. तथापि, यदि भूमि की खरीद डेयरी फार्म स्थापित करने के लिए की जाती है, तो इस लागत को परियोजना की कुल लागत के 10 तक पार्टी की मार्जिन राशि के रूप में माना जा सकता है.
4. बैंक ऋण के लिए योजना तैयार करना
4.1 कोई भी लाभार्थी राज्य सरकार के पशुपालन विभाग, जिला ग्रामीण विकास एजेन्सी (डीआरडीए), एसएलपीपी, आदि के स्थानीय तकनीकी स्टाफ तथा दुग्ध सहकारी समिति / संघ / परिसंघ / वाणिज्यिक डेयरी कृषकों से सलाह-मशवरा कर योजना तैयार कर सकता है. यदि संभव हो, तो लाभार्थियों को प्रगतिशील डेयरी किसानों और अपने नजदीकी सरकारी डेयरी फार्म / सैनिक डेयरी फार्म अथवा कृषि विश्वविद्यालय के डेयरी फार्म से मिलकर डेयरी कार्यकलाप की लाभप्रदता के बारे में चर्चा करनी चाहिए. डेयरी कार्यकलाप का अच्छा व्यावहारिक प्रशिक्षण और पर्याप्त अनुभव बहुत जरूरी है. राज्य सरकार के डेयरी विकास विभाग और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के प्रयासों से गाँवों में स्थापित दुग्ध सहकारी समितियाँ सभी प्रकार की सहायता, विशेषकर दूध के विपणन से जुड़ी सहायता उपलब्ध कराती हैं. इस प्रकार की समिति या पशु-चिकित्सा केन्द्र और कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र से डेयरी फार्म की निकटता सुनिश्चित की जानी चाहिए. यदि डेयरी फार्म किसी शहर या नगर के निकट स्थित हो, तो स्वाभाविक रूप से दूध की अच्छी-खासी माँग होती है.
4.2 डेयरी-योजना में जमीन, मवेशी बाज़ार, जल की उपलब्धता, पशु-आहार, चारा, पशु-चिकित्सा, प्रजनन सुविधाओं, विपणन से जुड़े पहलुओं, प्रशिक्षण सुविधाओं, किसान के अनुभव और राज्य सरकार, दुग्ध समिति / दुग्ध संघ या दुग्ध परिसंघ से उपलब्ध सहायता के बारे में जानकारी शामिल की जानी चाहिए.
4.3 खरीदे जाने वाले पशुओं की संख्या और प्रकार, उनकी नस्ल, उत्पादन के स्तर, लागत और अन्य जरूरी साधनों तथा उत्पादन से जुड़ी लागत का पूर्ण ब्योरा भी योजना में दिया जाना चाहिए. इन सबके आधार पर परियोजना की कुल लागत, लाभार्थी द्वारा दी जाने वाली मार्जिन राशि, आवश्यक बैंक ऋण, अनुमानित वार्षिक व्यय, आय, लाभ एवं हानि की विवरणी, चुकौती-अवधि, आदि की गणना की जा सकती है और इन्हें परियोजना-रिपोर्ट में दर्शाया जा सकता है. डेयरी विकास योजनाओं के लिए तैयार किया गया फॉर्मेट अनुबंध-I में दर्शाया गया है.
5. बैंकों द्वारा योजनाओं की संवीक्षा
ऊपर बताए गए स्वरूप में तैयार की गई योजना को निकटतम बैंक शाखा में प्रस्तुत किया जाना चाहिए. निर्धारित आवेदन फॉर्म में योजना के ब्योरे को भरने के लिए बैंक अधिकारी की मदद ली जा सकती है. तत्पश्चात् तकनीकी साध्यता और आर्र्थिक लाभप्रदता देखने के लिए बैंक योजना की जाँच-परख करेगा.
(क) तकनीकी साध्यता - इसमें मुख्य रूप से निम्नलिखित बातें देखी जाएँगी -
1. पशु-चिकित्सा केन्द्र, प्रजनन केन्द्र, दुग्ध संग्रहण केन्द्र और वित्तपोषक बैंक की शाखा से चुने गए क्षेत्र की निकटता.
2.णनजदीकी मवेशी बाज़ार में अच्छी नस्ल / उत्कृष्ट कोटि के पशुओं की उपलब्धता. गाय-भैंसों की महत्त्वपूर्ण नस्लों से संबंधित पूर्ण ब्योरा अनुबंध-II में दर्शाया गया है. गाय-भैंसों की विभिन्न नस्लों की प्रजनन-क्षमता और उत्पादकता का ब्योरा अनुबंध-III में दिया गया है.
3. प्रशिक्षण-सुविधाओं की उपलब्धता.
4.अच्छे चारागाहों / चराई-भूमि की उपलब्धता.
5.हरा / सूखा चारा, दाना (रातिब), औषधियाँ, आदि.
6.योजना-क्षेत्र के निकट पशु-चिकित्सा केन्द्र / प्रजनन केन्द्र और दुग्ध विपणन सुविधाओं की उपलब्धता.
(ख) आर्थिक लाभप्रदता - इसमें मुख्य रूप से निम्नलिखित बातें देखी जाएँगी -
1.ण इकाई लागत - कुछ राज्यों के संबंध में दुधारू पशुओं की औसत इकाई लागत अनुबंध-IV में दी गई है.
2.णआहार और चारा, पशु-चिकित्सा, पशुओं के प्रजनन, बीमा, मजदूरी, आदि से जुड़ी लागतें और अन्य ऊपरी खर्च.
3.उत्पादन लागत, जैसे- दूध का बिक्री-मूल्य, खाद, बोरियाँ, बछड़े / बछड़ियाँ, अन्य विविध मदें, आदि.
5.नकदी प्रवाह का विश्लेषण.
6. चुकौती अनुसूची (अर्थात् मूलधन और ब्याज की चुकौती का ब्योरा).
अन्य दस्तावेज़, जैसे - ऋण आवेदन फॉर्म, प्रतिभूति / जमानत से जुड़े पहलुओं, मार्जिन राशि की आवश्यकता, आदि की भी जाँच की जाती है. योजना का मूल्यांकन करने के लिए योजना क्षेत्र की फील्ड विजिट की जाती है, ताकि तकनीकी-आर्थिक व्यवहार्यता का अध्ययन किया जा सके. दो पशुओं की इकाई और 10 भैंसों की लघु डेयरी इकाई का मॉडल आर्थिक विवरण अनुबंध V और VI में दिया गया है.
6. बैंक ऋण की मंजूरी और इसका संवितरण
तकनीकी साध्यता और आर्थिक लाभप्रदता सुनिश्चित करने के बाद बैंक द्वारा ऋण मंजूर किया जाता है. कुछ खास परिसंपत्तियों के सृजन, जैसे-शेड के निर्माण, उपकरण और मशीनरी की खरीद, पशुओं की खरीद और एक / दो माह की आरंभिक अवधि के दौरान आहार / चारे की खरीद से जुड़ी आवर्ती लागत के समक्ष दो से तीन चरणों में ऋण संवितरित किया जाता है. बैंक द्वारा निधियों के उद्देश्यपूर्ण उपयोग की जाँच की जाती है और सतत् अनुवर्ती कार्रवाई की जाती है.
7. ऋण की शर्तें - सामान्य
7.1 इकाई लागत
छह माह में एक बार विभिन्न निवेशों की इकाई लागत की समीक्षा करने के उद्देश्य से, नाबार्ड के प्रत्येक क्षेत्रीय कार्यालय ने अपने प्रभारी की अध्यक्षता में एक राज्य स्तरीय इकाई लागत समिति गठित की है, जिसमें विकास एजेन्सियों, वाणिज्यिक बैंकों और सहकारी बैंकों के अधिकारी सदस्य होते हैं. इन इकाई लागतों को बैंकों के मार्गदर्शन हेतु परिचालित किया जाता है. ये इकाई लागतें केवल निदर्शनात्मक (सांकेतिक) स्वरूप की होती हैं और परिसंपत्तियों की उपलब्धता के आधार पर बैंक किसी भी राशि का वित्तपोषण करने के लिए स्वतंत्र हैं.
7.2 मार्जिन राशि
नाबार्ड ने किसानों को तीन प्रवर्गों में परिभाषित किया है और जहाँ सब्सिडी उपलब्ध नहीं है, वहाँ लाभार्थियों से न्यूनतम तत्काल भुगतान निम्नानुसार लिया जाता है :
7.3 ब्याज की दर
भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों के अनुसार, विभिन्न एजेन्सियों द्वारा वित्तपोषित अंतिम लाभार्थियों से ली जाने वाली मौजूदा ब्याज-दर निम्नानुसार है :
7.4 प्रतिभूति
प्रतिभूति संबंधी मानदंड नाबार्ड / भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी दिशानिर्देशों के अनुरूप होंगे.
7.5 ऋण की चुकौती-अवधि
चुकौती-अवधि योजना के सकल अधिशेष (समग्र लाभ) पर निर्भर करती है. ऋणों की चुकौती सामान्यतया 5 वर्षों की अवधि में उचित मासिक / तिमाही किश्तों में की जाती है. वाणिज्यिक योजनाओं के मामले में, नकदी-प्रवाह विश्लेषण के आधार पर चुकौती-अवधि 6-7 वर्षों तक बढ़ाई जा सकती है.
7.6 बीमा
पशुओं का बीमा वार्षिक आधार पर या दीर्घावधि मास्टर पॉलिसी के अनुसार कराया जा सकता है. योजनांतर्गत और गैर-योजनांतर्गत पशुओं के लिए बीमा प्रीमियम की वर्तमान दर क्रमश: 2.25 और 4.0 है
8. डेयरी कार्यकलाप हेतु संस्तुत सामान्य प्रबंध प्रणाली
किसान
डेयरी कार्यकलाप से अधिकतम आर्थिक लाभ प्राप्त करने के लिए आधुनिक और सुस्थापित वैज्ञानिक सिद्धान्तों, प्रणालियों और कौशल का इस्तेमाल करना चाहिए. इस संबंध में कुछ प्रमुख मानदंड और सुझाई गई पद्धतियाँ नीचे वर्णित हैं :
I. आवासीय व्यवस्था :
1.सूखी और उचित तरीके से तैयार जमीन पर शेड का निर्माण किया जाए.
2.जिस स्थान पर पानी जमा होता हो और जहाँ की जमीन दलदली हो या जहाँ भारी बारिश होती हो, वहाँ शेड का निर्माण नहीं किया जाना चाहिए.
3. शेड की दीवारें 1.5 से 2 मीटर ऊँची होनी चाहिए.
4.दीवारों को नमी से सुरक्षित रखने के लिए उनपर अच्छी तरह पलस्तर किया जाना चाहिए.
5.णशेड की छत 3-4 मीटर ऊँची होनी चाहिए.
6.णशेड को पर्याप्त रूप से हवादार होना चाहिए.
7.फर्श को पक्का / सख्त, समतल और ढालुआ (3 से.मी.प्रति मीटर) होना चाहिए तथा उसपर जल-निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि वह सूखा व साफ-सुथरा रह सके.
8.पशुओं के खड़े होने के स्थान के पीछे 0.25 मीटर चौड़ी पक्की नाली होनी चाहिए.
9. प्रत्येक पशु के खड़े होने के लिए 2 X 1.05 मीटर का स्थान आवश्यक है.
10. नाँद के लिए 1.05 मीटर की जगह होनी चाहिए. नाँद की ऊँचाई 0.5 मीटर और गहराई 0.25 मीटर होनी चाहिए.
11. नाँद, आहार-पात्र, नाली और दीवारों के कोनों को गोलाकार किया जाना चाहिए, ताकि उनकी साफ-सफाई आसानी से हो सके.
12.णप्रत्येक पशु के लिए 5-10 वर्गमीटर का आहार-स्थान होना चाहिए.
13.गर्मियों में छायादार जगह / आवरण और शीतल पेयजल उपलब्ध कराया जाना चाहिए.
14.जाड़े के मौसम में पशुओं को रात्रिकाल और बारिश के दौरान अंदर रखा जाना चाहिए.
15. प्रत्येक पशु के लिए हर रोज़ बिछावन उपलब्ध कराया जाना चाहिए.
16. शेड और उसके आसपास स्वच्छता रखी जानी चाहिए.
17.दड़बों और शेड में मैलाथियन अथवा कॉपर सल्फेट के घोल का छिड़काव कर बाहरी परजीवियों, जैसे - चिचड़ी, मक्खियों, आदि को नियंत्रित किया जाना चाहिए.
18. पशुओं के मूत्र को बहाकर गड्ढे में एकत्र किया जाना चाहिए और तत्पश्चात् उसे नालियों / नहरों के माध्यम से खेत में ले जाना चाहिए.
19. गोबर और मूत्र का उपयोग उचित तरीके से किया जाना चाहिए. गोबर गैस संयंत्र की स्थापना आदर्श उपाय है. जहाँ गोबर गैस संयंत्र स्थापित न किए गए हों, वहाँ गोबर को पशुओं के बिछावन एवं अन्य अवशिष्ट पदार्थों के साथ मिलाकर कम्पोस्ट तैयार किया जाना चाहिए.
20.पशुओं को पर्याप्त स्थान उपलब्ध कराया जाना चाहिए. ( भिन्न-भिन्न प्रकार एवं आयु-वर्ग वाले संकर नस्ल के मवेशियों के लिए आवश्यक स्थान का विवरण अनुबंध-VII में दिया गया है.)
II. पशुओं का चयन :
1.ऋण प्राप्त होने के तुरंत बाद विश्वसनीय पशुपालक अथवा निकटतम मवेशी बाज़ार से मवेशियों की खरीद की जानी चाहिए.
2. बैंक के तकनीकी अधिकारी अथवा राज्य सरकार / जिला परिषद, आदि के पशु-चिकित्सा अधिकारी / पशुपालन अधिकारी की मदद से स्वस्थ एवं ज्यादा दूध देने वाले पशुओं का चयन किया जाना चाहिए.
3. हाल ही में बछड़ा ब्याने वाली गाय-भैंसों की खरीद की जानी चाहिए ( दूसरे / तीसरे ब्यान वाली)
4. पशुओं की खरीद से पहले उन्हें लगातार तीन बार दुहकर दूध की वास्तविक मात्रा का पता लगाया जाना चाहिए.
5. नए खरीदे गए पशुओं की पहचान के लिए उनपर निशान लगाया जाना चाहिए (कान में निशान लगाकर या गोदना गोदकर).
6. नए खरीदे गए पशुओं को रोग-प्रतिरोधक टीका लगाया जाना चाहिए.
7.नए खरीदे गए पशुओं का मुआयना लगभग दो हफ्तों तक अलग-से किया जाना चाहिए और तत्पश्चात् उन्हें मवेशियों के सामान्य झुंड में शामिल किया जाना चाहिए.
8. कम-से-कम दो दुधारू पशुओं की खरीद की जानी चाहिए.
9. पहली खरीद के 5-6 माह बाद दूसरे पशु / दूसरे झुंड की खरीद की जानी चाहिए.
10. चूँकि भैंसों का ब्यान (बछड़ा देना) मौसमी होता है, अत: उनकी खरीद जुलाई से फरवरी के दौरान की जानी चाहिए.
11.जहाँ तक संभव हो, दूसरे पशु की खरीद तब की जानी चाहिए जब पहले पशु के दूध देने का समय खत्म होने वाला हो, ताकि दूध के उत्पादन एवं आय-अर्जन में निरंतरता बनी रहे. इससे बाँठ (दूध न देने वाले) पशुओं के रख-रखाव के लिए धनस्रोत सुनिश्चित हो सकेगा.
12.विवेकपूर्ण तरीके से अनुत्पादक पशुओं की छँटनी.
13. 6-7 ब्यान के बाद पुराने पशुओं की छँटनी कर देनी चाहिए.ण
III. दुधारू पशुओं का आहार
1 पशुओं को सर्वोत्तम आहार एवं चारा खिलाना चाहिए.( आहार का ब्यौरा अनुबंध VIII में दिया गया है)
2.नियंत्रित रूप में पर्याप्त हरा चारा दिया जाना चाहिए.
3.जहाँ तक संभव हो, स्वयं की उपलब्ध जमीन पर ही हरा चारा उगाना चाहिए.
4.चारे की सही समय पर कटाई की जानी चाहिए.
5.मोटे चारे को खिलाने से पहले उसे भूसी/कुट्टी के रूप में काटा जाना चाहिए.
6.अनाज और दाने को दल लेना चाहिए.
7.खल्ली को पपड़ीदार और भुरभुरा होना चाहिए.
8.दाने के मिश्रण (रातिब) को खिलाने से पहले गीला कर लेना चाहिए.
9. पर्याप्त मात्रा में विटामिन और खनिज-तत्त्व देना चाहिए. दाने में खनिज-तत्त्व के मिश्रण के अलावा थोड़ा-सा नमक भी दिया जाना चाहिए.
10.पर्याप्त मात्रा में साफ पानी पिलाया जाना चाहिए.
11. पशुओं का व्यायाम अवश्य होना चाहिए. भैंसों को रोज पानी में लोटने के लिए बाहर ले जाना चाहिए. यदि यह संभव न हो तो उनपर पर्याप्त मात्रा में पानी छिड़कना चाहिए, विशेष रूप से गर्मी के महीनों में.
12.पशुओं की दैनिक खुराक का आकलन करने के लिए यह ध्यान रखना जरूरी है कि सूखे खाद्य-पदार्थ के रूप में प्रत्येक पशु की खुराक उसके शारीरिक वजन का लगभग 2.5 से 3.0 प्रतिशत होती है.
IV. दूध दूहना
1. दिन में दो से तीन बार दूध दूहा जाना चाहिए.
2.दूध दूहने का कार्य निश्चित समय पर किया जाना चाहिए.
3.एक ही बैठक में आठ मिनट के भीतर दूध दूहने का कार्य संपन्न कर लेना चाहिए.
4. जहाँ तक संभव हो, एक ही व्यक्ति द्वारा नियमित रूप से दूध दूहा जाना चाहिए.
5.पशु को साफ-सुथरे स्थान पर दूहा जाना चाहिए.
6.थन और स्तनाग्र (चूचुक) को ऐण्टीसेप्टिक लोशन / गुनगुने पानी से धोना चाहिए और दूहने से पहले उन्हें सुखा लेना चाहिए.
7.दूध दूहने वाले व्यक्ति को कोई भी संक्रामक रोग नहीं होना चाहिए और प्रत्येक बार दूध दूहने से पहले उसे अपने हाथों को ऐण्टीसेप्टिक लोशन से धोना चाहिए.
8.दूध दूहने का कार्य पूरे हाथों से, तीव्रता से और पूरी तरह किया जाना चाहिए तथा अंत में थन को निचोड़ लेना चाहिए.
9.बीमार गायों / भैंसों को सबसे अंत में दूहा जाना चाहिए, ताकि संक्रमण को फैलने से रोका जा सके.
V. रोगों से बचाव
1.कम खुराक, बुखार, असामान्य स्राव अथवा असामान्य बर्ताव पशुओं की बीमारी के लक्षण हैं. इन लक्षणों के प्रकट होते ही सतर्क हो जाना चाहिए.
2. यदि रोग की आशंका हो, तो सहायता हेतु निकटतम पशु-चिकित्सा केन्द्र से संपर्क करना चाहिए.
3.सामान्य बीमारियों से पशुओं का बचाव किया जाना चाहिए.
4.संक्रामक रोग का प्रकोप होने पर बीमार पशुओं, संपर्क में आए पशुओं और स्वस्थ पशुओं को तुरंत अलग-अलग कर देना चाहिए और रोग-नियंत्रण के आवश्यक उपाय शुरू कर देने चाहिए. (टीकारण का कार्यक्रम अनुबंध IX में दिया गया है)
5. ब्रूसेलोसिस (Brucellosis), टी.बी.(Tuberculosis), जॉन्स डिजीज (Johne's disease), थनेला (Mastitis), आदि रोगों का परीक्षण समय-समय पर करवाया जाना चाहिए.
6. पशुओं को नियमित रूप से कृमिमुक्त (Deworm) किया जाना चाहिए.
7.आंतरिक परजीवियों का पता लगाने के लिए वयस्क पशुओं के गोबर की जाँच कराई जानी चाहिए और उचित दवाओं / औषधियों से पशुओं का उपचार किया जाना चाहिए.
8.साफ-सफाई एवं स्वच्छता का निर्वाह करने के लिए समय-समय पर पशुओं को धोया / नहलाया जाना चाहिए.ण
VI. प्रजनन संबंधी देखभाल
1.पशु पर नजदीकी नज़र रखी जानी चाहिए और उसके मदकाल में आने (गर्म होने), मदकाल की अवधि, गर्भाधान, गर्भधारण और ब्याने का रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए.
2. पशुओं का गर्भाधान समय पर कराया जाना चाहिए.
3.ब्याने के 60 से 80 दिनों के भीतर उद्दीपन / मदकाल आरंभ हो जाता है.
4. समय पर गर्भाधान कराने से ब्याने के दो-तीन महीनों के भीतर गर्भधारण कराया जा सकता है.
5. पशुओं का गर्भाधान तब कराया जाना चाहिए, जब वे मदकाल / उद्दीपन के चरम पर हों (अर्थात् मदकाल के 12 से 24 घण्टे के बीच)
6. उच्चस्तरीय वीर्य का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, विशेषकर अच्छे और तन्दुरुस्त सांडों के प्रशीतित वीर्य को तरजीह देनी चाहिए.
VII. गर्भावस्था के दौरान देखभाल
ब्याने से दो माह पूर्व गाभिन गायों पर विशेष ध्यान देना चाहिए और उन्हें पर्याप्त स्थान, आहार, जल, आदि मुहैया कराया जाना चाहिए.
VIII. दूध का विपणन
1.दूध निकालने के तुरंत बाद उसे बेचा जाना चाहिए. दुग्ध-उत्पादन और विपणन के बीच कम-से-कम अंतर रखा जाना चाहिए.
2.साफ-सुथरे बर्तनों का इस्तेमाल करना चाहिए और दूध के रख-रखाव में स्वच्छता बरती जानी चाहिए.
3. दूध की बालटी / डब्बों / बर्तनों को डिटरजेण्ट से अच्छी तरह धोना चाहिए और अंत में इन्हें क्लोराइड के घोल से खँगालना चाहिए.
4. रास्ते में / परिवहन के दौरान दूध को बहुत ज्यादा हिलने-डुलने से बचाना चाहिए.
5. दूध का परिवहन दिन के अपेक्षाकृत ठंडे समय में किया जाना चाहिए.
IX. बछड़ों की देखभाल
1. नवजात बछड़ों की देखभाल अच्छी तरह की जानी चाहिए.
2.गर्भनाल (नाभिनाल) को तेज छुरी से काटकर तुरंत उसपर आयोडीन का घोल (टिंक्चर) लगाना चाहिए, ताकि वह संक्रमण-मुक्त हो सके.
3.खीस (पहला दूध जो काफी गाढ़ा होता है) बछड़े को खिलाया जाना चाहिए.
4.यदि बछड़ा स्तनपान करने में असमर्थ है, तो दूध पीने में उसकी मदद करनी चाहिए ताकि वह जन्म के 30 मिनट के भीतर स्वयं स्तनपान कर सके.
5.यदि जन्म के तुरंत बाद बछड़े को दूध छुड़ाना जरूरी हो, तो उसे बालटी में खीस खिलाया जाना चाहिए.
6.बछड़े को जन्म से लेकर दो माह तक सूखे, साफ-सुथरे और हवादार स्थान पर अलग रखा जाना चाहिए.
7.तेज़ सर्दी या गर्मी से बछड़ों को बचाना चाहिए, विशेषकर पहले दो महीनों में.
8.बछड़ों को उनके आकार के हिसाब से अलग-अलग समूह में रखा जाना चाहिए.
9.बछड़ों को रोग-प्रतिरोधक टीके लगवाए जाने चाहिए.
10. जब बछड़े चार-पाँच दिनों के हो जाएँ, तो उनकी सींगें कटवा देनी चाहिए, ताकि वे जब बड़े होने लगें, तोे उनकी देख-भाल और रख-रखाव में सहूलियत हो सके.
11.यदि किसी विशेष कारण से कुछ बछड़ों को नहीं पाला जाना है, तो उन्हें जल्द-से-जल्द हटा देना चाहिए, विशेष रूप से नर बछड़ों को.
12.मादा बछड़ियों का पालन-पोषण उचित तरीके से किया जाना चाहिए.
अनुबंध I
योजनाएँ प्रस्तुत करने के लिए फॉर्मेट
1. सामान्य
i) प्रायोजक बैंक का नाम
ii) योजना के प्रायोजक बैंक के नियंत्रक कार्यालय का पता
iii) प्रस्तावित योजना का स्वरूप और उद्देश्य
iv) प्रस्तावित निवेश का ब्योरा
v) योजना-क्षेत्र का विवरण (जिले और विकास-खंड / प्रखंड का नाम)
vi) वित्तपोषक बैंक की शाखाओं के नाम :
vii) लाभार्थी / लाभार्थियों का स्वरूप: (व्यक्ति/ साझेदारी/कंपनी /निगम / सहकारी समिति/अन्य)
viii) क्षेत्र-आधारित योजनाओं के मामले में कमज़ोर वर्ग के ऋणकर्ता (भूमिहीन मजदूर, नाबार्ड के मानदंडों के अनुसार लघु, मझोले और बड़े किसान, अ.जा./अ.ज.जा., आदि
ix) ऋणकर्ता का विवरण (क्षेत्र-आधारित योजनाओं के मामले में लागू नहीं)
(a) क्षमता
(b) अनुभव
(c) वित्तीय सुदृढ़ता
(d) तकनीकी / अन्य विशेष योग्यताएँ
(e) तकनीकी / प्रबंधकीय स्टाफ और उनकी संख्या पर्याप्त है या नहीं
2. तकनीकी पहलू :
क) स्थान, भूमि और भूमि-विकास :
i) परियोजना-स्थल का ब्योरा
ii) जमीन का कुल क्षेत्रफल और लागत
iii) परियोजना-स्थल का नक्शा
iv) भूमि-विकास, बाड़ा, दरवाजों, आदि का ब्योरा
ख) निर्माण-कार्य :
विभिन्न निर्माण-कार्यों की माप के साथ अनुमानित लागत का विस्तृत ब्योरा
- शेड
- भंडार-गृह (स्टोर रूम)
- दुग्ध-कक्ष
- क्वार्टर, आदि.
ग) उपकरण / संयंत्र और मशीनरी :
i) चारा काटने की मशीन
ii) चारा रखने के लिए गड्ढे
iii) दूध दूहने की मशीन
iv) आहार को पीसने और दलने वाली मशीन (फीड मिक्सर-ग्राइंडर)
v) बालटी / डब्बे
vi) बायोगैस संयंत्र
vii) प्रशीतक (Bulk coolers)
viii) दुग्ध-उत्पाद तैयार करने वाले उपकरण
ix) ट्रक / वैन ( कोटेशन के साथ)
घ) आवास :
i) आवास का प्रकार
ii) आवश्यक क्षेत्र
- वयस्क
- ओसर (1-3 वर्ष)
- बछड़े (1 वर्ष से कम)
ङ) पशु :
i) प्रस्तावित प्रजातियाँ
ii) प्रस्तावित नस्ल
iii) किस माध्यम / स्रोत से खरीदा जाना है
iv) क्रय-स्थल
v) दूरी (किलोमीटर)
vi) पशु का मूल्य (रु.)
च) उत्पादन के मानदंड :
i) गायें-भैंसें कौन-से ब्यान की हैं (Order of lactation)
ii) दुग्ध-उत्पादन (लीटर प्रति दिन)
iii) दूध देने की अवधि (दिनों में )
iv) दूध न देने के दिन (Dry days)
v) गर्भधारण की दर (Conception rate)
vi) मृत्यु-दर ( )
णणण - वयस्क
णणण - बछड़े
छ) पशुओं की संख्या का अनुमान (सभी मान्यताओं के आधार पर) :
ज) आहार :
i) चारे और आहार का स्रोत
- हरा चारा
णणण - सूखा चारा
णणण - दाना / रातिब (Concentrates)
ii) चारे का फसल-चक्र
- खरीफ
- रबी
- गरमा (ग्रीष्मकालीन)
iii) चारे की खेती पर होने वाला व्यय
iv) आवश्यकता और लागत :
आवश्यक मात्रा (किलोग्राम / दिन)
झ) प्रजनन-सुविधाएँ :
i) स्रोत :
ii) स्थान :
iii) दूरी (किलोमीटर) :
iv) वीर्य की उपलब्धता :
v) स्टाफ की उपलब्धता :
vi) प्रति पशु / प्रति वर्ष व्यय
ञ) पशु-चिकित्सा :
i) स्रोत
ii) स्थान
iii) दूरी (किलोमीटर)
iv) स्टाफ की उपलब्धता
v) उपलब्ध सुविधाएँ
vi) यदि स्वयं व्यवस्था की जाती है, तो -
क) पशु-चिकित्सक / पशुओं की देख-भाल करने वाले / परामर्शदाता को नियुक्त किया गया है या नहींं
ख) दौरे की आवधिकता (कितनी बार दौरा करते हैं)
ग) प्रति विजिट अदा की जाने वाली रकम (रु.)
vii) प्रति पशु प्रति वर्ष व्यय (रु.)
ट) बिजली :
i) स्रोत
ii) राज्य विद्युत बोर्ड से अनुमोदन
iii) कनेक्ट किया गया लोड
iv) बिजली गुल होने की समस्या
v) जेनरेटर की व्यवस्था
ठ) पानी :
i) स्रोत
ii) पानी की गुणवत्ता
iii) पेयजल, साफ-सफाई तथा चारे के उत्पादन हेतु पानी की पर्याप्त उपलब्धता
iv) यदि निर्माण-कार्य में निवेश किया जाना है, तो निर्माण का प्रकार, डिजाइन और लागत
ड) दूध का विपणन :
i) बिक्री का स्रोत
ii) विक्रय-स्थल
iii) दूरी (किलोमीटर)
iv) कीमत (रु.प्रति लीटर दूध)
v) भुगतान का आधार
vi) भुगतान की आवधिकता
ढ) अन्य उत्पादों का विपणन :
i) पशु - उम्र
- विक्रय-स्थल
- संभावित कीमत
ii) खाद - मात्रा / पशु
मूल्य / इकाई (रु.)
iii) खाली बोरियाँ
- संख्या
- लागत / बोरी (रु.)
ण) लाभार्थी का अनुभव :
त) तकनीकी साध्यता के बारे में टिप्पणी :
थ) सरकारी प्रतिबंध, यदि कोई हो :
3. वित्तीय पहलू :
i) इकाई लागत :
ii) तत्काल अदायगी / मार्जिन / सब्सिडी (सब्सिडी के स्रोत और मात्रा का उल्लेख करें) :iii) वर्षवार भौतिक और वित्तीय कार्यक्रम :
Iv) वित्तीय व्यवहार्यता (फार्म मॉडल / इकाई के संबंध में अनुमानित नकदी-प्रवाह पर टिप्पणी करें और उसे संलग्न करें)
विवरण :
क) आंतरिक प्रतिफल की दर (IRR) :
ख) लाभ-लागत अनुपात (BCR) :
ग) शुद्ध वर्तमान मूल्य (NPW) :
v) ऋणकर्ताओं की वित्तीय स्थिति (कारपोरेट निकाय / साझेदारी फर्म के मामले में प्रस्तुत किया जाए)
क) लाभप्रदता अनुपात :
i) कुल लाभ अनुपात (GP Ratio)
ii) शुद्ध लाभ अनुपात (NP Ratio)
ख) ऋण इक्विटी अनुपात (Debt Equity Ratio):
ग) क्या आयकर एवं अन्य कर-देयताओं का अद्यतन रूप में भुगतान किया गया है ? :
घ) क्या लेखापरीक्षा अद्यतन रूप में की गई है ? [पिछले तीन वर्षों के लेखापरीक्षित वित्तीय विवरण संलग्न किए जाएँ]
vi) ऋण की शर्तें :
i) ब्याज की दर :
ii) रियायत अवधि :
iii) चुकौती-अवधि :
iv) प्रतिभूति का स्वरूप :
v) सरकारी गारंटी की उपलब्धता, जहाँ भी आवश्यक हो :
4. आधारभूत सुविधाएँ :
क) मॉनीटरिंग हेतु बैंक / कार्यान्वयन प्राधिकरण या एजेन्सी के पास तकनीकी स्टाफ की उपलब्धता
ख) ब्योरा -
i) तकनीकी मार्गदर्शन
ii) प्रशिक्षण सुविधाएँ
iii) सरकारी सहायता / विस्तार सहायता
ग) ऋण की वसूली के लिए विपणन एजेन्सियों के साथ तालमेल / गठबंधन
घ) बीमा -
- पॉलिसी का प्रकार
- आवधिकता
- प्रीमियम की दर
ङ) क्या कोई सब्सिडी उपलब्ध है , यदि हाँ तो प्रति इकाई सब्सिडी की रकम
च) हरे चारे और पशु-आहार की आपूर्ति की व्यवस्था
अनुबंध II
गाय-भैंसों की विभिन्न नस्लों की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ / विवरण
ख) गाय-बैल (विदेशी)
ग) भैंसें
अनुबंध - III
क) भारतीय गाय-भैंसों की प्रजनन-दर और दुग्ध-उत्पादन का ब्योरा
ख) संकर नस्ल की गाएँ (Bos indicus Fx Bostaurus M)
ग) भैंसें
संकेताक्षर : H = हरियाणा S = साहिवाल RS = रेड सिंधी
G = गीर T = थारपारकर L = अज्ञात नस्ल
R = राठी F = फ्रीजियन BS = ब्राउन स्विस
RD = रेड डेन J = जर्सी
अनुबंध - IV
भारत के कुछ प्रमुख राज्यों में नाबार्ड द्वारा अनुमोदित गाय-भैंसों की इकाई लागत
अनुबंध V
दो पशुओं (भैंसों) की इकाई वाली परियोजना का आर्थिक विश्लेषण : एक झलक
दो पशुओं (भैंस) की इकाई हेतु मॉडल परियोजना
क. निवेश लागत
ख. तकनीकी-अर्थिक मानदंड
xvi) पशु दो जत्थों में पाँच-छह माह के अंतराल पर खरीदे जाएँगे.
xvii) यह मान लिया गया है कि बछड़ों को पालने में हुआ खर्च
बछ़डे / ओसर की बिक्री से होने वाली आमदनी के बराबर होगा.
xviii) कार्यकलाप की आर्थिक अवधि समाप्त होने पर प्रत्येक पशु का मूल्य (रुपये में) : 4100
ग. भैंसों द्वारा दूध देने और दूध न देने की अवधि दर्शाने वाली तालिका
अनुबंध - V (जारी)
घ. नकदी प्रवाह का विश्लेषण
* सान्द्र आहार (दाना / रातिब) से जुड़े पूँजीगत खर्च को छोड़कर
ङ चुकौती अनुसूची (चुकौती का विवरण)
बैंक ऋण (रु.) - 15500
ब्याज-दर ( ) - 12
पूँजी वसूली गुणक (factor) - 0.277
अनुबंध VI
दस पशुओं (भैंसों) की लघु डेयरी इकाई का आर्थिक विश्लेषण
परियोजना की एक झलक
दस पशुओं (भैंसों) की इकाई हेतु मॉडल परियोजना
क. निवेश लागत
अनुबंध VI (जारी)
ख. तकनीकी-आर्थिक मानदण्ड
अनुबंध VI (जारी)
ग. भैंसों द्वारा दूध देने और दूध न देने की अवधि दर्शाने वाली तालिका
घ. नकदी-प्रवाह का विश्लेषण
* तीन महीनों तक चारा उगाने और एक वर्ष के बीमा की पूँजीकृत लागत को छोड़कर
ङ चुकौती अनुसूची (चुकौती का ब्योरा)
बैंक ऋण (रु.) - 131700
ब्याज की दर ( ) - 13.5
पूँजी वसूली गुणक (Capital recovery factor) - 0.287
(रुपये में)
अनुबंध - VII
संकर नस्ल के मवेशी के लिए आवासीय आवश्यकता
*अलग-अलग रखा जाना है.
अनुबंध - VIII
डेयरी पशुओं के आहार और खुराक का ब्योरा
(मात्रा किलोग्राम में)
अनुबंध - IX
संक्रामक रोगों से बचाव के लिए पशुओं का टीकाकरण कार्यक्रम
डेयरी कार्यकलाप
1. डेयरी कार्यकलाप क्यांें करें?
1.1 लघु एवं सीमान्त कृषकों तथा खेतिहर मजदूरों के लिए डेयरी गतिविधि सहायक आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है. मिट्टी की उर्वरा-शक्ति और फसल की उपज बढ़ाने के लिए पशुपालन से प्राप्त होने वाली खाद उत्तम जैविक स्रोत है. इसके अलावा गोबर गैस से घरेलू इंर्धन प्राप्त होता है और उससे कुओं से पानी खींचने के लिए इंजन भी चलाया जाता है. कृषि-कार्य से प्राप्त होने वाले अतिरिक्त चारे और बाईप्रोडक्ट का कारगर इस्तेमाल पशुओं के आहार के लिए किया जाता है. कृषि-कार्य एवं परिवहन के लिए भारवहन का लगभग सारा कार्य बैलों के जरिए होता है. चूँकि कृषि-कार्य सामान्यतया मौसमी होता है, अत: डेयरी गतिविधि के जरिए अनेक लोगों को पूरे वर्ष रोजगार मुहैया कराना संभव है. इस प्रकार यह वर्षपर्यन्त रोजगार पाने का एक कारगर जरिया है. डेयरी गतिविधि से लाभान्वित होने वाले मुख्यत: छोटे और सीमान्त किसान व भूमिहीन श्रमिक होते हैं. 2 दुधारू भैंसों की एक इकाई से किसान को प्रतिवर्ष रु.12000/- का कुल लाभ प्राप्त हो सकता है. दो भैंसों की खरीद के लिए रु.18,223/- की पूँजी अपेक्षित है. ऋण और ब्याज की चुकौती के रूप में प्रतिवर्ष रु.4294/- की रकम अदा करने के बाद भी किसान को प्रतिवर्ष लगभग रु.6000-9000/- का शुद्ध लाभ प्राप्त हो सकता है. (विस्तृत ब्योरे के लिए कृपया संलग्न मॉडल योजना देखें) यदि पशुओं की नस्ल अच्छी हो, उत्तम प्रबंध-कौशल हो और विपणन की बेहतर संभावना हो, तो और ज्यादा लाभ कमाया जा सकता है
1.2 विश्व बैंक के पुराने आकलन के अनुसार भारत की 94 करोड़ जनसंख्या का लगभग 75 प्रतिशत हिस्सा 5.87 मिलियन गाँवों में रहता है, जो 145 मिलियन हेक्टेयर कृषि-भूमि पर खेती करता है. खेत का औसत आकार लगभग1.66 हेक्टेयर है. 70 मिलियन ग्रामीण परिवारों में से 42 प्रतिशत परिवार 2 हेक्टेयर तक की भूमि पर खेती करते हैं और 37 प्रतिशत परिवार भूमिहीन हैं. इन भूमिहीन और छोटे किसानों के पास कुल पशुओं का 53 प्रतिशत हिस्सा है और देश के कुल दुग्ध-उत्पादन के 51 प्रतिशत हिस्से का उत्पादन भी इन्हीं भूमिहीन और छोटे किसानों द्वारा किया जाता है. इस प्रकार छोटे व सीमान्त किसान तथा भूमिहीन खेतिहर मजदूर देश के दुग्ध-उत्पादन में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. डेयरी गतिविधि को उन बड़े शहरों के आसपास मुख्य कार्यकलाप के रूप में भी चलाया जा सकता है, जहाँ दूध की भारी माँग है.
2. डेयरी कार्यकलाप की संभावना और इसका राष्ट्रीय महत्त्व
2.1 एक अनुमान के अनुसार, देश में कुल दुग्ध-उत्पादन वर्ष 2001-02 के दौरान 84.6 मिलियन मेट्रिक टन था. इस उत्पादन के हिसाब से प्रति व्यक्ति उपलब्धता 226 ग्राम थी, जबकि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की सिफारिश के अनुसार प्रति व्यक्ति दूध की न्यूनतम आवश्यकता 250 ग्राम होती है. इस प्रकार देश में दुग्ध-उत्पादन बढ़ाने की प्रचुर संभावना मौजूद है. 1992 की पशुगणना के मुताबिक 3 वर्ष से अधिक उम्र की दुधारू गायों और भैंसों की संख्या क्रमश: 62.6 मिलियन और 42.4 मिलियन थी.
2.2 दुग्ध-उत्पादन हेतु बुनियादी सुविधाएँ जुटाने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारें पर्याप्त वित्तीय सहायता प्रदान कर रही हैं. पशुपालन और डेयरी गतिविधियों के लिए नौवीं पंचवर्षीय योजना में रु.2345 करोड़ का परिव्यय निर्धारित किया गया था.
3. डेयरी कार्यकलाप हेतु बैंकों / नाबार्ड से उपलब्ध सहायता
3.1 कृषि ऋण के क्षेत्र में नीति, योजना और परिचालन से जुड़े सभी मुद्दों के संबंध में नाबार्ड एक शीर्षस्तरीय संस्था है. निवेश ऋण और उत्पादन ऋण प्रदान करने वाली संस्थाओं के लिए नाबार्ड एक शीर्षस्तरीय पुनर्वित्त एजेन्सी के रूप में कार्य करता है. नाबार्ड अपने प्रधान कार्यालय स्थित तकनीकी सेवा विभाग और क्षेत्रीय कार्यालयों के तकनीकी कक्षों के जरिए परियोजनाओं की तैयारी और मूल्यांकन द्वारा विकास-कार्यों को बढ़ावा देता है.
3.2 डेयरी कार्यकलाप आरंभ करने के लिए बैंकों से ऋण मिलता है, जिसके लिए बैंकों को नाबार्ड का पुनर्वित्त उपलब्ध है. बैंक ऋण प्राप्त करने के लिए किसान को अपने इलाके के वाणिज्यिक बैंक या सहकारी बैंक की निकटतम शाखा को निर्धारित प्रपत्र में आवेदन देना चाहिए. आवेदन-पत्र का प्रारूप वित्तपोषक बैंकों की शाखाओं में मिलता है. बैंक ऋण प्राप्त करने के लिए परियोजना रिपोर्ट तैयार करने में बैंक का तकनीकी अधिकारी अथवा प्रबंधक किसानों की मदद कर सकता है.
3.3 भारी लागत वाली डेयरी योजनाओं के लिए विस्तृत रिपोर्ट बनाना अपेक्षित है. वित्तीय मदों में पूँजीगत परिसंपत्तियों, जैसे - दुधारू पशुओं की खरीद, शेड का निर्माण, उपकरणों की खरीद, आदि को शामिल करना होता है. एक / दो माह की आरंभिक अवधि के दौरान पशुओं के आहार की लागत को पूँजीकृत किया जाता है, जिसे मीयादी ऋण के रूप में दिया जाता है. ऋण के लिए भूमि-विकास, बाड़ा लगाना, कुओं की खुदाई, डीजेल इंजिन / पंपसेट स्थापित करना, बिजली का कनेक्शन, सहायकों का निवास-स्थान, गोदाम, परिवहन हेतु वाहन और दुग्ध-प्रसंस्करण जैसी सुविधाओं पर विचार किया जा सकता है. जमीन की लागत को ऋण के घटक के रूप में शामिल नहीं किया जाता. तथापि, यदि भूमि की खरीद डेयरी फार्म स्थापित करने के लिए की जाती है, तो इस लागत को परियोजना की कुल लागत के 10 तक पार्टी की मार्जिन राशि के रूप में माना जा सकता है.
4. बैंक ऋण के लिए योजना तैयार करना
4.1 कोई भी लाभार्थी राज्य सरकार के पशुपालन विभाग, जिला ग्रामीण विकास एजेन्सी (डीआरडीए), एसएलपीपी, आदि के स्थानीय तकनीकी स्टाफ तथा दुग्ध सहकारी समिति / संघ / परिसंघ / वाणिज्यिक डेयरी कृषकों से सलाह-मशवरा कर योजना तैयार कर सकता है. यदि संभव हो, तो लाभार्थियों को प्रगतिशील डेयरी किसानों और अपने नजदीकी सरकारी डेयरी फार्म / सैनिक डेयरी फार्म अथवा कृषि विश्वविद्यालय के डेयरी फार्म से मिलकर डेयरी कार्यकलाप की लाभप्रदता के बारे में चर्चा करनी चाहिए. डेयरी कार्यकलाप का अच्छा व्यावहारिक प्रशिक्षण और पर्याप्त अनुभव बहुत जरूरी है. राज्य सरकार के डेयरी विकास विभाग और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के प्रयासों से गाँवों में स्थापित दुग्ध सहकारी समितियाँ सभी प्रकार की सहायता, विशेषकर दूध के विपणन से जुड़ी सहायता उपलब्ध कराती हैं. इस प्रकार की समिति या पशु-चिकित्सा केन्द्र और कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र से डेयरी फार्म की निकटता सुनिश्चित की जानी चाहिए. यदि डेयरी फार्म किसी शहर या नगर के निकट स्थित हो, तो स्वाभाविक रूप से दूध की अच्छी-खासी माँग होती है.
4.2 डेयरी-योजना में जमीन, मवेशी बाज़ार, जल की उपलब्धता, पशु-आहार, चारा, पशु-चिकित्सा, प्रजनन सुविधाओं, विपणन से जुड़े पहलुओं, प्रशिक्षण सुविधाओं, किसान के अनुभव और राज्य सरकार, दुग्ध समिति / दुग्ध संघ या दुग्ध परिसंघ से उपलब्ध सहायता के बारे में जानकारी शामिल की जानी चाहिए.
4.3 खरीदे जाने वाले पशुओं की संख्या और प्रकार, उनकी नस्ल, उत्पादन के स्तर, लागत और अन्य जरूरी साधनों तथा उत्पादन से जुड़ी लागत का पूर्ण ब्योरा भी योजना में दिया जाना चाहिए. इन सबके आधार पर परियोजना की कुल लागत, लाभार्थी द्वारा दी जाने वाली मार्जिन राशि, आवश्यक बैंक ऋण, अनुमानित वार्षिक व्यय, आय, लाभ एवं हानि की विवरणी, चुकौती-अवधि, आदि की गणना की जा सकती है और इन्हें परियोजना-रिपोर्ट में दर्शाया जा सकता है. डेयरी विकास योजनाओं के लिए तैयार किया गया फॉर्मेट अनुबंध-I में दर्शाया गया है.
5. बैंकों द्वारा योजनाओं की संवीक्षा
ऊपर बताए गए स्वरूप में तैयार की गई योजना को निकटतम बैंक शाखा में प्रस्तुत किया जाना चाहिए. निर्धारित आवेदन फॉर्म में योजना के ब्योरे को भरने के लिए बैंक अधिकारी की मदद ली जा सकती है. तत्पश्चात् तकनीकी साध्यता और आर्र्थिक लाभप्रदता देखने के लिए बैंक योजना की जाँच-परख करेगा.
(क) तकनीकी साध्यता - इसमें मुख्य रूप से निम्नलिखित बातें देखी जाएँगी -
1. पशु-चिकित्सा केन्द्र, प्रजनन केन्द्र, दुग्ध संग्रहण केन्द्र और वित्तपोषक बैंक की शाखा से चुने गए क्षेत्र की निकटता.
2.णनजदीकी मवेशी बाज़ार में अच्छी नस्ल / उत्कृष्ट कोटि के पशुओं की उपलब्धता. गाय-भैंसों की महत्त्वपूर्ण नस्लों से संबंधित पूर्ण ब्योरा अनुबंध-II में दर्शाया गया है. गाय-भैंसों की विभिन्न नस्लों की प्रजनन-क्षमता और उत्पादकता का ब्योरा अनुबंध-III में दिया गया है.
3. प्रशिक्षण-सुविधाओं की उपलब्धता.
4.अच्छे चारागाहों / चराई-भूमि की उपलब्धता.
5.हरा / सूखा चारा, दाना (रातिब), औषधियाँ, आदि.
6.योजना-क्षेत्र के निकट पशु-चिकित्सा केन्द्र / प्रजनन केन्द्र और दुग्ध विपणन सुविधाओं की उपलब्धता.
(ख) आर्थिक लाभप्रदता - इसमें मुख्य रूप से निम्नलिखित बातें देखी जाएँगी -
1.ण इकाई लागत - कुछ राज्यों के संबंध में दुधारू पशुओं की औसत इकाई लागत अनुबंध-IV में दी गई है.
2.णआहार और चारा, पशु-चिकित्सा, पशुओं के प्रजनन, बीमा, मजदूरी, आदि से जुड़ी लागतें और अन्य ऊपरी खर्च.
3.उत्पादन लागत, जैसे- दूध का बिक्री-मूल्य, खाद, बोरियाँ, बछड़े / बछड़ियाँ, अन्य विविध मदें, आदि.
5.नकदी प्रवाह का विश्लेषण.
6. चुकौती अनुसूची (अर्थात् मूलधन और ब्याज की चुकौती का ब्योरा).
अन्य दस्तावेज़, जैसे - ऋण आवेदन फॉर्म, प्रतिभूति / जमानत से जुड़े पहलुओं, मार्जिन राशि की आवश्यकता, आदि की भी जाँच की जाती है. योजना का मूल्यांकन करने के लिए योजना क्षेत्र की फील्ड विजिट की जाती है, ताकि तकनीकी-आर्थिक व्यवहार्यता का अध्ययन किया जा सके. दो पशुओं की इकाई और 10 भैंसों की लघु डेयरी इकाई का मॉडल आर्थिक विवरण अनुबंध V और VI में दिया गया है.
6. बैंक ऋण की मंजूरी और इसका संवितरण
तकनीकी साध्यता और आर्थिक लाभप्रदता सुनिश्चित करने के बाद बैंक द्वारा ऋण मंजूर किया जाता है. कुछ खास परिसंपत्तियों के सृजन, जैसे-शेड के निर्माण, उपकरण और मशीनरी की खरीद, पशुओं की खरीद और एक / दो माह की आरंभिक अवधि के दौरान आहार / चारे की खरीद से जुड़ी आवर्ती लागत के समक्ष दो से तीन चरणों में ऋण संवितरित किया जाता है. बैंक द्वारा निधियों के उद्देश्यपूर्ण उपयोग की जाँच की जाती है और सतत् अनुवर्ती कार्रवाई की जाती है.
7. ऋण की शर्तें - सामान्य
7.1 इकाई लागत
छह माह में एक बार विभिन्न निवेशों की इकाई लागत की समीक्षा करने के उद्देश्य से, नाबार्ड के प्रत्येक क्षेत्रीय कार्यालय ने अपने प्रभारी की अध्यक्षता में एक राज्य स्तरीय इकाई लागत समिति गठित की है, जिसमें विकास एजेन्सियों, वाणिज्यिक बैंकों और सहकारी बैंकों के अधिकारी सदस्य होते हैं. इन इकाई लागतों को बैंकों के मार्गदर्शन हेतु परिचालित किया जाता है. ये इकाई लागतें केवल निदर्शनात्मक (सांकेतिक) स्वरूप की होती हैं और परिसंपत्तियों की उपलब्धता के आधार पर बैंक किसी भी राशि का वित्तपोषण करने के लिए स्वतंत्र हैं.
7.2 मार्जिन राशि
नाबार्ड ने किसानों को तीन प्रवर्गों में परिभाषित किया है और जहाँ सब्सिडी उपलब्ध नहीं है, वहाँ लाभार्थियों से न्यूनतम तत्काल भुगतान निम्नानुसार लिया जाता है :
क्रम सं. | किसान का प्रवर्ग | इकाई स्थापित करने से पूर्व अन्य संसाधनों से होने वाली आय (सालाना) | लाभार्थी का अंशदान |
(क) | लघु किसान | रु.11000 तक | 5 |
(ख) | मझोले किसान | रु.11001 - रु.19250 | 10 |
(ग) | बड़े किसान | रु. 19251 से ज्यादा | 15 |
भारतीय रिज़र्व बैंक के दिशानिर्देशों के अनुसार, विभिन्न एजेन्सियों द्वारा वित्तपोषित अंतिम लाभार्थियों से ली जाने वाली मौजूदा ब्याज-दर निम्नानुसार है :
क्रम सं.
|
ऋण की राशि
|
वाणिज्यिक बैंक और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
|
राज्य सहकारी बैंक / राज्य सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक
|
(क) | रु.25000 तक | 12 | राज्य सहकारी बैंक / राज्य सहकारी कृ.ग्रा.वि.बैंक द्वारा यथानिर्धारित (न्यूनतम 12 के विषयाधीन) |
(b) | रु. 25000 से अधिक और रु. 2 लाख तक | 13.5 | -वही- |
(c) | रु. 2.0 लाख से अधिक | बैंकों द्वारा यथानिर्धारित | -वही- |
प्रतिभूति संबंधी मानदंड नाबार्ड / भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर जारी दिशानिर्देशों के अनुरूप होंगे.
7.5 ऋण की चुकौती-अवधि
चुकौती-अवधि योजना के सकल अधिशेष (समग्र लाभ) पर निर्भर करती है. ऋणों की चुकौती सामान्यतया 5 वर्षों की अवधि में उचित मासिक / तिमाही किश्तों में की जाती है. वाणिज्यिक योजनाओं के मामले में, नकदी-प्रवाह विश्लेषण के आधार पर चुकौती-अवधि 6-7 वर्षों तक बढ़ाई जा सकती है.
7.6 बीमा
पशुओं का बीमा वार्षिक आधार पर या दीर्घावधि मास्टर पॉलिसी के अनुसार कराया जा सकता है. योजनांतर्गत और गैर-योजनांतर्गत पशुओं के लिए बीमा प्रीमियम की वर्तमान दर क्रमश: 2.25 और 4.0 है
8. डेयरी कार्यकलाप हेतु संस्तुत सामान्य प्रबंध प्रणाली
किसान
डेयरी कार्यकलाप से अधिकतम आर्थिक लाभ प्राप्त करने के लिए आधुनिक और सुस्थापित वैज्ञानिक सिद्धान्तों, प्रणालियों और कौशल का इस्तेमाल करना चाहिए. इस संबंध में कुछ प्रमुख मानदंड और सुझाई गई पद्धतियाँ नीचे वर्णित हैं :
I. आवासीय व्यवस्था :
1.सूखी और उचित तरीके से तैयार जमीन पर शेड का निर्माण किया जाए.
2.जिस स्थान पर पानी जमा होता हो और जहाँ की जमीन दलदली हो या जहाँ भारी बारिश होती हो, वहाँ शेड का निर्माण नहीं किया जाना चाहिए.
3. शेड की दीवारें 1.5 से 2 मीटर ऊँची होनी चाहिए.
4.दीवारों को नमी से सुरक्षित रखने के लिए उनपर अच्छी तरह पलस्तर किया जाना चाहिए.
5.णशेड की छत 3-4 मीटर ऊँची होनी चाहिए.
6.णशेड को पर्याप्त रूप से हवादार होना चाहिए.
7.फर्श को पक्का / सख्त, समतल और ढालुआ (3 से.मी.प्रति मीटर) होना चाहिए तथा उसपर जल-निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि वह सूखा व साफ-सुथरा रह सके.
8.पशुओं के खड़े होने के स्थान के पीछे 0.25 मीटर चौड़ी पक्की नाली होनी चाहिए.
9. प्रत्येक पशु के खड़े होने के लिए 2 X 1.05 मीटर का स्थान आवश्यक है.
10. नाँद के लिए 1.05 मीटर की जगह होनी चाहिए. नाँद की ऊँचाई 0.5 मीटर और गहराई 0.25 मीटर होनी चाहिए.
11. नाँद, आहार-पात्र, नाली और दीवारों के कोनों को गोलाकार किया जाना चाहिए, ताकि उनकी साफ-सफाई आसानी से हो सके.
12.णप्रत्येक पशु के लिए 5-10 वर्गमीटर का आहार-स्थान होना चाहिए.
13.गर्मियों में छायादार जगह / आवरण और शीतल पेयजल उपलब्ध कराया जाना चाहिए.
14.जाड़े के मौसम में पशुओं को रात्रिकाल और बारिश के दौरान अंदर रखा जाना चाहिए.
15. प्रत्येक पशु के लिए हर रोज़ बिछावन उपलब्ध कराया जाना चाहिए.
16. शेड और उसके आसपास स्वच्छता रखी जानी चाहिए.
17.दड़बों और शेड में मैलाथियन अथवा कॉपर सल्फेट के घोल का छिड़काव कर बाहरी परजीवियों, जैसे - चिचड़ी, मक्खियों, आदि को नियंत्रित किया जाना चाहिए.
18. पशुओं के मूत्र को बहाकर गड्ढे में एकत्र किया जाना चाहिए और तत्पश्चात् उसे नालियों / नहरों के माध्यम से खेत में ले जाना चाहिए.
19. गोबर और मूत्र का उपयोग उचित तरीके से किया जाना चाहिए. गोबर गैस संयंत्र की स्थापना आदर्श उपाय है. जहाँ गोबर गैस संयंत्र स्थापित न किए गए हों, वहाँ गोबर को पशुओं के बिछावन एवं अन्य अवशिष्ट पदार्थों के साथ मिलाकर कम्पोस्ट तैयार किया जाना चाहिए.
20.पशुओं को पर्याप्त स्थान उपलब्ध कराया जाना चाहिए. ( भिन्न-भिन्न प्रकार एवं आयु-वर्ग वाले संकर नस्ल के मवेशियों के लिए आवश्यक स्थान का विवरण अनुबंध-VII में दिया गया है.)
II. पशुओं का चयन :
1.ऋण प्राप्त होने के तुरंत बाद विश्वसनीय पशुपालक अथवा निकटतम मवेशी बाज़ार से मवेशियों की खरीद की जानी चाहिए.
2. बैंक के तकनीकी अधिकारी अथवा राज्य सरकार / जिला परिषद, आदि के पशु-चिकित्सा अधिकारी / पशुपालन अधिकारी की मदद से स्वस्थ एवं ज्यादा दूध देने वाले पशुओं का चयन किया जाना चाहिए.
3. हाल ही में बछड़ा ब्याने वाली गाय-भैंसों की खरीद की जानी चाहिए ( दूसरे / तीसरे ब्यान वाली)
4. पशुओं की खरीद से पहले उन्हें लगातार तीन बार दुहकर दूध की वास्तविक मात्रा का पता लगाया जाना चाहिए.
5. नए खरीदे गए पशुओं की पहचान के लिए उनपर निशान लगाया जाना चाहिए (कान में निशान लगाकर या गोदना गोदकर).
6. नए खरीदे गए पशुओं को रोग-प्रतिरोधक टीका लगाया जाना चाहिए.
7.नए खरीदे गए पशुओं का मुआयना लगभग दो हफ्तों तक अलग-से किया जाना चाहिए और तत्पश्चात् उन्हें मवेशियों के सामान्य झुंड में शामिल किया जाना चाहिए.
8. कम-से-कम दो दुधारू पशुओं की खरीद की जानी चाहिए.
9. पहली खरीद के 5-6 माह बाद दूसरे पशु / दूसरे झुंड की खरीद की जानी चाहिए.
10. चूँकि भैंसों का ब्यान (बछड़ा देना) मौसमी होता है, अत: उनकी खरीद जुलाई से फरवरी के दौरान की जानी चाहिए.
11.जहाँ तक संभव हो, दूसरे पशु की खरीद तब की जानी चाहिए जब पहले पशु के दूध देने का समय खत्म होने वाला हो, ताकि दूध के उत्पादन एवं आय-अर्जन में निरंतरता बनी रहे. इससे बाँठ (दूध न देने वाले) पशुओं के रख-रखाव के लिए धनस्रोत सुनिश्चित हो सकेगा.
12.विवेकपूर्ण तरीके से अनुत्पादक पशुओं की छँटनी.
13. 6-7 ब्यान के बाद पुराने पशुओं की छँटनी कर देनी चाहिए.ण
III. दुधारू पशुओं का आहार
1 पशुओं को सर्वोत्तम आहार एवं चारा खिलाना चाहिए.( आहार का ब्यौरा अनुबंध VIII में दिया गया है)
2.नियंत्रित रूप में पर्याप्त हरा चारा दिया जाना चाहिए.
3.जहाँ तक संभव हो, स्वयं की उपलब्ध जमीन पर ही हरा चारा उगाना चाहिए.
4.चारे की सही समय पर कटाई की जानी चाहिए.
5.मोटे चारे को खिलाने से पहले उसे भूसी/कुट्टी के रूप में काटा जाना चाहिए.
6.अनाज और दाने को दल लेना चाहिए.
7.खल्ली को पपड़ीदार और भुरभुरा होना चाहिए.
8.दाने के मिश्रण (रातिब) को खिलाने से पहले गीला कर लेना चाहिए.
9. पर्याप्त मात्रा में विटामिन और खनिज-तत्त्व देना चाहिए. दाने में खनिज-तत्त्व के मिश्रण के अलावा थोड़ा-सा नमक भी दिया जाना चाहिए.
10.पर्याप्त मात्रा में साफ पानी पिलाया जाना चाहिए.
11. पशुओं का व्यायाम अवश्य होना चाहिए. भैंसों को रोज पानी में लोटने के लिए बाहर ले जाना चाहिए. यदि यह संभव न हो तो उनपर पर्याप्त मात्रा में पानी छिड़कना चाहिए, विशेष रूप से गर्मी के महीनों में.
12.पशुओं की दैनिक खुराक का आकलन करने के लिए यह ध्यान रखना जरूरी है कि सूखे खाद्य-पदार्थ के रूप में प्रत्येक पशु की खुराक उसके शारीरिक वजन का लगभग 2.5 से 3.0 प्रतिशत होती है.
IV. दूध दूहना
1. दिन में दो से तीन बार दूध दूहा जाना चाहिए.
2.दूध दूहने का कार्य निश्चित समय पर किया जाना चाहिए.
3.एक ही बैठक में आठ मिनट के भीतर दूध दूहने का कार्य संपन्न कर लेना चाहिए.
4. जहाँ तक संभव हो, एक ही व्यक्ति द्वारा नियमित रूप से दूध दूहा जाना चाहिए.
5.पशु को साफ-सुथरे स्थान पर दूहा जाना चाहिए.
6.थन और स्तनाग्र (चूचुक) को ऐण्टीसेप्टिक लोशन / गुनगुने पानी से धोना चाहिए और दूहने से पहले उन्हें सुखा लेना चाहिए.
7.दूध दूहने वाले व्यक्ति को कोई भी संक्रामक रोग नहीं होना चाहिए और प्रत्येक बार दूध दूहने से पहले उसे अपने हाथों को ऐण्टीसेप्टिक लोशन से धोना चाहिए.
8.दूध दूहने का कार्य पूरे हाथों से, तीव्रता से और पूरी तरह किया जाना चाहिए तथा अंत में थन को निचोड़ लेना चाहिए.
9.बीमार गायों / भैंसों को सबसे अंत में दूहा जाना चाहिए, ताकि संक्रमण को फैलने से रोका जा सके.
V. रोगों से बचाव
1.कम खुराक, बुखार, असामान्य स्राव अथवा असामान्य बर्ताव पशुओं की बीमारी के लक्षण हैं. इन लक्षणों के प्रकट होते ही सतर्क हो जाना चाहिए.
2. यदि रोग की आशंका हो, तो सहायता हेतु निकटतम पशु-चिकित्सा केन्द्र से संपर्क करना चाहिए.
3.सामान्य बीमारियों से पशुओं का बचाव किया जाना चाहिए.
4.संक्रामक रोग का प्रकोप होने पर बीमार पशुओं, संपर्क में आए पशुओं और स्वस्थ पशुओं को तुरंत अलग-अलग कर देना चाहिए और रोग-नियंत्रण के आवश्यक उपाय शुरू कर देने चाहिए. (टीकारण का कार्यक्रम अनुबंध IX में दिया गया है)
5. ब्रूसेलोसिस (Brucellosis), टी.बी.(Tuberculosis), जॉन्स डिजीज (Johne's disease), थनेला (Mastitis), आदि रोगों का परीक्षण समय-समय पर करवाया जाना चाहिए.
6. पशुओं को नियमित रूप से कृमिमुक्त (Deworm) किया जाना चाहिए.
7.आंतरिक परजीवियों का पता लगाने के लिए वयस्क पशुओं के गोबर की जाँच कराई जानी चाहिए और उचित दवाओं / औषधियों से पशुओं का उपचार किया जाना चाहिए.
8.साफ-सफाई एवं स्वच्छता का निर्वाह करने के लिए समय-समय पर पशुओं को धोया / नहलाया जाना चाहिए.ण
VI. प्रजनन संबंधी देखभाल
1.पशु पर नजदीकी नज़र रखी जानी चाहिए और उसके मदकाल में आने (गर्म होने), मदकाल की अवधि, गर्भाधान, गर्भधारण और ब्याने का रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए.
2. पशुओं का गर्भाधान समय पर कराया जाना चाहिए.
3.ब्याने के 60 से 80 दिनों के भीतर उद्दीपन / मदकाल आरंभ हो जाता है.
4. समय पर गर्भाधान कराने से ब्याने के दो-तीन महीनों के भीतर गर्भधारण कराया जा सकता है.
5. पशुओं का गर्भाधान तब कराया जाना चाहिए, जब वे मदकाल / उद्दीपन के चरम पर हों (अर्थात् मदकाल के 12 से 24 घण्टे के बीच)
6. उच्चस्तरीय वीर्य का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, विशेषकर अच्छे और तन्दुरुस्त सांडों के प्रशीतित वीर्य को तरजीह देनी चाहिए.
VII. गर्भावस्था के दौरान देखभाल
ब्याने से दो माह पूर्व गाभिन गायों पर विशेष ध्यान देना चाहिए और उन्हें पर्याप्त स्थान, आहार, जल, आदि मुहैया कराया जाना चाहिए.
VIII. दूध का विपणन
1.दूध निकालने के तुरंत बाद उसे बेचा जाना चाहिए. दुग्ध-उत्पादन और विपणन के बीच कम-से-कम अंतर रखा जाना चाहिए.
2.साफ-सुथरे बर्तनों का इस्तेमाल करना चाहिए और दूध के रख-रखाव में स्वच्छता बरती जानी चाहिए.
3. दूध की बालटी / डब्बों / बर्तनों को डिटरजेण्ट से अच्छी तरह धोना चाहिए और अंत में इन्हें क्लोराइड के घोल से खँगालना चाहिए.
4. रास्ते में / परिवहन के दौरान दूध को बहुत ज्यादा हिलने-डुलने से बचाना चाहिए.
5. दूध का परिवहन दिन के अपेक्षाकृत ठंडे समय में किया जाना चाहिए.
IX. बछड़ों की देखभाल
1. नवजात बछड़ों की देखभाल अच्छी तरह की जानी चाहिए.
2.गर्भनाल (नाभिनाल) को तेज छुरी से काटकर तुरंत उसपर आयोडीन का घोल (टिंक्चर) लगाना चाहिए, ताकि वह संक्रमण-मुक्त हो सके.
3.खीस (पहला दूध जो काफी गाढ़ा होता है) बछड़े को खिलाया जाना चाहिए.
4.यदि बछड़ा स्तनपान करने में असमर्थ है, तो दूध पीने में उसकी मदद करनी चाहिए ताकि वह जन्म के 30 मिनट के भीतर स्वयं स्तनपान कर सके.
5.यदि जन्म के तुरंत बाद बछड़े को दूध छुड़ाना जरूरी हो, तो उसे बालटी में खीस खिलाया जाना चाहिए.
6.बछड़े को जन्म से लेकर दो माह तक सूखे, साफ-सुथरे और हवादार स्थान पर अलग रखा जाना चाहिए.
7.तेज़ सर्दी या गर्मी से बछड़ों को बचाना चाहिए, विशेषकर पहले दो महीनों में.
8.बछड़ों को उनके आकार के हिसाब से अलग-अलग समूह में रखा जाना चाहिए.
9.बछड़ों को रोग-प्रतिरोधक टीके लगवाए जाने चाहिए.
10. जब बछड़े चार-पाँच दिनों के हो जाएँ, तो उनकी सींगें कटवा देनी चाहिए, ताकि वे जब बड़े होने लगें, तोे उनकी देख-भाल और रख-रखाव में सहूलियत हो सके.
11.यदि किसी विशेष कारण से कुछ बछड़ों को नहीं पाला जाना है, तो उन्हें जल्द-से-जल्द हटा देना चाहिए, विशेष रूप से नर बछड़ों को.
12.मादा बछड़ियों का पालन-पोषण उचित तरीके से किया जाना चाहिए.
अनुबंध I
योजनाएँ प्रस्तुत करने के लिए फॉर्मेट
1. सामान्य
i) प्रायोजक बैंक का नाम
ii) योजना के प्रायोजक बैंक के नियंत्रक कार्यालय का पता
iii) प्रस्तावित योजना का स्वरूप और उद्देश्य
iv) प्रस्तावित निवेश का ब्योरा
क्रम सं. |
निवेश
|
इकाइयों की संख्या
|
(क) | ||
(ख) | ||
(ग) |
क्रम सं. |
जिला
|
विकास-खंड / प्रखंड
|
क्रम सं. |
शाखा / जिले का नाम
|
(क) | |
(ख) | |
(ग) |
viii) क्षेत्र-आधारित योजनाओं के मामले में कमज़ोर वर्ग के ऋणकर्ता (भूमिहीन मजदूर, नाबार्ड के मानदंडों के अनुसार लघु, मझोले और बड़े किसान, अ.जा./अ.ज.जा., आदि
ix) ऋणकर्ता का विवरण (क्षेत्र-आधारित योजनाओं के मामले में लागू नहीं)
(a) क्षमता
(b) अनुभव
(c) वित्तीय सुदृढ़ता
(d) तकनीकी / अन्य विशेष योग्यताएँ
(e) तकनीकी / प्रबंधकीय स्टाफ और उनकी संख्या पर्याप्त है या नहीं
2. तकनीकी पहलू :
क) स्थान, भूमि और भूमि-विकास :
i) परियोजना-स्थल का ब्योरा
ii) जमीन का कुल क्षेत्रफल और लागत
iii) परियोजना-स्थल का नक्शा
iv) भूमि-विकास, बाड़ा, दरवाजों, आदि का ब्योरा
ख) निर्माण-कार्य :
विभिन्न निर्माण-कार्यों की माप के साथ अनुमानित लागत का विस्तृत ब्योरा
- शेड
- भंडार-गृह (स्टोर रूम)
- दुग्ध-कक्ष
- क्वार्टर, आदि.
ग) उपकरण / संयंत्र और मशीनरी :
i) चारा काटने की मशीन
ii) चारा रखने के लिए गड्ढे
iii) दूध दूहने की मशीन
iv) आहार को पीसने और दलने वाली मशीन (फीड मिक्सर-ग्राइंडर)
v) बालटी / डब्बे
vi) बायोगैस संयंत्र
vii) प्रशीतक (Bulk coolers)
viii) दुग्ध-उत्पाद तैयार करने वाले उपकरण
ix) ट्रक / वैन ( कोटेशन के साथ)
घ) आवास :
i) आवास का प्रकार
ii) आवश्यक क्षेत्र
- वयस्क
- ओसर (1-3 वर्ष)
- बछड़े (1 वर्ष से कम)
ङ) पशु :
i) प्रस्तावित प्रजातियाँ
ii) प्रस्तावित नस्ल
iii) किस माध्यम / स्रोत से खरीदा जाना है
iv) क्रय-स्थल
v) दूरी (किलोमीटर)
vi) पशु का मूल्य (रु.)
च) उत्पादन के मानदंड :
i) गायें-भैंसें कौन-से ब्यान की हैं (Order of lactation)
ii) दुग्ध-उत्पादन (लीटर प्रति दिन)
iii) दूध देने की अवधि (दिनों में )
iv) दूध न देने के दिन (Dry days)
v) गर्भधारण की दर (Conception rate)
vi) मृत्यु-दर ( )
णणण - वयस्क
णणण - बछड़े
छ) पशुओं की संख्या का अनुमान (सभी मान्यताओं के आधार पर) :
ज) आहार :
i) चारे और आहार का स्रोत
- हरा चारा
णणण - सूखा चारा
णणण - दाना / रातिब (Concentrates)
ii) चारे का फसल-चक्र
- खरीफ
- रबी
- गरमा (ग्रीष्मकालीन)
iii) चारे की खेती पर होने वाला व्यय
iv) आवश्यकता और लागत :
आवश्यक मात्रा (किलोग्राम / दिन)
लागत (रु. / किलो)
|
दूध देने की अवधि में
|
दूध न देने की अवधि में
|
बछड़े / बछड़ियाँ
| |
हरा चारा | ||||
सूखा चारा | ||||
दाना / खल्ली / रातिब (Concentrates) |
i) स्रोत :
ii) स्थान :
iii) दूरी (किलोमीटर) :
iv) वीर्य की उपलब्धता :
v) स्टाफ की उपलब्धता :
vi) प्रति पशु / प्रति वर्ष व्यय
ञ) पशु-चिकित्सा :
i) स्रोत
ii) स्थान
iii) दूरी (किलोमीटर)
iv) स्टाफ की उपलब्धता
v) उपलब्ध सुविधाएँ
vi) यदि स्वयं व्यवस्था की जाती है, तो -
क) पशु-चिकित्सक / पशुओं की देख-भाल करने वाले / परामर्शदाता को नियुक्त किया गया है या नहींं
ख) दौरे की आवधिकता (कितनी बार दौरा करते हैं)
ग) प्रति विजिट अदा की जाने वाली रकम (रु.)
vii) प्रति पशु प्रति वर्ष व्यय (रु.)
ट) बिजली :
i) स्रोत
ii) राज्य विद्युत बोर्ड से अनुमोदन
iii) कनेक्ट किया गया लोड
iv) बिजली गुल होने की समस्या
v) जेनरेटर की व्यवस्था
ठ) पानी :
i) स्रोत
ii) पानी की गुणवत्ता
iii) पेयजल, साफ-सफाई तथा चारे के उत्पादन हेतु पानी की पर्याप्त उपलब्धता
iv) यदि निर्माण-कार्य में निवेश किया जाना है, तो निर्माण का प्रकार, डिजाइन और लागत
ड) दूध का विपणन :
i) बिक्री का स्रोत
ii) विक्रय-स्थल
iii) दूरी (किलोमीटर)
iv) कीमत (रु.प्रति लीटर दूध)
v) भुगतान का आधार
vi) भुगतान की आवधिकता
ढ) अन्य उत्पादों का विपणन :
i) पशु - उम्र
- विक्रय-स्थल
- संभावित कीमत
ii) खाद - मात्रा / पशु
मूल्य / इकाई (रु.)
iii) खाली बोरियाँ
- संख्या
- लागत / बोरी (रु.)
ण) लाभार्थी का अनुभव :
त) तकनीकी साध्यता के बारे में टिप्पणी :
थ) सरकारी प्रतिबंध, यदि कोई हो :
3. वित्तीय पहलू :
i) इकाई लागत :
क्रम सं. |
निवेश का नाम
|
भौतिक इकाइयाँ और उनका विवरण
|
प्रत्येक घटक के मदवार विवरण के साथ इकाई लागत (रु.)
|
क्या राज्य स्तरीय इकाई लागत समिति द्वारा अनुमोदित है ?
|
योग |
वर्ष | निवेश | भौतिक इकाइयाँ | इकाई लागत (रु.) | कुल परिव्यय (रु.) | मार्जिन/ सब्सिडी (रु.) | बैंक ऋण (रु.) | पुनर्वित्त सहायता (रु.) |
1
|
2
|
3
|
4
|
5
|
6
|
7
|
8
|
योग |
विवरण :
क) आंतरिक प्रतिफल की दर (IRR) :
ख) लाभ-लागत अनुपात (BCR) :
ग) शुद्ध वर्तमान मूल्य (NPW) :
v) ऋणकर्ताओं की वित्तीय स्थिति (कारपोरेट निकाय / साझेदारी फर्म के मामले में प्रस्तुत किया जाए)
क) लाभप्रदता अनुपात :
i) कुल लाभ अनुपात (GP Ratio)
ii) शुद्ध लाभ अनुपात (NP Ratio)
ख) ऋण इक्विटी अनुपात (Debt Equity Ratio):
ग) क्या आयकर एवं अन्य कर-देयताओं का अद्यतन रूप में भुगतान किया गया है ? :
घ) क्या लेखापरीक्षा अद्यतन रूप में की गई है ? [पिछले तीन वर्षों के लेखापरीक्षित वित्तीय विवरण संलग्न किए जाएँ]
vi) ऋण की शर्तें :
i) ब्याज की दर :
ii) रियायत अवधि :
iii) चुकौती-अवधि :
iv) प्रतिभूति का स्वरूप :
v) सरकारी गारंटी की उपलब्धता, जहाँ भी आवश्यक हो :
4. आधारभूत सुविधाएँ :
क) मॉनीटरिंग हेतु बैंक / कार्यान्वयन प्राधिकरण या एजेन्सी के पास तकनीकी स्टाफ की उपलब्धता
ख) ब्योरा -
i) तकनीकी मार्गदर्शन
ii) प्रशिक्षण सुविधाएँ
iii) सरकारी सहायता / विस्तार सहायता
ग) ऋण की वसूली के लिए विपणन एजेन्सियों के साथ तालमेल / गठबंधन
घ) बीमा -
- पॉलिसी का प्रकार
- आवधिकता
- प्रीमियम की दर
ङ) क्या कोई सब्सिडी उपलब्ध है , यदि हाँ तो प्रति इकाई सब्सिडी की रकम
च) हरे चारे और पशु-आहार की आपूर्ति की व्यवस्था
अनुबंध II
गाय-भैंसों की विभिन्न नस्लों की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ / विवरण
क्रम सं.
|
नस्ल का नाम
|
वास-स्थान/मुख्य राज्य
|
नस्ल के मूल जिले
|
पशु-हाट, पशु-मेले, विक्रय केन्द्र
|
किन इलाकों में माँग है
|
अभ्युक्ति
|
1
|
2
|
3
|
4
|
5
|
6
|
7
|
क)
| गाय-बैल (देसी) | |||||
1
| अमृत महल | पूर्ववर्ती मैसूर राज्य, जो अब कर्नाटक का हिस्सा है. | टुमकुर और चित्रदुर्ग | पूर्ववर्ती मैसूर राज्य | कर्नाटक और निकटवर्ती क्षेत्र | भारवाहक नस्ल |
2
| डांगी | महाराष्ट्र और गुजरात | अहमदनगर, खानदेश, रायगढ़, नासिक, ठाणे, सूरत | अहमदनगर, नासिक, ठाणे और पश्चिमी खानदेश जिलों के साप्ताहिक बाज़ार | भारी वर्षा वाले चट्टानी घाट क्षेत्र | भारवाहक नस्ल |
3
| देवनी | आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र | मेडक, निज़ामाबाद, महबूबनगर, आदिलाबाद, गुलबर्गा, बीदर, उस्मानाबाद, नांदेड़ | बीदर और निकटवर्ती जिलों में साप्ताहिक मवेशी बाज़ार, जात्रा और मेले | बीदर और निकटवर्ती जिले | भारवाहक नस्ल |
4
| गीर | गीर की पहाड़ियाँ और दक्षिणी काठियावाड़ | जूनाग़़ढ (एनडीआरआई, बंगलुरु द्वारा भी यह नस्ल रखी जाती है) |
_
| गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र | दुधारू नस्ल (डेयरी के प्रयोजन से) |
5
| हल्लिकर | कर्नाटक | टुमकुर, हासन और मैसूर | दोडबल्लापुर, चिकबल्लापुर, हरिहर,देवरगुड्डा,चिक्कुवल्ली, करुवल्ली(कर्नाटक), चित्तवडगी (तमिलनाडु), नॉर्थ ऑरकट (तमिलनाडु), हिन्दूपुर, सोमघट्ट, अनंतपुर (आंध्र प्रदेश) | धारवाड़, नॉर्थ केनरा, बेल्लारी (कर्नाटक), अनंतपुर और चित्तूर (आंध्र प्रदेश), कोयम्बटूर, नॉर्थ ऑरकट, सेलम (तमिलनाडु) | भारवाहक नस्ल |
6
| हरियाणा | हरियाणा औैर दिल्ली, पंजाब, राजस्थान | रोहतक, हिसार, गुड़गाँव, करनाल, पाटियाला, संगरूर, जयपुर, जोधपुर, अलवर, भरतपुर | जहाजगढ़, महीम और बहादुरगढ़ (जिला-रोहतक) तथा हाँसी और भिवानी (जिला- हिसार) के मवेशी मेले | देश भर में | दुधारू और भारवाहक दोनों प्रयोजनों हेतु उपयुक्त नस्ल |
7
| कांगेयम | तमिलनाडु | कोयम्बटूर | अविनाशी, तिरुप्पुर, कन्नापुरम, मदुरई, अथिकोम्बु | तमिलनाडु के दक्षिणी जिले | भारवाहक नस्ल |
8
| कंकरेज | गुजरात | अहमदाबाद, बांसकाण्ठा | अहमदाबाद, राधनपुर | राजस्थान, महाराष्ट्र | |
9
| खिलारी | महाराष्ट्र | शोलापुर, कोल्हापुर, सतारा | महाराष्ट्र के दक्षिणी जिले और आंध्र प्रदेश तथा कर्नाटक के निकटवर्ती जिले | भारवाहक नस्ल | |
10
| कृष्णा घाटी | महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक | कृष्णा का जल-ग्रहण क्षेत्र और आंध्र प्रदेश तथा कर्नाटक का निकटवर्ती क्षेत्र | इच्छलकरंजी (कोल्हापुर), चिंचली (गुलबर्गा) | ||
11
| मालवी | मध्य प्रदेश | गुना, विदिशा, रायसेन, सीहोर, उज्जैन, इंदौर, देवास, ग्वालियर, शिवपुरी, मंदसौर, झाबुउाा और धार | अगार (शाजापुर), सिंगज (निमाड़), सीहोर और आष्टा (सीहोर) | भारवाहक नस्ल | |
राजस्थान | झालावाड़ और कोटा | करीमनगर (आंध्र प्रदेश) | ||||
12
| नागोरी या नागौरी | राजस्थान | जोधपुर और नागौर | नागौर, पर्बतसर (नागपुर), बलोत्रा (बा़़डमेर), पुष्कर (अजमेर), हिसार, हाँसी (हरियाणा राज्य) | राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश | भारवाहक नस्ल |
13
| ओंगोल | आंध्र प्रदेश | ओंगोल, गुंटूर, नरसरावपेट, बापटला और नेल्लोर | आंध्र प्रदेश के ओंगोल में उपलब्ध |
-
| दुधारू और भारवाहक दोनों प्रयोजनों हेतु उपयुक्त नस्ल |
14
| राठी | राजस्थान | अलवर, भरतपुर, जयपुर | अलवर, रेवाड़ी (गुड़गाँव), पुष्कर (अजमेर) |
- -
| - दुधारू नस्ल |
15
| साहिवाल | पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल | साहिवाल (पूर्ववर्ती मौंटगोमरी) | जालंधर, गुरदासपुर, अमृतसर, कपूरथला, फीरोजपुर (पंजाब), एनडीआरआई, करनाल, हिसार, अन्होरा दुर्ग (मध्य प्रदेश), लखनऊ, मेरठ (उत्तर प्रदेश), बिहार, पश्चिम बंगाल |
-
| दुधारू नस्ल |
16
| लाल सिंधी (रेड सिंधी) | पाकिस्तान, भारत के सभी हिस्सों में | - | - |
-
| दुधारू नस्ल |
17
| सीरी | सिक्किम, भूटान | दार्जीलिंग पर्वतीय क्षेत्र | दार्जीलिंग (विक्रेताओं द्वारा लाया जाता है) |
-
| दुधारू और भारवाहक दोनों प्रयोजनों हेतु उपयुक्त नस्ल |
18
| थारपारकर | पाकिस्तान (सिंध) | उमरकोट, नौकोट, धोरो नारो छोड़ | बलोत्रा (जोधपुर), पुष्कर (अजमेर), गुजरात राज्य | - | दुधारू नस्ल |
ग) भैंसें
अनुबंध - III
क) भारतीय गाय-भैंसों की प्रजनन-दर और दुग्ध-उत्पादन का ब्योरा
1
| ब्राउन स्विस | स्विट्ज़रलैण्ड |
-
| भारत, पाकिस्तान और अन्य एशियाई देश |
-
| दुधारू नस्ल | |
2
| होल्सटीन फ्रीजियन | हॉलैण्ड | उत्तरी हॉलैण्ड और पश्चिमी फ्रीजलैण्ड | देश भर में (संकर नस्ल) |
-
| दुधारू नस्ल | |
3
| जर्सी | ब्रिटिश उपद्वीप | जर्सी आइलैण्ड | संकर नस्ल - सभी राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों में उपलब्ध |
-
| दुधारू नस्ल |
क्रम सं.
|
नस्ल का नाम
|
पहले ब्यान के समय उम्र (महीनों में)
|
दो ब्यान के बीच अंतर (महीनों में)
|
दुग्ध-उत्पादन (किलोग्राम)
|
दूध देने की अवधि (दिनों में )
|
दूध न देने की अवधि (दिनों में )
|
दूध देने की अवधि में प्रतिदिन दुग्ध-उत्पादन (कि.ग्रा.)
| |
1
|
2
|
3
|
4
|
5
|
6
|
7
|
8
| |
i)
| गाय | |||||||
क)
| भारतीय नस्लें | |||||||
1
| डांगी |
54
|
17
|
600
|
300
|
210
|
2.0
| |
2
| देवगीर |
48
|
15
|
1,500
|
300
|
150
|
5.0
| |
3
| देवनी |
53
|
14
|
810
|
270
|
150
|
3.0
| |
4
| गीर |
48
|
16
|
1,350
|
270
|
210
|
5.0
| |
5
| गावलाव(Gaolao) |
46
|
16
|
600
|
300
|
180
|
2.0
| |
6
| हल्लिकर |
46
|
20
|
600
|
300
|
300
|
2.0
| |
7
| हरियाणा |
58
|
13
|
1,200
|
240
|
150
|
5.0
| |
8
| कांगेयम |
44
|
16
|
600
|
240
|
240
|
2.5
| |
9
| कंकरेज |
48
|
17
|
1,800
|
360
|
150
|
5.0
| |
10
| खिलारी |
52
|
16
|
240
|
240
|
240
|
1.0
| |
11
| ओंगोल |
40
|
19
|
630
|
210
|
360
|
3.0
| |
12
| राठी |
40
|
19
|
1,815
|
330
|
240
|
5.5
| |
13
| रेड सिंधी |
42
|
14
|
1,620
|
270
|
150
|
6.0
| |
14
| साहिवाल |
40
|
14
|
1,620
|
270
|
150
|
6.0
| |
15
| थारपारकर |
50
|
14
|
1,620
|
270
|
150
|
6.0
| |
16
| उम्बलाचेरी |
46
|
17
|
360
|
240
|
270
|
1.5
| |
17
| अज्ञात नस्ल |
60
|
19
|
405
|
270
|
300
|
1.5
|
1
|
H x F
|
34
|
14
|
2,970
|
330
|
90
|
9.0
|
2
|
H x BS
|
29
|
15
|
2,805
|
330
|
120
|
8.5
|
3
|
H x J
|
33
|
13
|
2,850
|
300
|
90
|
9.5
|
4
|
G x J
|
25
|
13
|
2,640
|
330
|
60
|
8.0
|
5
|
G x F
|
25
|
13
|
2,160
|
270
|
120
|
8.0
|
6
|
RS x F
|
29
|
12
|
2,295
|
270
|
90
|
8.5
|
7
|
RS x RD
|
28
|
12
|
2,160
|
270
|
90
|
8.0
|
8
|
RS x J
|
29
|
12
|
1,500
|
300
|
90
|
5.0
|
9
|
R x J
|
32
|
12
|
2,700
|
300
|
60
|
9.0
|
10
|
T x F
|
33
|
13
|
2,550
|
300
|
90
|
8.5
|
11
|
S x F
|
33
|
14
|
2,400
|
300
|
120
|
8.0
|
1
| भदावरी |
50
|
15
|
1,080
|
270
|
180
|
4.0
|
2
| मुर्रा |
42
|
16
|
1,800
|
300
|
180
|
6.0
|
3
| नीली रावी |
54
|
16
|
1,950
|
300
|
180
|
6.5
|
4
| सूरती |
44
|
16
|
1,765
|
330
|
150
|
5.5
|
5
| मेहसाणी |
50
|
14
|
1,620
|
270
|
150
|
6.0
|
6
| ज़फ्फराबादी |
50
|
14
|
1,620
|
270
|
150
|
6.0
|
7
| पंढरपुरी |
56
|
14
|
1,350
|
270
|
150
|
5.0
|
8
| मराठवाड़ी |
50
|
14
|
1,015
|
270
|
150
|
3.5
|
9
| नागपुरी |
50
|
14
|
1,350
|
270
|
150
|
5.0
|
10
| धारवाड़ी |
50
|
14
|
1,350
|
270
|
150
|
5.0
|
11
| अज्ञात नस्ल |
50
|
16
|
540
|
270
|
210
|
2.0
|
G = गीर T = थारपारकर L = अज्ञात नस्ल
R = राठी F = फ्रीजियन BS = ब्राउन स्विस
RD = रेड डेन J = जर्सी
अनुबंध - IV
भारत के कुछ प्रमुख राज्यों में नाबार्ड द्वारा अनुमोदित गाय-भैंसों की इकाई लागत
अनुबंध V
दो पशुओं (भैंसों) की इकाई वाली परियोजना का आर्थिक विश्लेषण : एक झलक
1
| इकाई का आकार |
:
| 2 पशु |
2
| नस्ल |
:
| ग्रेडेड मुर्रा |
3
| राज्य |
:
| कर्नाटक |
4
| इकाई लागत (रु.) |
:
| 18,223 |
5
| बैंक ऋण (रु.) |
:
| 15,400 |
6
| मार्जिन राशि (रु.) |
:
| 2,823 |
7
| चुकौती-अवधि |
:
| 5 |
8
| ब्याज-दर ( ) |
:
| 12 |
9
| 15 डिस्काउंटिंग फैक्टर पर लाभ-लागत अनुपात |
:
| 1.50:1 |
10
| 15 डिस्काउंटिंग फैक्टर पर शुद्ध वर्तमान मूल्य (NPW) (रु.) |
:
| 29,187 |
11
| आंतरिक प्रतिफल की दर (IRR) ( ) |
:
| >50 |
क. निवेश लागत
क्रम सं. |
मद
|
विवरण
|
भौतिक इकाइयां
|
इकाई लागत (रु. / इकाई)
|
कुल लागत (रु.)
|
1
| पशुओं की लागत |
2
| 8,200 | 16,400 | |
2
| बीमा |
2
| 689 | 1,378 | |
3
| सान्द्र आहार / दाना / रातिब (30 दिनों के लिए 4.5 किलोग्राम प्रतिदिन प्रति पशु) |
135 किलोग्राम
|
1
| 3.3 | 446 |
4
| कुल लागत | ण | 18,223 | ||
5
| मार्जिन राशि (कुल लागत का 15 ) | अर्थात् रु. | 2,733 2723 | ||
6
| बैंक ऋण (कुल लागत का 85 ) | अर्थात् रु. | 15490 15500 |
i)
| दुधारू पशुओं की संख्या | 2 |
ii)
| दुधारू पशुओं की लागत | 8,200 |
iii)
| दूध देने की अवधि (दिन) | 280 |
iv)
| दूध न देने की अवधि (दिन) | 150 |
v)
| दुग्ध-उत्पादन (लीटर प्रतिदिन) | 7 |
vi)
| दूध का बिक्री मूल्य (रुपये प्रति लीटर) | 7.75 |
vii)
| प्रति पशु प्रति वर्ष खाद की बिक्री (रु.) | 300 |
viii)
| पाँच वर्षों के लिए बीमा प्रीमियम ( ) | 8.4 |
ix)
| प्रति पशु प्रति वर्ष पशु-चिकित्सा व्यय (रु.) | 150 |
x)
| मजदूरी (रु.) | घर-परिवार के सदस्यों द्वारा श्रम-कार्य |
xi)
| बिजली और पानी की लागत (रुपये प्रति पशु) | 100 |
xii)
| ब्याज की दर ( ) | 12 |
xiii
| चुकौती-अवधि (वर्ष) | 5 |
xiv)
| बोरियों की बिक्री से आमदनी प्रति टन 20 बोरियाँ (रु.5/- प्रति बोरी की दर से)ं | 100 |
xv)
| आहार की मात्रा एवं कीमत | ण |
क्रम सं.
|
चारे / आहार का प्रकार
|
मूल्य (रुपये प्रति किलोग्राम
|
(मात्रा प्रतिदिन किलोग्राम में)
| |
दूध देने की अवधि में
|
दूध न देने की अवधि में
| |||
क)
|
हरा चारा
|
0.2
|
25
|
25
|
ख)
|
सूखा चारा
|
0.5
|
5
|
5
|
ग)
|
सान्द्र आहार (दाना / रातिब)
|
3.3
|
4.5
|
1
|
xvii) यह मान लिया गया है कि बछड़ों को पालने में हुआ खर्च
बछ़डे / ओसर की बिक्री से होने वाली आमदनी के बराबर होगा.
xviii) कार्यकलाप की आर्थिक अवधि समाप्त होने पर प्रत्येक पशु का मूल्य (रुपये में) : 4100
ग. भैंसों द्वारा दूध देने और दूध न देने की अवधि दर्शाने वाली तालिका
क्रम सं. |
विवरण
|
वर्ष
| ||||
I
|
II
|
III
|
IV
|
V
| ||
i) | दूध देने की अवधि (दिनों में) | |||||
क) | पहला जत्था |
250
|
280
|
250
|
210
|
210
|
ख) | दूसरा जत्था |
180
|
210
|
210
|
210
|
210
|
ण | योग |
430
|
490
|
460
|
420
|
420
|
ii) | दूध न देने की अवधि (दिनों में) | |||||
क) | पहला जत्था |
110
|
80
|
110
|
150
|
150
|
ख) | दूसरा जत्था |
-
|
150
|
150
|
150
|
150
|
ण | योग |
110
|
230
|
260
|
300
|
300
|
घ. नकदी प्रवाह का विश्लेषण
क्रम सं. |
विवरण
|
वर्ष
| ||||
I
|
II
|
III
|
IV
|
V
| ||
I
| लागत : | |||||
1
| पूँजीगत लागत* | 17,777 | ||||
2
| आवर्ती लागत | |||||
क)
| दूध देने की अवधि में आहार | |||||
1
| हरा चारा | 2,150 | 2,450 | 2,300 | 2,100 | 2,100 |
2
| सूखा चारा | 1,075 | 1,225 | 1,150 | 1,050 | 1,050 |
3
| सान्द्र आहार (दाना / रातिब) | 6,386 | 7,277 | 6,831 | 6,237 | 6,237 |
4
| योग | 9,611 | 10,952 | 10,281 | 9,387 | 9,387 |
ख)
| दूध न देने की अवधि में आहार | |||||
1
| हरा चारा | 550 | 1,150 | 1,300 | 1,500 | 1,500 |
2
| सूखा चारा | 275 | 575 | 575 | 750 | 750 |
3
| सान्द्र आहार (दाना / रातिब) | 363 | 759 | 858 | 990 | 990 |
4
| योग | 1,188 | 2,484 | 2,733 | 3,240 | 3,240 |
ग)
| पशु-चिकित्सा एवं प्रजनन सुरक्षा | 225 | 300 | 300 | 300 | 300 |
घ)
| बिजली और पानी की लागत | 150 | 200 | 200 | 200 | 200 |
1
| योग | 28,951 | 13,936 | 13,514 | 13,127 | 13,127 |
II
| लाभ | |||||
क)
| दूध की बिक्री | 23,328 | 26,583 | 24,955 | 22,785 | 22,785 |
ख)
| बोरियों की बिक्री | 205 | 232 | 218 | 200 | 200 |
ग)
| खाद की बिक्री | 450 | 600 | 600 | 600 | 600 |
घ)
| कार्यकलाप की आर्थिक अवधि समाप्त होने पर पशुओं का मूल्य | 8,200 | ||||
1
| योग | 23,982 | 27,414 | 25,773 | 23,585 | 31,785 |
III
| 15 की दर से डिस्काउंटिंग फैक्टर (बट्टा) | 0.870 | 0.756 | 0.658 | 0.572 | 0.497 |
IV
| 15 की दर से बट्टा काटने पर लागत | 25,175 | 10,537 | 8,886 | 7,505 | 6,526 |
V
| 15 की दर से बट्टा काटने पर लाभ | 20,854 | 20,729 | 16,946 | 13,485 | 15,803 |
VI
| 15 की दर से शुद्ध वर्तमान मूल्य (NPW) | 29,187 | ||||
VII
| 15 की दर से लाभ-लागत अनुपात (BCR) | 1.50:1 | ||||
VIII
| 50 की दर से डिस्काउंटिंग फैक्टर (बट्टा) | 0.667 | 0.444 | 0.296 | 0.198 | 0.132 |
IX
| शुद्ध लाभ | -4,969 | 13,479 | 12,259 | 10,458 | 18,658 |
X
| 50 की दर से बट्टा काटने पर शुद्ध लाभ | -3,313 | 5,990 | 3,632 | 2,066 | 2,457 |
XI
| आंतरिक प्रतिफल की दर | >50 | ||||
1
|
ङ चुकौती अनुसूची (चुकौती का विवरण)
बैंक ऋण (रु.) - 15500
ब्याज-दर ( ) - 12
पूँजी वसूली गुणक (factor) - 0.277
वर्ष
|
आय
|
व्यय
|
सकल अधिशेष
|
समानीकृत वार्षिक किश्त
|
शुद्ध अधिशेष
|
I
| 23,982 | 10,728 | 13,254 | 4,294 | 8,961 |
II
| 27,414 | 13,936 | 13,479 | 4,294 | 9,185 |
III
| 25,773 | 13,514 | 12,259 | 4,294 | 7,966 |
IV
| 23,585 | 13,127 | 10,458 | 4,294 | 6,165 |
V
| 23,585 | 13,127 | 10,458 | 4,294 | 6,165 |
दस पशुओं (भैंसों) की लघु डेयरी इकाई का आर्थिक विश्लेषण
परियोजना की एक झलक
1
| इकाई का आकार |
:
| 10 पशु |
2
| नस्ल |
:
| ग्रेडेड मुर्रा |
3
| राज्य |
:
| कर्नाटक |
4
| इकाईलागत (रु.) |
:
| 155,030 |
5
| बैंक ऋण (रु.) |
:
| 131,700 |
6
| मार्जिन राशि (रु.) |
:
| 23,330 |
7
| चुकौती अवधि (वर्ष) |
:
| 5 |
8
| ब्याज-दर ( ) |
:
| 13.5 |
9
| 15 बट्टे (डिस्काउंटिंग फैक्टर) पर लाभ-लागत अनुपात (BCR) |
:
| 1.53:1 |
10
| 15 बट्टे (डिस्काउंटिंग फैक्टर) पर शुद्ध वर्तमान मूल्य (NPW) (रु.) |
:
| 154,403 |
11
| आंतरिक प्रतिफल की दर ( ) |
:
| >50 |
क. निवेश लागत
क्रम सं. |
मद
|
विवरण
|
भौतिक इकाइयाँ
|
इकाई लागत (रु.प्रति इकाई)
|
कुल लागत (रु.)
|
1
| पशुओं की लागत | 10 | 8,200 | 8,200 | |
2
| पशुओं को ढोने से जुड़ी परिवहन-लागत | 10 | 300 | 3,000 | |
3
| शेड के निर्माण की लागत | वर्ग फीट | 650 | 55 | 35,750 |
4
| भंडार-गृह (स्टोर) - सह - कार्यालय की लागत | वर्ग फीट | 200 | 100 | 20,000 |
5
| उपकरण / यंत्र (चारा काटने की मशीन, दूध की बाल्टियाँ, बर्तन / डब्बे, टेक्नीशियन) | ण | 10 | 500 | 5,000 |
6
| बीमा | 10 | 328 | 3,280 | |
7
| चारा उगाने पर व्यय प्रति एकड़ रु.3000/- | 2 | 3,000 | 6,000 | |
8
| कुल लागत | 155,030 | |||
9
| मार्जिन राशि (कुल लागत का 15 ) | अर्थात् | 23255 23330 | ||
10
| बैंक ऋण (कुल लागत का 85 ) | अर्थात्् | 131776 131700 |
ख. तकनीकी-आर्थिक मानदण्ड
i
| पशु दो जत्थों में 5-6 माह के अंतराल पर खरीदे जाएंगे | |
ii
| पहले साल, दूसरे / तीसरे ब्यान वाले पशु बछड़ा ब्याने के 30 दिनों के भीतर खरीदे जाने चाहिए | |
iii
| परियोजना में चारे के उत्पादन हेतु हिसाब में लिया गया सिंचित भूमि का रकबा (हरे चारे का उत्पादन फार्म पर किया जाएगा. नकदी-प्रवाह विश्लेषण में चारे के उत्पादन से जुड़े व्यय को हिसाब में लिया गया है. पहले साल केवल दो मौसमों पर विचार किया गया है) |
2 एकड़
|
iv
| पहले साल चारे के उत्पादन से जुड़े व्यय को एक मौसम हेतु पूँजीकृत किया गया है (प्रति एकड़ प्रति मौसम रुपये में). खाद का इस्तेमाल चारा-उत्पादन हेतु किया जाएगा. |
3,000
|
v
| यह माना गया है कि बछड़ों के पालन-पोषण पर होने वाला व्यय उनकी बिक्री से प्राप्त होने वाली आमदनी के बराबर होगा. तथापि, ओसर (Heifer) को फार्म में ही रखा जाएगा और पुराने / उम्रदराज पशु बेचे जाएँगे. | |
vi
| दुधारू पशुओं की संख्या |
10
|
vii
| दुधारू पशुओं की लागत |
8,200
|
viii
| परिवहन लागत (रु. प्रति दुधारू पशु ; |
300
|
ix
| निर्माण कार्य : | ण |
ण
| क) शेड (वर्ग फीट प्रति दुधारू पशु) ख) स्टोर और कार्यालय (वर्ग फीट) |
65 200
|
x
| निर्माण-लागत क) शेड (रु.प्रति वर्ग फीट) ख) स्टोर और कार्यालय (रुपये प्रति वर्ग फीट) |
55 100
|
xi
| उपकरण / यंत्र की लागत (रु.प्रति दुधारू पशु) |
500
|
xii
| दूध देने की अवधि (दिनों में) |
280
|
xiii
| दूध न देने की अवधि (दिनों में) |
150
|
xiv
| दूध का उत्पादन (लीटर प्रतिदिन) |
7
|
xv
| दूध का बिक्री-मूल्य (रुपये प्रति लीटर) |
7.75
|
xvi
| बोरियों की बिक्री से आमदनी (20 बोरियां प्रति टन ; प्रति बोरी 5 रुपये की दर से) |
100
|
xvii
| दूध देने की अवधि और दूध न देने की अवधि में दिए जाने वाले सूखे चारे पर खर्च | |
अपेक्षित मात्रा (किलोग्राम प्रतिदिन |
5
| |
लागत (रु. प्रति किलोग्राम) |
0.5
| |
xviii
| दाना / रातिब (सान्द्र आहार) का खर्च क) अपेक्षित मात्रा (किलोग्राम प्रतिदिन) दूध देने की अवधि में दूध न देने की अवधि में ख) लागत (रु. प्रति किलोग्राम) |
4.5 1 3.3
|
xix
| पशु-चिकित्सा पर व्यय प्रति पशु प्रति वर्ष (रुपये) |
150
|
xx
| मजदूरी (रुपये प्रति माह) |
900
|
xxi
| बीमा प्रीमियम ( ) |
4
|
xxii
| बिजली, पानी की लागत और अन्य ऊपरी खर्च (रुपये प्रति वर्ष) |
200
|
xxiii
| मूल्यह्रास( ) क) शेड ख) उपकरण / यंत्र |
5 10
|
xxiv
| परियोजना की आर्थिक अवधि समाप्त होने पर पशुओं का मूल्य (रुपये प्रति पशु) |
4,100
|
xxv
| ब्याज-दर( ) |
13.5
|
xxvi
| चुकौती-अवधि (वर्ष) |
5
|
ग. भैंसों द्वारा दूध देने और दूध न देने की अवधि दर्शाने वाली तालिका
क्रम सं. |
विवरण
|
वर्ष
| ||||
I
|
II
|
III
|
IV
|
V
| ||
I
| दूध देने की अवधि (दिनों में) | |||||
क)
| पहला जत्था |
1,250
|
1,400
|
1,250
|
1,050
|
1,050
|
ख)
| दूसरा जत्था |
900
|
1,050
|
1,050
|
1,050
|
1,050
|
योग
|
2,150
|
2,450
|
2,300
|
2,100
|
2,100
| |
II
|
दूध न देने की अवधि (दिनों में)
| |||||
क)
| पहला जत्था |
550
|
400
|
550
|
750
|
750
|
ख)
| दूसरा जत्था |
-
|
750
|
750
|
750
|
750
|
योग
|
550
|
1,150
|
1,300
|
1,500
|
क्र. |
विवरण
|
वर्ष
| ||||
I
|
II
|
III
|
IV
|
IV
| ||
I | लागत | |||||
1 | पूँजीगत लागत* |
145,750
| ||||
2 | आवर्ती लागत | |||||
क) | हरा चारा उगाने पर खर्च |
12,000
|
18,000
|
18,000
|
18,000
|
18,000
|
ख) | दूध देने की अवधि में आहार | |||||
सूखा चारा |
5,375
|
6,125
|
5,750
|
5,250
|
5,250
| |
दाना / रातिब (सान्द्र आहार) |
31,928
|
36,383
|
34,155
|
31,185
|
31,185
| |
योग |
37,303
|
42,508
|
39,905
|
36,435
|
36,435
| |
ग) | दूध न देने की अवधि में आहार | |||||
ण | सूखा चारा |
1,375
|
2,875
|
3,250
|
3,750
|
3,750
|
दाना / रातिब (सान्द्र आहार) |
1,815
|
3,795
|
4,290
|
4,950
|
4,950
| |
योग |
3,190
|
6,670
|
7,540
|
8,700
|
8,700
| |
घ) | पशु-चिकित्सा और प्रजनन सुरक्षा |
1,125
|
1,500
|
1,500
|
1,500
|
1,500
|
ङ) | बिजली और पानी की लागत |
1,500
|
2,000
|
2,000
|
2,000
|
2,000
|
च) | बीमा |
3,280
|
3,280
|
3,280
|
3,280
|
3,280
|
छ) | मजदूरी |
10,800
|
10,800
|
10,800
|
10,800
|
10,800
|
योग |
188,868
|
52,678
|
50,945
|
49,503
|
48,635
| |
II | लाभ |
ण
|
ण
|
ण
|
ण
|
ण
|
क) | दूध की बिक्री |
116,637
|
132,912
|
124,775
|
113,925
|
113,925
|
ख) | बोरियों की बिक्री |
1,023
|
1,218
|
1,165
|
1,095
|
1,095
|
ग) | मूल्यह्रास के बाद शेडों का मूल्य |
-
|
ण
|
ण
|
ण
|
26,813
|
घ) | मूल्यह्रास के बाद उपकरणों का मूल्य |
ण
|
ण
|
ण
|
ण
|
2,500
|
ङ) | इकाई की आर्थिक अवधि समाप्त होने पर पशुओं का मूल्य |
ण
|
ण
|
ण
|
ण
|
41,000
|
योग |
117,660
|
134,130
|
125,940
|
115,020
|
185,333
| |
III | 15 की दर से बट्टा (डिस्काउंटिंग फैक्टर) |
0.87
|
0.76
|
0.66
|
0.57
|
0.50
|
IV | 15 की दर से बट्टा काटने के बाद लागत |
164,233
|
39,832
|
33,497
|
28,303
|
24,180
|
V | 15 की दर से बट्टा काटने के बाद लाभ |
102,313
|
101,422
|
82,808
|
65,763
|
92,143
|
VI | 15 की दर से शुद्ध वर्तमान मूल्य (NPW) |
154,403
|
ण
|
ण
|
ण
|
ण
|
VII | 15 की दर से लाभ -लागत अनुपात (BCR) |
1.53:1
|
ण
|
ण
|
ण
|
ण
|
VIII | 50 की दर से बट्टा (डिस्काउंटिंग फैक्टर) |
0.667
|
0.444
|
0.296
|
0.198
|
0.132
|
IX | शुद्ध लाभ |
-71,208
|
81,453
|
74,995
|
65,518
|
136,698
|
X | 50 की दर से बट्टा काटने के बाद शुद्ध लाभ |
47,472
|
36,201
|
22,221
|
12,942
|
18,001
|
XI | आंतरिक प्रतिफल की दर (IRR) |
>50
|
ङ चुकौती अनुसूची (चुकौती का ब्योरा)
बैंक ऋण (रु.) - 131700
ब्याज की दर ( ) - 13.5
पूँजी वसूली गुणक (Capital recovery factor) - 0.287
(रुपये में)
वर्ष
|
आय
|
व्यय
|
सकल अधिशेष
|
समानीकृत वार्षिक किश्त
|
शुद्ध अधिशेष
|
I
| 117,660 | 33,838 | 83,823 | 37,798 | 46,025 |
II
| 134,130 | 52,678 | 81,453 | 37,798 | 43,655 |
III
| 125,940 | 50,945 | 74,995 | 37,798 | 47,197 |
IV
| 115,020 | 49,503 | 65,518 | 37,798 | 27,720 |
V
| 115,020 | 48,635 | 66,385 | 37,798 | 28,587 |
संकर नस्ल के मवेशी के लिए आवासीय आवश्यकता
आयु-वर्ग |
नाँद के लिए स्थान (मीटर)
|
छतदार स्थान (वर्गमीटर)
|
खुली जगह(वर्गमीटर)
|
4-6 माह
|
0.2-0.3
|
0.8-1.0
|
3.0-4.0
|
6-12 माह
|
0.3-0.4
|
1.2-1.6
|
5.0-6.0
|
1-2 वर्ष
|
0.4-0.5
|
1.6-1.8
|
6.0-8.0
|
गायें
|
0.8-1.0
|
1.8-2.0
|
11.0-12.0
|
गाभिन गायें
|
1.0-1.2
|
8.5-10.0
|
15.0-20.0
|
सांड*
|
1.0-1.2
|
9.0-11.0
|
20.0-22.0
|
अनुबंध - VIII
डेयरी पशुओं के आहार और खुराक का ब्योरा
(मात्रा किलोग्राम में)
क्रम सं. |
पशु का प्रकार
|
.......के दौरान आहार
|
हरा चारा
|
सूखा चारा
|
दाना / रातिब (सान्द्र आहार)
|
1
|
2
|
3
|
4
|
5
|
6
|
(क) | संकर नस्ल की गाय | ||||
अ) | प्रतिदिन 6 से 7 लीटर दूध देने वाली | दूध देने की अवधि दूध न देने की अवधि | 20 से 25 15 से 20 | 5 से 6 6 से 7ि | 3.0 से 3.5 0.5 से 1.0 |
आ) | प्रतिदिन 8 से 10 लीटर दूध देने वाली | दूध देने की अवधि दूध न देने की अवधि | 25 से 30 20 से 25 | 4 से 5 6 से 7 | 4.0 से 4.5 0.5 से 1.0 |
(ख) | भैंसें | ||||
अ) | मुर्रा (प्रतिदिन 7 से 8 लीटर दूध देने वाली) | दूध देने की अवधि दूध न देने की अवधि | 25 से 30 20 से 25 | 4 से 5 5 से 6 | 3.5 से 4.0 0.5 से 1.0 |
आ) | मेहसाणा (प्रतिदिन 6 से 7 लीटर दूध देने वाली) | दूध देने की अवधि दूध न देने की अवधि | 15 से 20 10 से 15 | 4 से 5 5 से 6 | 3.0 से 3.5 0.5 से 1.0 |
इ) | सुरती (प्रतिदिन 5 से 6 लीटर दूध देने वाली) | दूध देने की अवधि दूध न देने की अवधि | 10 से 15 5 से 10 | 4 से 5 5 से 6 | 2.5 से 3.0 0.5 से 1.0 |
संक्रामक रोगों से बचाव के लिए पशुओं का टीकाकरण कार्यक्रम
क्रम सं.
|
रोग का नाम
|
टीके का प्रकार
|
टीकाकरण का समय / आवृत्ति
|
रोग से बचाव कब तक
|
टिप्पणी
|
1
|
2
|
3
|
4
|
5
|
6
|
1
| ऐन्थ्रैक्स | बीजाणु टीका (Spore vaccine) | वर्ष में एक बार - मौनसून से पहले टीकाकरण | एक मौसम तक |
-
|
2
| ब्लैक क्वार्टर (सुजाब) | किल्ड वैक्सीन (Killed vaccine) | - वही - | - वही - |
-
|
3
| हेमोरेजिक सेप्टिसेमिया (गलघोंटू) | ऑक्लेजुवेण्ट वैक्सीन (Ocladjuvant vaccine) | - वही - | - वही - |
-
|
4
| ब्रूसेलोसिस (संक्रामक गर्भपात) | कॉटन स्ट्रेन 19 (जिन्दा बैक्टीरिया) | लगभग 6 माह की उम्र में | 3 या 4 ब्यान तक | केवल संक्रमित पशुओं को ही टीका लगवाया जाए. |
5
| खुरपका मुँहपका रोग (मुँहखार) | पोलीवैलेण्ट टिश्यू कल्चर वैक्सीन | लगभग 6 माह की उम्र में और उसके 4 माह बाद बूस्टर डोज़ | एक मौसम तक | पहले टीकरण के बाद पुन: हर साल अक्तूबर-नवंबर में टीकाकरण |
6
| पशुप्लेग (माता) | विदेशी और संकर नस्ल के लिए लैपिनाइज्ड एवियनाइज्ड वैक्सीन ; ज़ीबू मवेशी के लिए कैप्रिनाइज्ड वैक्सीन | लगभग 6 माह की उम्र में | जीवनपर्यन्त | 3 से 4 वर्षों के बाद पुन: टीका लगवाना बेहतर होगा. |
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ReplyDeleteबहत
ReplyDeleteबहुत अच्छा जानकारी मिली है इस के आधार पर कोई भी अपना व्यवसाय शुरू कर सकता है
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