Wednesday, January 8, 2014

बकरी पालन के लाभ....

अधिक लाभ के लिए जनन चक्र अपनाए:
      भारत की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में बकरी जैसा छोटे आकार का पशु भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। विगत 2-3 दषकों में ऊंची वार्षिक वध दर के बावजूद विकासषील देषों में बकरियों की संख्या में निरंतर वृध्दिइनके सामाजिक और आर्थिक महत्व का दर्षाती है। प्राकृतिक रूप से निम्न कारक बकरी विकास दर को बढ़ाने में सहायक सिध्द हो रहे हैं।
· बकरी का मानव व पशु प्रजातियों के अयोग्य खाद्य पदार्थों को उच्च कोटि के पोक पदार्थों (मांसदूध) और अन्य उत्पादों / उपत्पादों (रेषाबालखाल) में परिवर्तित करने की क्षमता रखना।
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बकरी पालन का एक लाभकारी पहलू यह भी है कि इसे बच्चे व महिलाएं आसानी से पाल सकते हैं। वर्तमान में बकरी व्यवसाय की लोकप्रियता तथा सफलता की अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि देष के विभिन्न प्रान्तों में इसका व्यवसायीकरण हो रहा है। औद्यौगिक घराने और व्यवसायी बकरी पालन पर प्रषिक्षण प्राप्त आगे रहे हैं और बड़े-बड़े बकरी फार्म सफलतापूर्वक चल रहे हैं।
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·बकरी का विभिन्न जपवायु क्षेत्रों में अपने को ढालने की क्षमता रखना। इसी गुण के कारण बकरियां देष के विभिन्न भौगोलिक भू-भागों में पाई जाती हैं।
·बकरी की अनेक नस्लों का एक से अधिक बच्चे की क्षमता रखना।
· बकरी की व्याने के उपरांत अन्य पशु प्रजातियों की तुलना में पुन: जनन के लिए जल्दी तैयार हो जाना।
·बकरी मांस का समाज में सभी वर्गों द्वारा बिना किसी धार्मिक बंधन के उपयोग किया जाना।
·बकरी उत्पादों की बढ़ती मांग और षीघ्र विपणन।
           वर्तमान परिस्थितियों में कृषि योग्य भूमि कम होती जा रही है और चारागाह सिकुड़ रहे हैं। ऐसे में बड़े पालतू पशुओं का पालन ज्यादा मुनाफं का व्यवसाय नहीं है। अत: बकरी जैसा छोटा पशु इस कसौटी पर खरा उतरता है। बकरी पालन का एक लाभकारी पहलू यह भी है कि इसे बच्चे व महिलाएं भी आसानी से पाल सकते हैं। वर्तमान में बकरी व्यवसाय की लोकप्रियता तथा सफलता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि देष के विभिन्न प्रांतों में इसका व्यवसायीकरण हो रहा है। औद्यौगिक घराने और व्यवसायी बकरी पालन पर प्रषिक्षण प्राप्त आगे रहे हैं और बड़े-बड़े बकरी फार्म सफलतापूर्वक चल रहे हैं।

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     बकरियों के प्रजनन के लिए सबसे उपयुक्त समय मई के दूसरे सप्ताह से जुलाई तक होता है। ये बकरियां अक्टूबर के दूसरे सप्ताह से दिसम्बर की प्रथम सप्ताह तक बच्चा दे देती हैं। इसी तरह नवम्बर व दिसम्बर का मौसम प्रजनन के लिए अनुकूल है। इस मौसम में गर्भधारण करने वाली बकरियां मार्च-अप्रैल तक बच्चा दे देती हैं।
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      किसी भी पशु उत्पादन आधारित व्यवसाय की सफलता पशु की क्षमता से जुड़े जनन चक्र की नियमितता और सततता पर निर्भर करती है। अत: जनन चक्र का अपना कर पशु की जनन क्षमता में कई गुना वृध्दि की जा सकती है। भारतीय नस्ल की बकरियों के जनन अभिलक्षणों में विभेद होने के कारण इनकी जनन क्षमता में समानता नहीं है। सम्पूर्ण जनन को अगर एक चक्र से रूप में माने तो इससे जुड़ी प्रक्रियाओं को मुख्यरूप  से चार चरणों में बांटा जा सकता है जो एक-दूसरे से जुड़ी हैं। इन्हीं प्रक्रियाओं का वर्णन प्रस्तुत आलेख में किया गया है।

बात प्रजनन की:
      जनन चक्र के प्रथम चरण का आरम्भ बकरी के प्रजनन से होता है उत्ताम प्रजनन ही सफल बकरी पालन की कुंजी है। प्रत्येक नस्ल की बकरी एक निष्चित उम्र तथा षारीरिक भार (लैंगिक परिपक्वता) प्राप्त करने के बाद ही गर्भधान के योग्य होती है। अन्य पशु प्रजातियों की भांति बकरियों की प्रजनन क्षमता उम्र बढ़ने की साथ बढ़ती है। यहां 2-5 वर्ष की आयु अधिकतम होती है। बकरियों में प्रजनन की क्षमता सात वर्ष की आयु तक बनी रहती है। इसके बाद इसमे कमी आने लगती है। बकरी 10 वर्ष की आयु तक बच्चे देने में सक्षम है परन्तु अधिकांष बकरी पालक इन्हे 7-8 वर्ष की आयु के बाद अपने रेवड़ से हटा देते हैं। नर बकरे 2-6 वर्ष की उम्र तक गर्भधान करने योग्य बने रहते हैं। दूध देने वाली बकरी की नस्लों में प्रति ब्यांत बच्चे देने की दर मांस के लिए पाली जा रही बकरियों की तुलना में कम होती है। भारतीय नस्ल की बकरियां लगभग पूरे वर्ष ही ऋतु (गर्मी) में आती रहती हैंहालांकि इसकी आवृति घटती-बढ़ती रहती है। रेवड़ की स्वस्थ बकरियां गर्भ न ठहरने पर 17-21 दिन के अंतराल पर नियमित ऋतु चक्र (मदचक्र) में आती रहती हैं। इसके फलस्वरूप् प्रजनन प्रक्रिया वर्ष भर चलती रहती है। यह प्रभावी पशु प्रबंध व आर्थिक दृष्टि से व्यवहारिक नहीं है। बकरी पालक पालक प्रजनन को इस प्रकार सामायोजित करें कि नवजात मेमनों के स्वास्थ्य के लिए मौसम अनुकूल रहेचारा संसाधनों की उपलब्धता बनी रहेजिससे आगे चलकर बिक्री के लिए बाजार मांग की पूर्ति होती रहे। बकरियां 24-28 घंटे तक गर्मी (मदकाल) में रहती हैं तथा इसी सीमित अवधि में बकरे को समागम का अवसर देती हैं। इस अवधि में गर्भाधान (नैसर्गिक या कृत्रिम) कराने पर वह गर्भित होती हैं। मदकाल में आई बकरियों का पता करने के लिए बकरी पालक 50-60 बकरियों का समूह में एक टीजर बकरा सुबह-षाम आधा-आधा घंटा घुमाएं। मदकाल में आई बकरियों में निम्न लक्ष्ण स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होते हैं।

·अधिक उत्तोजनादाना-पानी कम खाना व मिमयाना।
· बार-बार पेषाव करना व तेजी से पूंछ हिलाना।
· झुंड की दूसरी बकरियों पर आरोहरण (चढ़ना) तथा दूसरी बकरियों को अपने ऊपर आरोहरण करने देना।
·योनि में सूजन तथा योनि मार्ग से थोड़ी मात्रा में पारदर्षी तोड़ गिरनाजो कभी-कभी पूंछ पर लगा भी देखा जा सकता है।
·दूधारू बकरियों में दूध की मात्रा में कमी होना।
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     प्रसव पीड़ा आरम्भ में हलकी व बाद मे तीव्र होने लगती है। यह सभी लक्षण इस बात का संकेत हैं कि बकरी षीघ्र ब्याने वाली है। आमतौर पर प्रसव वेदना षुरू होने के 3-4 घंटे में बकरी बच्चे को जन्म दे देती है। पहली बार ब्याने वाली बकरी कुछ ज्यादा समय लेती है। बच्चा निकलने से पहले एक झिल्लीनुमा चमकीला गुब्बारा निकलता है। अधिकतर बकरियां लेटकर बच्चा देती हैं।
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यह आवष्यक नहीं कि उपरोक्त सभी लक्षण एक साथ प्रकट हों। दो-तीन लक्षणों के आधार पर भी ऋतुमयी बकरियों को पहचाना जा सकता है। प्रजनन से 15-20 दिन पहले से अगर बकरियों के दाने की मात्रा 250-500 ग्राम प्रतिदिन के हिसाब से बढ़ा दी जाए तो इसका प्रजनन प्रतिषत तथा गर्भधारण की दर पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। फलस्वरूप प्रति ब्यांत अधिक बच्चे पैदा होते हैं। ऋतु में आई बकरी का सामयिक प्रजनन भी उतना जरूरी हैजितना कि ऋतुमयी बकरियों की पहचान। ऋतु में आई प्रत्येक बकरी को ऋतु (गर्मी) के लक्षण प्रकट करने के 10-12 घंटे बाद पहली बार उत्ताम नस्ल के बीजू बकरे से या कृत्रिम गर्भाधान विधि से गाभिन कराएं। अगर बकरी 24 घंटे बाद भी गर्मी में रहती है तो उसे पुन10-12 घंटे के अंतराल पर उसी बकरे से गाभिन कराए। बकरियों के प्रजनन के लिए सबसे उपयुक्त समय मई के दूसरे सप्ताह से जुलाई तक होता है। ये बकरियां अक्टूबर के दूसरे सप्ताह से दिसम्बर की प्रथम सप्ताह तक बच्चा दे देती हैं। इसी तरह नवम्बर व दिसम्बर का मौसम प्रजनन के लिए अनुकूल है। इस मौसम में गर्भधारण करने वाली बकरियां मार्च-अप्रैल तक बच्चा दे देती हैं। इस प्रकार एक वर्ङ्ढ में दो बार बकरियों का गाभिन कराने पर करीब 60-75 प्रतिषत बकरियां बच्चा देती हैं।
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भारतीय नस्ल की बकरियों के जनन अभिलक्षणों में विभेद होने के कारण इनकी जनन क्षमता में समानता नहीं है। सम्पूर्ण जनन को अगर एक चक्र से रूप में माने तो इससे जुड़ी प्रक्रियाओं को मुख्यरूप  से चार चरणों में बांटा जा सकता है जो एक-दूसरे से जुड़ी हैं। इन्हीं प्रक्रियाओं का वर्णन प्रस्तुत आलेख में किया गया है।
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भारतीय बकरी नस्लों के प्रमुख जनन अभिलक्षण
बकरी नस्ल
लैगिक परिपक्क्वता

प्रजनन ऋतु

मदकाल की अवधि (घंटे)

मदचक्र की अवधि (दिन)

प्रसवोपरांत मदकाल (दिन)

आयु (दिन)

वनज (कि.ग्रा.)

1. जमुनापारी

553

25

मई-जुलाई व अक्टूबर-नवम्वर

38

19

149

2. बीटल

523

24

वर्षभरआवृति बदली रहती है

24

19

170

3. सिरोही

499

27

फरवरी-मई व अक्टूबर-नवम्वर

12-24

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4. जखराना

421

22

मई-नवम्बर,आवृति बदली रहती है

29

21

131

5. मारवाड़ी

311

17

मई-दिसम्बर आवृति बदली रहती है

35

19

171

6. कच्छी

561

24

मई-दिसम्बर आवृति बदली रहती है

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168

7. बारबरी

288

16

वर्षभरआवृति बदली रहती है

38

19

56

8. सुरती

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55

20

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9. मालाबारी

437

18

वर्ङ्ढभरआवृति बदली रहती है

52

21

91

10. काली बंगाल

300

13

वर्ङ्ढभरआवृति बदली रहती है

40

19

67

11. चैंगू (पशमीना)

365

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वर्ङ्ढभरआवृति बदली रहती है

24

20

48


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गर्भ निदान के अभाव में बकरियों को गर्भावस्था में उचित आहार और पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता है जो गर्भपाता की संभावना को बढ़ा देता है और कमजोर बच्चे पैदा होते हैं। इसके साथ-साथ खाली (गैर गाभिन) बकरियों के रखरखाव पर अनावष्यक खर्चा करना पड़ता है तथा समय रहते पुनगर्भधान न कराने से बकरी पालन व्यवसाय से अपेक्षित लाभ नहीं मिलता है।
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सामयिक गर्भ निदान:
      गाभिन बकरियों के गर्भ की जांचजनन चक्र का दूसरा चरण है। इसकी उचित समय पर पुष्टि प्रभावी प्रक्षेत्र प्रबंध तथा लाभकारी बकरी पालन की दृष्टि से आवष्यक है। बकरी का गर्भकाल लगभग 5 माह (145-152दिन) होता है। बकरी के गर्भाधान के 18-21 दिन के बाद गर्मी में न आने के अन्य कारण भी हो सकते हैं। गर्भ निदान के अभाव में बकरियों को गर्भावस्था में उचित आहार और पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता है जो गर्भपाता की संभावना को बढ़ा देता है और कमजोर बच्चे पैदा होते हैं। इसके साथ-साथ खाली (गैर गाभिन) बकरियों के रखरखाव पर अनावष्यक खर्चा करना पड़ता है तथा समय रहते पुन: गर्भधान न कराने से बकरी पालन व्यवसाय से अपेक्षित लाभ नहीं मिलता है। एक स्वस्थ रेवड़ में गर्भधारण की दर 70-75 प्रतिषत होती है। बकरियों में गर्भध्निदान के अनेक तरीके हैंपरन्तु उसमें सक कुछ ही व्यावहारिक तथा उपयुक्त हैं जिन्हें बकरी पालक आसानी से अपना सकते हैं। बकरी का गर्भाधान के बाद तीन सप्ताह बाद पुन: मद (गर्मी) के लक्षण प्रकट न करनागर्भधारण पता करने का एक तरीका है। जिसे अधिकतर बकरी पालक अपनाते हैं। इसके साथ-साथ गर्भ की सही जांच गर्भाधान के 80-90 दिन उपरांत पेट का उभार देखकर (उदर विधि) पशु चिकित्सा द्वारा करा लेनी चाहिए।

गर्भकाल व प्रसव क्रिया:
      गर्भावस्था व उसके उपरांत प्रसवजनन का तीसरा चरण है। गर्भावस्था में की गई देखभाल तथा पोषण आगे आने वाली संतति के भविष्य का निर्धारण करते हैं। गर्भकाल का समय ऐसा होता है जब बकरी को अपने षरीर के साथ-साथ गर्भ में पल रहे मेमनों का भी पोषण करना पड़ता है। गाभिन बकरी को गर्भावस्था के अंतिम 45 दिनों में उचित आहार देना आवष्यक है। इस अवधि में बकरी का दूध नहीं दूहना चाहिएजिससे गर्भ में पल रहे बच्चे को उचित पोषण मिलता रहे। प्रत्येक गाभिन बकरी को प्रतिदिन 150-250 ग्राम दाना मिश्रणचना व अरहर भूसे में मिलाकर देना आवष्यक है। पर्याप्त हरा चारा न मिलने पर विटामिन ए भी देना चाहिए क्योंकि ऊर्जा व विटामिन ए की कमी से गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है। बकरियों में प्रसव का समय अन्य पशु प्रजातियों के समान महत्वपूर्ण है। रेवड़ में जहां बकरियाें को नैसर्गिक विधि से गर्भाधान कराया जाता है उनमें प्रसव क्रिया का ज्ञान और भी आवष्यक हो जाता हैक्योंकि इसमें प्रसव की तिथि की निष्चित गणना संभव नहीं है। बकरियों में सन्निकट प्रसव के लक्षण स्पष्ट न होने के कारण गर्भावस्था के अंतिम पखवाड़े में ज्यादा ध्यान की आवष्यकता होती है। इस समय उनको हलकासुपाच्य दाना-चारा दिया जाए। उनके षरीर के पिछले भाग विषेषकर बाह्य जननांगों के आसपास के अनावष्यक बालों को काट दें। ब्याने से एक सप्ताह पूर्व उन्हें ऊंचे-नीचे स्थानों पर न चराएं। अच्छा यही रहेगा कि इस समय उन्हे बाड़ों के आसपास ही चराया जाए या फिर बाड़े में ही रखा जाए। ब्याने की संभावित तिथि से एक पखवाड़े पूर्व निम्न तैयारियां कर लेनी चाहिए।

· ब्याने के लिए काम में आने वाले बाड़े (4' गुणा 4') को अच्छी तरह से साफ करके सूखने दें। इसमं एक सप्ताह बाद चूना डालकर सूखी घास या पुआल का बिछौना दें। इन बाड़ों को प्रत्येक ब्याने वाली बकरी के लिए उपयोग में लाएं।

·ब्याने वाली प्रत्येक बकरी को बकरी के साथ रखने के लिए 21' गुणा 21' गुणा 21' आकार का लकड़ी का बक्सा रखें। इसमें भी सूखी घास या जूट के बोरे का बिछौना बनाएं।

·बकरी पालकों को चाहिए कि वह ब्याने वाली बकरियों को सुबह-षाम अवष्य देखें जिससे ब्याने के समय का आसानी से पूर्वानुमान हो सके। बकरी में जैसे-जैसे ब्याने का समय नजदीक आता हैउसमें अनेक परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं। जैसे -
    • बकरी की बेचैनी बढ़ जाती है।
    • बकरी के अयन का आकार एकाएक बढ़ जाता है। थनों में चमक और फूलापन दिखाई देता है। पहली बार ब्याने वाली अधिकांष बकरियों के थनों में दूध आता है।
· बकरी के योनि मार्ग से पीले रंग का लसलसा और गाढ़ा स्त्राव निकलना आरम्भ हो जाता है।
·बकरी रेवड़ में एकान्त स्थान पर उठती-बैठती है।
·बकरी ब्याने के कुछ घंटे पूर्व बार-बार उठती-बैठती तथा अनमनी हो जाती है।
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बकरियों की उत्पादन क्षमता बनाए रखने के लिए जनन चक्र की निरंतर आवष्यक हैजिससे प्रसवोपरांत बकरियों को जल्दी ऋतुमयी होने से उन्हें पुन: प्रजनित किया जा सके। इस प्रक्रिया को अपनाने से दो ब्यांतों के बीच अंतराल (ब्यांत अंतराल) में कमी आती है तथा क्षमता में वृध्दि होती है।
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      प्रसव का समय सन्निकट आने पर बकरी के उदर वाले भाग में प्रसव वेदना षुरू हो जाती है। प्रसव पीड़ा आरम्भ में हलकी व बाद मे तीव्र होने लगती है। यह सभी लक्षण इस बात का संकेत हैं कि बकरी षीघ्र ब्याने वाली है। आमतौर पर प्रसव वेदना षुरू होने के 3-4 घंटे में बकरी बच्चे को जन्म दे देती है। पहली बार ब्याने वाली बकरी कुछ ज्यादा समय लेती है। बच्चा निकलने से पहले एक झिल्लीनुमा चमकीला गुब्बारा निकलता है। अधिकतर बकरियां लेटकर बच्चा देती हैं। प्रसव के समय बकरी से छेड़-छाड़ नहीं करनी चाहिए। बकरी की स्वाभाविक रूप से जनने दिया जाएं सामान्य प्रसव में मेमने के आगे के दोनों पैर व सिर बाहर आते हैं इसके बाद षरीर का बाकी हिस्सा बाहर आ जाता है। अन्य मेमने भी इसी क्रम में बच्चे दानी से बाहर आते हैं। सामान्यत: बकरी का जोर ब्याने के 3-6 घंटे के अंदर निकल आता है। प्रसव क्रिया अगर सामान्य न हो तो पशु चिकित्सक की सहायता लें।

प्रसवोपरान्त प्रजनन:
      एक जनन चक्र सफल प्रजनन से आरम्भ होकर सामान्य प्रसव के साथ पूर्ण हो जाता है। बकरियों की उत्पादन क्षमता बनाए रखने के लिए जनन चक्र निरन्तर आवष्यक हैजिससे प्रसवोपरान्त बकरियों को जल्दी ऋतुमयी होने से उन्हें पुन: प्रजनित किया जा सके। इस प्रक्रिया का अपनाने से दो ब्यांतों के बीच अंतराल (ब्यांत अंतराल) में कमी आती है तथा क्षमता में वृध्दि होती है। प्रसव व प्रसवोपरान्त ऋतुचक्र में आने का अंतराल छोटी नस्लों (जखराना,जमुनापारीबीटल130-171 दिन तक होता है जनन चक्र की पुनरावृति के लिए बकरी पालक अपने रेवड़ में नस्ल के अनुसार पुन: गर्भाधान करा कर बकरी की उत्पादन क्षमता का दोहन कर सकते हैं। बकरी 10 वर्ङ्ढ की आयु तक बच्चे देने में सक्षम है परन्तु उम्र बढ़ने के साथ इनकी जनन क्षमता में कमी आने से अधिकांष बकरी पालक इन्हे 7-8 वर्ष की उम्र में बकरियों को रेवड़ से अलग कर देते हैं। बकरी पालक इनकी जगह नई बकरियों से उत्पादन लेना बेहतर मानते हैं।


Article Credit:http://www.gsgk.org.in/goat.php

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